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अनुरोध / महेंद्रभटनागर

परिपक्व आम्र हूँ —
तीव्र पवन के झोंकों से
कब गिर जाऊँ!


आतुर है
धरती की कोख

प्रसविनी,
शायद —
जीवन फिर पाऊँ!




आया तो
और मधुर रस दूंगा,
बरस-बरस दूंगा!



अपने प्रिय सपनों में
रखना मुझे सुरक्षित,
भूली-बिसरी यादों में
चिर-संचित!

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