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[आओ धूप] - रितु रंजन की कवितायें



आओ धूप में इस बार स्वागत है रितु रंजन का। उनकी कविताओं में एक अजीब सी बेचैनी है, ढेर सारे सवाल हैं, उम्मीहदें हैं, कचोट है, व्यं ग्य  है और सबसे बड़ी बात, बेहतरी की उम्मी द है। वे निरंतर लिखें और कविता की धार को और पैना करें। 

सफल हो कर तुम दिखलाओ

अड़चने तो आती हैं राह में
आगे बढ़ कर दिखलाओ
गलत राह पर अगर चलोगे
काँटे ही होंगे राहों में
फूल अगर तुमको पाना है
सच्चाई से राह बनाओ
अपनी ही तुम कलम उठाओ
और लिखो अपनी परिभाषा।
भटक गये जो राह कभी तुम
नही संभल फिर पाओगे,
दाग लगी चूनर को तुम
किस दरिया में धो आओगे?
ख्वाब कब्र फिर बन जायेंगे
आँसू बन फिर बह जायेंगे।
जीना क्या पोली उम्मीदें
आँखें खोलो भूलो नींदें.
अंत हरएक मुश्किल का होगा
संदल बन कर तुम दिखलाओ
सफल हो कर तुम दिखलाओ...

फिर मैं ही हूँ

साथी हो तो साथ दो
सुख के साथी तुम, तो दुख का कौन?
हँसी में तुम तो गम में कौन?

मेरे तो तुम्ही सब कुछ
गीता और रामायण भी तुम
अगला जन्म भी तुम
शब्द भी तुम
अर्थ भी तुम
सवाल भी, जवाब भी तुम

भागो, किंतु जाओगे कहाँ
तुम्हारे भीतर की आँखें जो मेरी है
करेंगी पीछा तुम्हारा
भटकते रहोगे तुम
खुशी की चाह में
परबत/दरिया और मरुथल
पर मत भूलो कि कडी धूप में
तुम्हारे लिये पानी की पहली बूँद
फिर मैं ही हूँ।
शून्य में

टूटा है दिल

फेविकोल से चिपका लो
चाहो तो रफू करवा लो
चादर से उसे ढक दो
पर दिखने मत दो..

दरारो में दीमक लग जाते हैं
फिर कोई सुई काम ना आएगी
न ही गोंद कोई
बाहर तेज रोशनी हैं
आँखे रोशनी मे भी हो जाती हैं अंधी
खो जाएगा रिश्ता
या फिर बेमानी हो जाएगा तब
कटघरे में खडे तुम और हम
गुमशुदा रिश्ते पर केवल कीचड उछालेंगे
पीठ के पीछे लोगों की हँसी
और हासिल कुछ भी नहीं
और फिर शून्य में तनहाईयाँ बोते रहेंगे
अपनी लाश ढोते रहेंगे।

समाना नहीं आता।


भाव तो बहुत हैं, सजाना नहीं आता
मोती हैं, हमको माला बनाना नहीं आता।

जीवन है और हम हैं, तनहा हैं, रास्ता है,
ठहरे हुए हैं लेकिन, जाना नहीं आता।

मन मेरा समुन्दर है, भँवरें हैं और लहर है,
खों जायें हमको हममें डुबाना नहीं आता।

मन प्यार भरा मेरा, दुनियाँ भी सिर्फ तुम हो,
घर रेत का है जिसको सजाना नहीं आता।

हम तो रितु वही हैं, बेरंग बुत कि जिसको
रंगो भरी दुनियाँ में समाना नहीं आता।

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