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नारी-शिक्षा अनिवार्य [आलेख] - ड़ॉ प्रीत अरोड़ा

भारत का प्राचीन आदर्श नारी के प्रति अतीव श्रद्धा और सम्मान का रहा हैl प्राचीन काल से नारियाँ घर -गृहस्थी को ही देखती नहीं आ रहीं,अपितु समाज ,राजनीति,धर्म,कानून,न्याय सभी क्षेत्रों में वे पुरुष की संगिनी के रुप में सहायक व प्रेरक भी रहीं हैंl
 परन्तु समय के बदलाव के साथ नारी पर आत्याचार व शोषण का आंतक भी बढ़ता रहा है l नारी पारिवारिक ढ़ाँचे की यथास्थिति से समझौता करती रही है या फिर सन्तानविहीन व बन्ध्या जीवन व्यतीत करने को मजबूर हुई है l यहाँ तक कि नारी शैक्षणिक ,सामाजिक,आर्थिक,पारिवारिक सभी स्तरों पर उपेक्षित जीवन व्यतीत करती है l जब बात शैक्षणिक शोषण की होती है तो एक ही सवाल मन में उठता है कि अगर नारी को शोषण और अत्याचारों के दायरे से मुक्त करना है तो सबसे पहले उसे शिक्षित करना होगा चूकिं शिक्षा का अर्थ केवल अक्षर ज्ञान नहीं होता अपितु शिक्षा का अर्थ जीवन के प्रत्येक पहलू की जानकारी होना है व अपने मानवीय अधिकारों का प्रयोग करने की समझ होना है l शिक्षा सफलता की कुँजी है l बिना शिक्षा के जीवन अपंग है l जीवन के हर पहलू को समझने की शक्ति शिक्षा के द्वारा ही प्राप्त होती है l ऐसा माना जाता है कि शिक्षा एक विभूति है और शिक्षित विभूतिवान l जहाँ आज समाज का एक नारी-वर्ग शिक्षित होकर समाज में अपनी एक अलग पहचान बना रहा है, परन्तु वहाँ एक वर्ग ऐसा भी देखने को मिलता है जो आज भी अशिक्षा के दायरे में सिमट कर मूक जीवन व्यतीत कर रहा है ,और सवाल यह उठता है कि उनकी स्थिति में कितना सुधार हो रहा है ? हम प्रत्येक वर्ष महिला-दिवस बहुत धूमधाम और खुशी से मनाते हैं पर उस नारी-वर्ग की खुशियों का क्या जो अशिक्षा के कारण अपने मानवीय अधिकारों से वंचित महिला-दिवस के दिन भी गरल के आँसू पीती है l ऐसे समाज में पुरुष स्वयं को शिक्षित ,सुयोग्य एवं समुन्नत बनाकर नारी को अशिक्षित,योग्य एवं परतंत्र रखना चाहता है l शिक्षा के अभाव में भारतीय नारी असभ्य,अदक्ष अयोग्य,एवं अप्रगतिशील बन जाती है l वह आत्मबोध से वंचित आजीवन बंदिनी की तरह घर में बन्द रहती हुई चूल्हे-चौके तक सीमित रहकर पुरुषों की संकीर्णता का दण्ड भोगती हुई मिटती चली जाती है l पुरुष नारी को अशिक्षित रखकर उसके अधिकार तथा अस्तित्व का बोध नहीं होने देना चाहता l वह नारी को अच्छी शिक्षा देने के स्थान पर उसे घरेलू काम-काज में ही दक्ष कर देना ही पर्याप्त समझता है l प्राचीन काल से ही नारी के प्रति समाज का दृष्टिकोण रहा है,' नारियों के लिए पढ़ने की क्या जरूरत ,उन्हें कोई नौकरी-चाकरी तो करनी नहीं, न किसी घर की मालकिन बनना है ,उसके लिए तो घर 'गृहस्थी' का काम सीख लेना ही पर्याप्त है l’ एक तरह से समाज की यह विचारधारा ही शैक्षणिक शोषण के आधार को और भी मजबूत कर देती है l

