काजल की रेख कहीं
अंदर तक पैठ गई
तमस की आकृतियाँ
अंतर की सुरत हुईं
मन को झकझोर दिया
गहरी सी सांसों ने ||
दूर कहाँ रह पाया
आकर्षण विद्युत सा
अंग अंग संग रहा
तमस बहु रंग हुआ
गहरे तक डूब गया
अपनी ही साँसों में ||
चाहा तो दूर रहूँ
शक्त नही मन था
कोमल थे तार बहुत
टूटन का डर था
सोचा संगीत बजे
उच्छल इन साँसों में ||
जो भी जीया था
उस क्षण का सच था
किस ने सोचा ये
आगे का सच क्या
फिर भी वो शेष रहा
जीवन की सांसों में ||
अंदर तक पैठ गई
तमस की आकृतियाँ
अंतर की सुरत हुईं
मन को झकझोर दिया
गहरी सी सांसों ने ||
दूर कहाँ रह पाया
आकर्षण विद्युत सा
अंग अंग संग रहा
तमस बहु रंग हुआ
गहरे तक डूब गया
अपनी ही साँसों में ||
चाहा तो दूर रहूँ
शक्त नही मन था
कोमल थे तार बहुत
टूटन का डर था
सोचा संगीत बजे
उच्छल इन साँसों में ||
जो भी जीया था
उस क्षण का सच था
किस ने सोचा ये
आगे का सच क्या
फिर भी वो शेष रहा
जीवन की सांसों में ||
2 टिप्पणियाँ
अच्छी कविता...बधाई
जवाब देंहटाएंजो भी जीया था
जवाब देंहटाएंउस क्षण का सच था
किस ने सोचा ये
आगे का सच क्या
जो भी है सामने है...वही सच है जो सामने है...सुन्दर अभिव्यक्ति
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