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किताबें करती हैं बातें {विशेष} [कविता] - सफदर हाशमी

किताबें करती हैं बातें
बीते जमानों की
दुनिया की, इंसानों की
आज की, कल की
एक-एक पल की
गमों की, फूलों की

बमों की, गनों की
जीत की, हार की
प्यार की, मार की
क्या तुम नहीं सुनोगे
इन किताबों की बातें?

किताबें कुछ कहना चाहती हैं
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं
किताबों में चिड़िया चहचहाती हैं
किताबों में झरने गुनगुनाते हैं
परियों के किस्से सुनाते हैं
किताबों में रॉकेट का राज है
किताबों में साइंस की आवाज है
किताबों में ज्ञान की भरमार है
क्या तुम इस संसार में
नहीं जाना चाहोगे?

किताबें कुछ कहना चाहती हैं..
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं।

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4 टिप्पणियाँ

  1. किताबें कुछ कहना चाहती हैं..
    तुम्हारे पास रहना चाहती हैं।

    बहुत सुन्दर। किताबें सच्ची सम्पत्ति होते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  2. एक शेर अनायास याद आया..

    किताबों से कभी गुज़रो तो यूँ किरदार मिलते हैं
    गये वक़्तों की ड्योढ़ी पर खड़े कुछ यार मिलते हैं

    जवाब देंहटाएं

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