चिली के विख्यात कवि पाब्लो नेरूदा की आत्मकथा memoirs में से एक अत्यंत मार्मिक प्रसंग
मैं बहुत ही भरे मन से एक एंडालुसियन कवि पेड्रो गारफियाज़ का किस्सा
याद कर रहा हूं। वह स्कॉटलैंड में किसी लॅार्ड के महल में अपने देश निकाले के दिन
गुज़ार रहा था। वह महल हमेशा ही खाली पड़ा रहता था। बेचारा बेचैन रूह गारफियाज़ हर
शाम दारू के एक अड्डे की तरफ जा निकलता। उसे अंग्रेज़ी का एक लफ्ज भी नहीं आता था।
सिर्फ जिप्सी स्पैनिश आती थी उसे और वह भी इतनी टूटी फूटी होती कि मैं भी कभी
कभार ही समझ पाता। वह एक कोने में अकेला बैठा अपनी बीयर के घूंट भरता रहता। दारू
के एक अड्डे वाले का ध्यान एक तरह से बेजुबान इस ग्राहक की तरफ गया। और एक रात, जब बाकी सारे के सारे शराबी जा
चुके, तो अड्डे वाले ने बेचैन रूह गारफियाज़ के आगे हाथ जोड़े कि यहीं ठहरो अभी।
तब दोनों जन भट्टी के पास बैठे देर रात तक, आग के बुझ जाने तक शराब की चुस्कियां
लेते रहे।
ये न्यौता एक सिलसिला बनता चला गया। हर रात गारफियाज़ा को अड्डे वाले की तरफ से न्यौता
मिलता। वह भी गारफियाज़ की तरह छड़ा था। बाल बच्चे थे नहीं। धीरे धीरे दोनों की
जबान खुलने लगी। गारफियाज़ ने उसे स्पानी युद्ध के बारे में बताया। वह बीच बीच
में अपनी खास एंडालुसियन स्टाइल में कसमें खाता, बद्दुआएं देता और अपने रोने
रोता। सामने वाला किसी संत की माफिक ध्यान से सुनता रहता। बेशक गारफियाज़ का कहा
गया एक भी लफ्ज उसके पल्ले न पड़ता।
दूसरी तरफ स्कॉटिश आदमी शायद अपने खुद के दुखड़े रोता, बीवी के
कारनामे सुनाता जो उसे छोड़ कर भाग गयी थी। अपने आवारा निकल गये बच्चों की
बदतमीजियां गिनाता और अंगीठी के पास रखी मिलीटरी सजधज में सजी उनकी तस्वीरें
दिखाता। मैं शायद इसलिए कह रहा हूं क्योंकि जितने महीनों तक उन दोनों में ये
अनोखा संवाद चलता रहा, गारफियाज़ ने शायद उसका कहा एक भी शब्द समझा हो।
इसके बावजूद दोनों अकेले प्राणियों में आपस में नेह का नाता दिनों दिन
और मजबूत होता चला गया। दोनों में से हरेक अपनी खुद की भाषा में दिल की पूरी गहराई
से अपने दुखड़े रोता जो सामने वाले के जरा भी पल्ले नहीं पड़ती। हर रात एक दूजे
से मिलना और अल सुबह तक बैठे बतियाते रहना दोनों के लिए एक जरूरी शगल की तरह हो
चला था।
जब गारफियाज़ का मैक्सिको जाने का वक्त आया तो दोनों ने एक दूजे को
अलविदा कहा। दोनों ने खूब पी, ढेर सारी बातें कीं, और एक दूजे के गले लग कर देर तक
रोते रहे। जिस भावना ने इतने दिनों तक दोनों को बांधे रखा था, इतनी गहरी थी कि
जैसे दोनों ही इस जुदाई को सहन न कर पा रहे हों।
- पैड्रो, मैं अक्सर कवि से पूछता, -तुम्हें क्या लगता है कि वह
तुमसे क्या बातें करता था।
- पाब्लो, उसका कहा गया एक भी शब्द मेरे पल्ले नहीं पड़ता था लेकिन
मैं जब भी उसे सुनता था तो मुझे हमेशा लगता था कि मैं समझ पा रहा हूं कि वह क्या
कहना चाह रहा है। और जब मैं बात कर रहा होता था तो मुझे यकीन होता था कि वह भी
मेरी बात समझ रहा है।
2 टिप्पणियाँ
GOOD JOB. VERY SELECTIVE ARTICLES.
जवाब देंहटाएंअच्छा प्रसंग
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.