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अच्छी बात खराब बात [लघुकथा] – प्रभुदयाल श्रीवास्तव

"डेड मुझे रिश्वत खाना सिखा दो न प्लीज़" टोनी अपने पिता लुईस मरांडा के दोनों हाथ कुहनियों के पास पकड़कर जोर से बोला| मिरांडा आश्चर्य से टॊनी की तरफ देखने लगा,यह विचित्र बात टोनी के दिमाग में कहां से आई, उसने सोचा|
"नहीं बेटे रिश्वत खाना अच्छी बात नहीं है" मिरांडा ने बेटे को समझाना चाहा|

"नहीं डेड मैं तो सीखूंगा रिश्वत खाना| सब लोग खाते हैं न,कितना मजा आता है| कल ही मोनू के पापा पकड़े गये थे रिश्वत खाते, कितना मजा आ रहा था| उनके घर के सामने बहुत सारी भीड़ थी, पुलिस की तीन तीन गाड़ियां खड़ी थीं|मोनू भी चहक रहा था और अपने दोस्तों को बता रहा था कि उसके पापा रिश्वत खाते पकड़े गये हैं|"

"नहीं बेटे रिश्वत खाना अच्छी बात नहीं है, अच्छे बच्चे यह गंदा काम नहीं करते, वे चाकलेट खाते हैं|"

" तो फिर बड़ा होकर मैं भी रिश्वत खा सकता हूं न? अभी से सीखूंगा तभी तो ट्रैन्ड हो पाऊंगा, खूब खाऊंगा बड़े होकर|"

"नहीं बड़े होकर भी नहीं|रिश्व त खाना अच्छी बात नहीं है|यह भ्रष्ट काम बेईमान और बदनाम लोग करते हैं|"

" नहीं मैं तो खाऊंगा, जब तक आप नहीं सिखायेंगे मैं स्कूल नहीं जाऊंगा|" टोनी मचलकर जिद करने लगा| मिरांडा ने क्रोध से उसके गाल पर चांटा जड़ दिया|

" चड्डी में नाड़ा बाँधना तक तो आता नहीं रिश्वत खाना सीखेंगे|" मिरांडा ओंठो में बुदबुदाया|

टोनी रोता हुआ अपनी मां मिरांडा के पास चला गया|" मुझे रिश्वत खाना है माम पापा नहीं सिखाते" वह जोर जोर से रोने लगा|
मेरिना चौंक गई|यह कैसी बेकार की ख्वाहिश है टॊनी की,कहां से सीखा यह बातें? उसका भेजा खराब हो गया|

"बेटे गुड ब्वाय लोग रिश्वत नहीं खाते,आ प गुड ब्वाय हैं कि नहीं? यू आर ए वेरी गुड ब्वाय, है न|" उसने उसे बहलाने की कोशिश की|

"क्यों माम रिश्वत खाना बुरी बात है क्या?" टॊनी ने मासूमियत से मां की ओर निहारा|

" हां बेटे यह बहुत खराब काम है, इससे समाज और देश को नुकसान होता है|" टॊनी मिरांडा के चांटे की चोट से अभी तक सिसक रहा था|

रात का समय मिरांडा और मेरिना डायनिंग टेबिल पर बैठे खाना खा रहे हैं| मिरांडा आज बहुत प्रसन्न नज़र आ रहा है। "क्या बात है आज बहुत खुश हो"मेरिना ने पूछा|

"हां आज का दिन बहुत अच्छा निकला मिस्टर नंदी वाला काम निपटा दिया|बड़ी मुश्किल से माना साला,कितना दबाव डलवाया ऊपर से ताकि मुफ्त में काम हो जाये|वह नहीं जानता था की आखिर मिरांडा भी कोई चीज है, दे गया एक लाख रुपये, तुम्हारे बेड रूम की अलमारी में रख दिये हैं| यह कहकर वह अपनी ही पीठ अपने ही हाथों थपथपाने लगा|

मेरिना की आंखें चमक उठीं|एक लाख का नाम सुनकर ही उसके चेहरे पर खुशियों के फूल खिल उठे|वह मिरांडा की आंखों में आंखें डालकर बोली "अच्छे बच्चे रिश्वत नहीं खाते" और ठहाका मारकर हँसने लगी| मिरांडा ने भी उसके ठहाके में अपना ठहाका जोड़ दिया|कमरे में ठहाके ही ठहाके गूंजने लगे|

टॊनी अपने बेड रूम में लेटे लेटे डेड और माम की बातें समझने की कोशिश करने लगा,"रिश्वत खाना अच्छी बात है या खराब बात|

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4 टिप्पणियाँ

  1. लघुकथा के साथ साथ रचना में प्रस्तुत कविता पोस्टर पसंद आया

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  2. sach baata to yah hai ki bachchon ko imaanadari sikhane waale ma bap rishvat ke mamale me kitane besharam hain
    Prabhudayal

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  3. हमारे दोहरे जीवन मूल्यों पर एक सशक्त प्रहार करता व्यंग्य!

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