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[भाषा सेतु] - शम्मी जालंधरी- कविता - "गुमशुदा मुहब्बत" {भाषांतर – नीलम शर्मा ‘अंशु’}

6 मई को पंजाबी विरह के बादशाह शिव बटालवी की पुण्यतिथि पर विशेष

ऐ शिव ! तूने कभी इश्तहार दिया था
एक गुमशुदा लड़की का
जो अभी भी गुमशुदा है....
किसी ने कोशिश ही नहीं की
उसे तलाशने की, तुम्हारे बाद
वर्ना वह भी फ़कीर हो जाता
तुम्हारी भांति....
तूने उस लड़की का इश्तहार दिया था
जिसका नाम था मुहब्बत
जो कि दुनिया के हर रिश्ते से ख़त्म हो चुकी है
तूने उसकी बात की
जिसकी सूरत थी परियों जैसी
जो गुम हो चुकी है नकली मुखौटों की भीड़ में
तूने उसका ज़िक्र किया
जिसकी सीरत थी पाक और साफ़
मरियम जैसी
जो कि ओझल हो चुकी है
मंद विचारों के अंधियारे में
ऐ शिव ! ये कैसी लड़की थी
जिसकी ख़ातिर ज़माने ने तुझ पर तोहमतें लगाईं.
खरी खोटी भी सुनाई
आज भी सुना रहा है
ये लोग भी एक लड़की की तलाश में हैं
परंतु ये तुम्हारी तरह फकीर नहीं होंगे
उसे तलाशते तलाशते
क्योंकि जिसे ये तलाश रहे हैं
उसका नाम मुहब्बत नहीं
दौलत है, शोहरत है
जो उन्हें एक दिन अवश्य मिल जाएगी
या शायद मिल चुकी होगी
परंतु ऐ शिव !
जिस लड़की का तूने इश्तहार दिया था
वह अभी भी गुमशुदा है.....

(शिव बटालवी की कविता ‘इश्तहार’ पर आधारित)
[चित्र https://karuppurojakkal.wordpress.com/ से साभार]

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