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छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा० रमन सिंह के द्वारा "आमचो बस्तर" का विमोचन [साहित्य समाचार] - अजय यादव



उपस्थित लोगों का एक दृश्य
बस्तर के अतीत और वर्तमान पर आधारित उपन्यास “आमचो बस्तर” (लेखक: श्री राजीव रंजन प्रसाद) का विमोचन दिनांक १५ फरवरी, २०१२ को नई दिल्ली स्थित कांस्टीट्यूशन क्लब में आयोजित एक भव्य समारोह में छत्तीसगढ़ के माननीय मुख्यमंत्री डा० रमन सिंह ने किया। समारोह की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा० प्रेम जनमेजय ने की। इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार श्री एन०के०सिंह, साहित्यकार श्री गिरीश पंकज, श्री शरद चंद्र गौड़, श्री पंकज झा आदि कई गणमान्य लोगों ने अपनी उपस्थिति द्वारा इस आयोजन को सफल बनाया।
पुस्तक का विमोचन
इस अवसर पर बोलते हुये माननीय मुख्यमंत्री ने बस्तर के सच और उसकी पीड़ा को स्वर देने की श्री राजीव रंजन की पहल को एक महत्वपूर्ण कदम माना। उन्होंने आशा जताई कि इस शोधपूर्ण उपन्यास को पढ़ने के बाद बुद्धिजीवी व सामान्य पाठक बस्तर को एक अलग और अधिक सकारात्मक रूप से देखेंगे। उन्होंने माना कि अभी वे स्वयं यह पूरा उपन्यास नहीं पढ़ पाये हैं तथापि इसके जितने अंश उन्होंने पढ़े हैं उससे उन्हें लगता है कि यह उपन्यास पाठक को इसे पूरी तन्मयता और गंभीरतापूर्वक पढ़ने के लिये विवश करता है। अत: वे स्वयं भी इसे पूरा पढ़ने को उत्कंठित हैं।

लेखक  का सम्बोधन
इससे पहले श्री राजीव रंजन प्रसाद ने उपस्थित लोगों को सम्बोधित करते हुये बताया कि कैसे तथाकथित प्रगतिवादी और मानवाधिकारवादी लोगों ने दुनिया को बस्तर का वही रूप दिखाया है जो नक्सलवादी आधार क्षेत्र मे उन्हें सप्रयास दिखाया गया। बस्तर क्षेत्र और उसके निवासियों के विषय में बोलते हुये राजीव ने कहा कि इतिहास इस बात का साक्षी है कि भले ही बस्तर राज्य मराठाओं, अंग्रेजों या अन्य बाहरी शासकों के अधीन रहा हो, यहाँ की जनता ने कभी अपना सिर बाह्य शक्तियों के आगे नहीं झुकाया। विभिन्न कालक्रमों पर हुये दशाधिक आंदोलनों द्वारा यहाँ की जनता अपनी राजनैतिक और सामाजिक जागरूकता का प्रमाण लगातार देती रही है। आज वही बस्तर इन तथाकथित जनपैरोकारों के कारण अपनी वास्तविक पहचान खोता जा रहा है। उसकी सामाजिक रीतियाँ टूट रही हैं। आज बस्तर मांदर की थाप पर मदहोश हो कर नाचता नहीं है बल्कि बारूद के धमाकों से सिहर उठता है।

मीडिया से मुखातिब माननीय मुख्यमंत्री
वरिष्ठ पत्रकार श्री एन०के०सिंह ने कहा कि वे स्वयं एक बार बस्तर भ्रमण के बाद वहाँ की दशा से आहत हो कर नक्सलवाद समर्थक लेख लिख चुके हैं परंतु बाद में जब उन्होंने इस विषय में और जानकारी जुटाई तो उन्हें अपना विचार बदलना पड़ा। उन्होंने मीडिया और बुद्धिजीवी वर्ग से आग्रह किया कुछ भी लिखने या दिखाने से पहले यह सुनिश्चित करें कि जो दिख रहा है वह वास्तव में कितना सच है।

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में डा० प्रेम जनमेजय ने कहा कि सामान्यत: साहित्यिक पुस्तकों के विमोचन के लिये आने वाले राजनेता बिना पुस्तक पढ़े लेखक को बधाई देकर अपने कार्य की इतिश्री कर लेते हैं। परंतु डा० रमन सिंह जी ने जिस तरह इस पुस्तक के विषय में कहा उससे यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने इसके कुछ अंश तो निश्चित ही पढ़े हैं। आगे उनका यह कहना कि वे यह पुस्तक अवश्य पढ़ेंगे, लेखक की सफलता है क्योंकि पुस्तक की सफलता इसी में है कि वह पाठक को उसे पढ़ने के लिये विवश कर सके। साथ ही उन्होंने राजीव रंजन जी के भाषण का उल्लेख करते हुये कहा कि उनकी आवाज से उनकी पीड़ा ज़ाहिर होती है और यही सृजनात्मक पीड़ा एक अच्छी रचना की सबसे पहली शर्त है। अंत में लेखक को बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि हिन्दी लेखन में हिन्दीतर विषयों खासकर तकनीकी विषयों से आने वाले लोग बहुत कम हैं, ऐसे में राजीव जैसे लोग हिन्दी साहित्य को एक अलग दृष्टिकोण देकर और भी समृद्ध कर सकते हैं।


बाद में श्री पंकज झा, श्री गिरीश पंकज, श्री शरद चन्द्र गौड़ आदि ने भी श्रोताओं को सम्बोधित किया तथा लेखक को शुभकामनायें दी। तदुपरांत जलपान के साथ सभा विसर्जित हो गई।

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5 टिप्पणियाँ

  1. राजीव रंजन प्रसाद एक कर्मठ और मेहनती इन्सान है जिसमें साहित्य की समझ ख़ासी गहरी है। आमचो बस्तर के लिये उन्होंने एक लम्बे समय तक बस्तर में रह कर गहन शोध किया है। इस युवा लेखक के पहले उपन्यास के प्रकाशन पर बधाई। पूरी उम्मीद है कि इस पुस्तक को पढ़ा जाएगा। अफ़सोस है कि मैं कुछ ही दिन पहले भारत से वापिस लंदन आ गया, अन्यथा मैं स्वयं इस कार्यक्रम में उपस्थित रहता।

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  2. राजीव जी...बहुत बहुत शुभकामनाए..... साहित्य शिल्पी को समाचार के लिए धन्यवाद

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  3. Punha sahityashilpi ke madhyam se Rajeev ji ko babhai dena chahata hun...Rajeev ji ka yah upanyash ....sirf upanyash nahi hai yah bastar vasiyon ki pida ki abhivyakti hai...unhone bastar ko na sirf samjha hai balki ek manch bhi diya hai...varna to kahahe hai Dilli dur hai....Mao vadi trasdi se pidit bastar unka naman karta hai...

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  4. खुर्शीद हयात19 फ़रवरी 2012 को 8:44 am बजे

    राजिव रंजन प्रसाद जी ! बस्तर की मिटटी को एक नई पहचान और एक नई आवाज़ दे गया , आपका यह उपन्यास " आमचो बस्तर " मुबारकबाद कबूल करें ... शब्दों को एक नई वाणी देने का हुनर आपको खूब आता है - खुर्शीद हयात

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  5. राजीव जी ! बधाई स्वीकार करें और अशेष शुभ कामनाएँ भी | साहित्यशिल्पी का भी आभार ...

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