शैक्षणिक शोषण के अन्तर्गत बेटियों को विद्यालय भेजने की जगह उनसे घरेलू कामकाज करवाना,अभिभावकों द्वारा बालिका-मजदूरी करवाना,बेटी के पराया धन के रूप मान्यता,बेटे व बेटी में अंतर करके बेटी को शिक्षा से वंचित कर देना आदि मानसिकताओं को लेकर नारी का शैक्षणिक शोषण होता आया है l अशिक्षा के कारण एक गृहिणी होते हुए भी सही अर्थों में गृहिणी सिद्ध नहीं हो पाती है l बच्चों के लालन-पालन से लेकर घर की साज-संभाल तक किसी काम में भी कुशल न होने से उस सुख-सुविधा को जन्म नहीं दे पाती जिसकी घर में उपेक्षा की जाती है l नारी परावलम्बी और परमुखापेक्षी बनी हुई विकास से वंचित ,शिक्षा से रहित मूक जीवन बिताती हुई अनागरिक की भान्ति परिवार में जीवनयापन करती है l अशिक्षा के कारण नारी का बौद्धिक एवं नैतिक विकास भी उचित रूप से नहीं हो पाता l आमतौर पर घर-परिवार में यही मान्यता बनी रहती है कि नारी को घर का काम-काज ही देखना होता है,तो उसे शिक्षा की क्या आवश्यकता है ? परिवार का मानस एक ऐसी रूढ़िवादिता से ग्रसित हो जाता है,जिसमें नारी को न तो पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है तथा न उसे वैसी सुविधा प्रदान की जाती है l अशिक्षा का शिकार नारी अनेकानेक पूर्वाग्रहों ,अन्धविश्वासों ,रूढ़ियों ,कुसंस्कारों से ग्रस्त होकर अपने अधिकारों से वंचित हो जाती है l अगर नारी शिक्षित होकर एक कुशल इंजीनियर, लेखिका,वकील,ड़ॉक्टर भी बन जाती है , तो भी कई बार पति व समाज द्वारा ईष्यावश उसका शैक्षणिक शोषण किया जाता है l परिणामस्वरूप नारी को शिक्षित होते हुए भी पति का अविश्वास झेलकर आर्थिक, मानसिक व दैहिक रूप से उत्पीड़ित होना पड़ता है l

नारी को समाज में उसका उचित स्थान दिलवाने के लिए एक ओर राजा राममोहन , स्वामी दयानन्द सरस्वती,महात्मा गाँधी जैसे महान् सुधारकों ने भरसक प्रयत्न किये,परन्तु आज भी जीवन के हर क्षेत्र में उसके साथ भेदभाव होता है l आज भी समाज में किसी न किसी रूप में नारी का शैक्षणिक स्तर पर शोषण किया जा रहा है l महिलाओं के साथ अमानवीय व्यवहार और छेड़छाड़ ,घरों ,सड़कों,बगीचों,कार्यालयों सभी स्थानों पर देखा जा सकता है lबलात्कार,दहेज उत्पीड़न,हत्या आदि के जो मामले प्रकाश में आते हैं,उनमें से अधिकांश सबूतों के अभाव से टूट जाते हैं l बाल-विवाह की त्रासदी अनेक कन्याएं भोग रही हैं जो चाहे इन सभी का कारण नारी को अशिक्षित बनाकर उसे उसके मानवीय अधिकारों से वंचित करना है l वास्तविकता यह है कि एक शिक्षित नारी ही अपने परिवार की अशिक्षित नारियों को पढ़ाकर अपने अर्जित ज्ञान व विकसित क्षमता का लाभ पूरे परिवार को दे सकती है l नारी सशक्तीकरण की आधारशिला भी शिक्षा ही है l शिक्षा द्वारा नारी सशक्त और आत्मनिर्भर बनकर अपने व्यक्तित्व का उचित रूप से विकास कर सकती है, परन्तु आज नारी –सशक्तीकरण के क्षेत्र की मुख्य बाधाएँ हैं जैसे –महिलाओं में व्याप्त अशिक्षा,अधिकारों के प्रति उदासहीनता ,सामाजिक कुरीतियां तथा पुरुषों का महिलाओं पर प्रभुत्व आदि l इन सभी समस्याओं से निजात दिलवाने का एक मात्र साधन शिक्षा ही है इसलिए समाज के आर्थिक,सामाजिक,साँस्कृतिक और राजनीतिक विकास के लिए महिलाओं का शिक्षित होना अति आवश्यक है l

वर्तमान समय में राष्ट्रीय स्तर पर यह महसूस किया जा रहा है कि नारी शिक्षा की दिशा में ठोस प्रयास के बिना समान का सन्तुलित विकास सम्भव नहीं है l इसलिए नारी-शिक्षा की दिशा में लगातार प्रयास किया जा रहा है lआज भारत में अनेक विद्यालय ,महाविद्यालय और विश्वविद्यालय चलाये जा रहे हैं l महिलाओं को शिक्षित बनाने का वास्तविक अर्थ उसे प्रगतिशील और सभ्य बनाना है ताकि उसमें तर्क –शक्ति का विकास हो सके l यदि नारी शिक्षित होगी तो वह अपने परिवार की व्यवस्था ज्यादा अच्छी तरह से चला सकेगी l एक अशिक्षित नारी न तो स्वयं का विकास कर सकती है और न ही परिवार के विकास में सहयोग दे सकती है l शैक्षणिक स्तर पर कन्या शिक्षा की सदैव से ही उपेक्षा की जाती रही है व उसे केवल घरेलू कामकाजों को सीखने तथा पुत्र-सन्तान को जन्म देने के सन्दर्भ में ही प्रकाशित किया जाता है l इसलिए नारी सबसे पहले पूर्णता शिक्षित हो तभी वह शोषण व अत्याचारों के चक्रव्यूह से निकल कर मानवी का जीवन व्यतीत कर सकेगी l

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