इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है
बुलंदियों का बड़े से बड़ा निशान छुआ
उठाया गोद में माँ ने तब आसमान छुआ
घेर लेने को मुझे जब भी बलाएं आ गईं
ढाल बनकर सामने माँ की दुआएं आ गईं
जरा-सी बात है लेकिन हवा को कौन समझाये
दिये से मेरी माँ मेरे लिए काजल बनाती है
लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे खफा नहीं होती
ये ऐसा कर्ज है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता
मैं जब तक घर न लौटूं मेरी माँ सजदे में रहती है
5 टिप्पणियाँ
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
जवाब देंहटाएंमाँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है
सुन्दर क्या कहने!
मा क कहना ही क्या...वो तो ..... बस कहने को शब्द भी कम है...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर मन को छुने वाली कविता
जवाब देंहटाएं"किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई,
जवाब देंहटाएंमैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई...
हो चाहे जिस इलाके की जुबां बच्चे सब समझते हैं,
सगी है या सौतेली है माँ बच्चे सब समझते हैं ........
हवा दुखों की जब आई खिजां की तरह,
मुझे छुपा लिया मिट्टी ने मेरी माँ की तरह...
सुख देती हुई माँओं को गिनती नहीं आती ,
पीपल की घनी छाँव को गिनती नहीं आती.......
सर-फिरे लोग हमें दुश्मने-जां कहते हैं ,
हम जो इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैं...
समझो कि सिर्फ जिस्म है और जां नहीं रही,
वो शख्स जो कि ज़िंदा है और माँ नहीं रही...."
....................."मुनब्बर राना.."
"लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
जवाब देंहटाएंबस एक माँ है जो मुझसे खफा नहीं होती"
"किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई,"
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई...
-नीलम अंशु
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.