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(भगवान) की कथायें [व्यंग्य] - आलोक पुराणिक


कथा नंबर एक : गॉड के हाथ में भी नहीं
ऊपर गॉड ने सुना कि नीचे इंडिया में भी एक गॉड कहा जाता है, क्रिकेट वाले उसे गॉड मानते हैं-उसका नाम है, सचिन तेंडुलकर।


गॉड नीचे आया मीरपुर, बंगलादेश में इंडिया बंगलादेश का मैच देखने पहुंचा।

नीचे वाले गॉड की सेंचुरी की सेंचुरी पूरी हुई। झमाझम माहौल। नीचे वाला गॉड दुआ मना रहा था कि इंडिया जीतेगी। पक्का।



पर नहीं, गॉड की सेंचुरी के बावजूद इंडिया मैच हार गया।

ऊपर वाले गॉड की समझ में आ गया कि सब कुछ गॉड की मर्जी से नहीं होता।

सब कुछ गॉड के हाथ में नहीं।

ऊपर वाला गॉड टहलता हुआ दिल्ली पहुंचा और वहां प्रणब मुखर्जी के बजट के बाद के डिस्कशन सुनने लगा। एक समझदार से बंदे ने बजट पढ़कर कहा-ओह प्रणब बाबू ने ममता बनर्जी की रेलगाड़ी के फर्स्ट क्लास और एयरकंडीशंड क्लास पर सर्विस टैक्स लगा दिए हैं। ये महंगे हो जाएंगे। ओ माई गॉड।

ऊपर वाला गॉड घबराया-ये इधर किराया महंगा होगा, और जिम्मेदारी गॉड पर डाली जा रही है।

गॉड ने इंसानी भेष बदलकर बोला-डीयर मैं ये सर्विस टैक्स हटवा दूंगा। मैं गॉड हूं।

सुनने वाले ने देखने की जहमत भी नहीं उठाई और कहा, ना ये काम तुम्हारे बूते का नहीं। सिर्फ ममता बनर्जी ही इसे करवा सकती हैं।

ऊपर वाला गॉड परेशान हो लिया। उसकी समझ में आ गया कि इंडिया और इसके आसपास के इलाके में सब कुछ गॉड की मर्जी से नहीं होता।



कथा नंबर दो : गॉड होना मुश्किल है

ऊपर वाला गॉड टहलता हुआ नीचे वाले गॉड सचिन तेंडुलकर के घर में पहुंचा।

सचिन अंदर थे, अंदर से आवाजें आ रही थीं, किसी इनवर्टर वाले का सचिन का संवाद चल रहा था। इस इनवर्टर का इश्तहार सचिनजी करते रहे हैं।

इनवर्टर वाला -देखिए जी सेंचुरी की सेंचुरी हो गई। पर बीच में आप नहीं चलते तो हमारे इनवर्टर को लेकर डाउट पैदा हो जाता है कि ये भी चलेगा या नहीं।

सचिन- देखिए मेरी बैटिंग कभी चल सकती है, कभी नहीं भी चलती है। आप इनवर्टर के साथ लिख दीजिए, गारंटी थोड़े ही है।

इनवर्टर वाला : अरे सर लोग इसी उम्मीद पे तो खरीदते हैं कि ये तो आप जैसा चलेगा।

सचिन-अरे ये कैसी बात है। इनवर्टर इनवर्टर है, मैं मैं हूं।

इनवर्टर वाला-जी आप तो गॉड हैं। कुछ भी कर सकते हैं।

सचिन चुप से, परेशान से बैठे इनवर्टर को देख रहे हैं।

ऊपर वाला गॉड फिर परेशान हो रहा है, इंडिया में गॉड कुछ भी कर सकता है, पर हर इनवर्टर वाले की उम्मीद पे खरा ना उतर सकता।

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