मृत्यु
जल रहे थे उस श्मशान भर में, लकड़ियों के ढेर
जलना मुझे अच्छा लगता है, अच्छा ही लगता है।
जलना मैं चाह रहा हूँ, किसी नदी के किनारे।
क्यूँकि, एक समय आता है, आ सकता है
जब आग असह्य होती है नदी के किनारे
और मृत चाह सकता है एक कुशा जल!
मृत्यु तब नहीं होती है सफ़ल, नहीं होती है सफ़ल!
पुराना-नया दुख
जो दुख पुराना है, उसे पास बुलाकर बैठने को कहता हूँ आज
मैं बैठा हूँ, साथ है परछाईं, उसके पास यदि दुख आ के बैठे
बड़ा अच्छा लगता है, लगता है, नए दुख से कहूँ, जाओ
कुछ दिन घूम कर आओ किसी दूसरे सुख के बाग़ से
नष्ट करो कुछ फूल, जलाओ हरे पत्ते, तहस-नहस करो
कुछ दिन घूम-फिर कर श्रांत हो जाओ, आना तब फिर
बैठना पास।
अभी पुराने इस दुख को बैठने की जगह दो
बहुत से बाग़ीचे घूम कर, इंसानों के घर भ्रमण कर, उथल-पुथल कर
यह बैठना चाहता है आकर मेरे पास। रहने दो कुछ दिन।
पाने दो शांति, पाने दो मेरा साथ। आना उसके बाद।
ओ नए दुख, तुम फिर आना उसके बाद॥
मंदिर से बहु शताब्दियों का अंधकार
मंदिर से बहु शताब्दियों का अंधकार आज
निकल आया है रास्तों पर, एक हिस्सा घुस गया है जंगलों में
चमगादड़ की तरह लटका हुआ है पेड़ों की डाल-डाल पर
थोड़ा सा अंधेरा घुल गया है उन हरे पत्तों में
पत्ते बीनने वालों ने कुछ अंधेरा रखा है टोकरियों में
सूखे पत्तों के साथ लकड़ियों के छोटे टुकड़े, उनके संग भी
घुल-मिल गया है, ग़लत आग में जलेंगे इसीलिए
भिक्षा में मिले भात होंगे इसीलिए वे मिल-जुलकर हैं।
मनुष्यों में नहीं है मिल-जुलकर रहने की सभ्यता
जानवरों में है मिल-जुलकर रहने की सभ्यता
मंदिर से बहु शताब्दियों का अंधकार आज
निकल आया है पथ पर, चू्हों-छछून्दरों की तरह रास्तों में।
-बंग्ला से अनुवाद अमृता बेरा
1 टिप्पणियाँ
ASHAVAD KI SUNDAR KAVITAON KA BEHTAREEN ANUVAD.
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