कोई खेल रहा है रंग, कोई मचा रहा हुड़दंग
मँहगाई ने हर चेहरे का उड़ा दिया है रंग
रंग-बिरंगी होली ऐसी प्रायः सब रंगीन बने
अबीर-गुलाल छोड़ कुछ हाथों में देखो संगीन तने
खुशियाली संग कहीं कहीं पर शुरू भूख से जंग
कोई खेल रहा है रंग, कोई मचा रहा हुड़दंग
मँहगाई ने हर चेहरे का उड़ा दिया है रंग
प्रेम-रंग से अधिक आजकल रंग-चुनावी दिखते
धरती लाल हुई इस कारण काले रंग से लिखते
भाषण देकर बदल रहे वो गिरगिट जैसा रंग
कोई खेल रहा है रंग, कोई मचा रहा हुड़दंग
मँहगाई ने हर चेहरे का उड़ा दिया है रंग
सतरंगी आशाओं के संग सजनी आस लगाये
मन में होली का उमंग ले साजन प्यास बुझाये
ना आने पर रंग भंग है सुमन हुआ बदरंग
कोई खेल रहा है रंग, कोई मचा रहा हुड़दंग
मँहगाई ने हर चेहरे का उड़ा दिया है रंग
1 टिप्पणियाँ
मँहगाई ने हर चेहरे का उड़ा दिया है रंग! यह तो कटु सत्य है।
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