अगर हृदय पत्थर का होता...
*
खाकर चोट न किंचित रोता,
दुःख-विपदा में धैर्य न खोता.
आह न भरता, वाह न करता-
नहीं मलिनता ही वह धोता..
अगर हृदय पत्थर का होता...
*
कुसुम-परस पा नहीं सिहरता,
उषा-किरण सँग नहीं निखरता.
नहीं समय का मोल जानता-
नहीं सँवरता, नहीं बिखरता..
अगर हृदय पत्थर का होता...
*
कभी नींव में दब दम घुटता,
बन सीढ़ी वह कभी सिसकता.
दीवारों में पा तनहाई-
गुम्बद बन बिन साथ तरसता..
अगर हृदय पत्थर का होता...
*
अपने में ही डूबा रहता,
पर पीड़ा से नहीं पिघलता.
दमन, अनय, अत्याचारों को-
देख न उसका लहू उबलता.
अगर हृदय पत्थर का होता...
*
आँखों में ना होते सपने,
लक्ष्य न पथ तय करता अपने.
भोग-योग को नहीं जानता-
'सलिल' न जाता माला जपने..
अगर हृदय पत्थर का होता...
*
5 टिप्पणियां
यह कविता बिल्कुल लयात्मक है, मीटर या बहर संतुलित है |
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना के लिए आचार्यजी को बधाई |
अवनीश तिवारी
मुम्बई
अच्छी रचना के लिये बधाई
जवाब देंहटाएंकुसुम-परस पा नहीं सिहरता,
जवाब देंहटाएंउषा-किरण सँग नहीं निखरता.
नहीं समय का मोल जानता-
नहीं सँवरता, नहीं बिखरता..
अगर हृदय पत्थर का होता...
बहुत सुन्दर गीत
जरूर कुछ उपयोगी पत्थर हृदयी भी हैं ।वहीं शिखर पर हैं ।कल्पना लयात्मक व गेय शब्दों के संयोग से सुंदर अभिव्यक्ति बनी हैं ।बधाई ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब । प्रेरणादायक ।
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.