आज आठ मई है। वर्ल्ड मदर्स डे। पश्चिम वालों ने हर दिन किसी न किसी के नाम कर रखा है ठीक वैसे ही जैसे हमने अपने कैलेंडर में हर दिन किसी न किसी देवता के नाम कर रखा है। कोई न कोई व्रत या त्यौ हार हर दिन मिल ही जायेगा। फिलहाल बात मां के दिन की।
राजेन्द्र सिंह बेदी की किसी कहानी में एक संवाद आता है - भगवान हर समय सब जगह मौजूद नहीं रह सकता इसलिए उसने अपनी जगह लेने के लिए मां बनायी। मां को भगवान के बराबर दर्जा दिया है। ये बात अलग है कि आपको ये संवाद हर तीसरी हिंदी फिल्म में देखने सुनने को मिल जायेगा, जीवन में हो न हो।
मां को बेशक हम भगवान के बराबर का दर्जा दें लेकिन सच में हम अपनी सगी मां के लिए क्या कर पाते हैं। विश्वक साहित्यन मां की पूजा अर्चना से भरा पड़ा है लेकिन अपनी जिंदगी में मां की जिंदगी की सच्चाई भी हम ही जानते हैं। एक और अजीब बात है कि मां पर हमें कविताएं ज्यादा मिलती हैं और बूढ़े पिता पर कहानियां ज्यादा लिखी जाती हैं।
बहुत पहले की पढ़ी एक कहानी याद आती है कि किस तरह एक प्रेमी अपनी प्रेमिका का दिल जीतने के लिए मां का कलेजा चीर कर भाग कर जाता है ताकि जल्दी से प्रेमिका के पास पहुंच कर उसे मां का कलेजा भेंट कर सके। प्रेमी हड़बड़ी में ठोकर खा कर गिरता है। मां के कलेजे से आवाज़ आती है – बेटे, चोट तो नहीं लगी। पहली नज़र में हर पाठक को ये कहानी भारतीय ही लगेगी। अपनी मां तो जहान में सबसे बड़ी और त्यातगमयी मां। लेकिन ये किस्सा है 1932 में नोबल पुरस्काडर से सम्माआनित अमेरिकी लेखक हावर्ड फास्टी के उपन्यासस स्पाैर्टाकस का।
मां तो मां ही होती है। तेरी हो या मेरी। हर मां ममतामयी और त्यागमयी।
आज के अंक के लिए हमने मां पर कुछ विशेष सामग्री जुटाई है। प्रेमचंद की कहानी, अमृता प्रीतम की एक मार्मिक रचना, चार्ली चैप्लिन की मां का एक प्रसंग, चंद्रकांत देवताले की कविता, मुन्नमवर राणा की ग़ज़ल और सबसे खास हमारे अपने वक्त के एक महत्व,पूर्ण कथाकार एस आर हरनोट की मां पर लिखी गयी बेहद मार्मिक कहानी बिल्लियां बतियाती हैं।
आओ धूप में इस बार रोहतक की अरुणा शर्मा हैं। उन्होंबने भी एक कविता मां पर लिखी है। साक्षात्का र में इस बार व्यंग्यकार ज्ञान चतुर्वेदी हैं तो मेरे पाठक में अपने पाठकों से मिले रोचक अनुभव शेयर कर रहे हैं वरिष्ठा कथाकार रूप सिंह चंदेल। देस परदेस में इस बार हमने फारसी के कवि सोहराब सेपेहरी की कविता चुनी है और मैंने पढ़ी किताब में मां से ही जुड़ी एक महत्विपूर्ण कृति ब्रेतोल्तन ब्रेख्तढ के नाटक मदर करेज एंड हर चिल्ड्रेन के नीलाभ द्वारा किये गये हिंदी पाठ हिम्मकतबाई को चुना है। उपहार में आज आप पायेंगे एक और महत्व पूर्ण किताब ई बुक के रूप में। आज की ई बुक है चार्ल्से डार्विन की आत्म्कथाव का अनुवाद। विश्वासस है, आपको ये अंक पसंद आयेगा।
आमीन
सूरज प्रकाश
mail@surajprakash.com
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