आओ धूप में इस बार रोहतक, हरियाणा की अरुणा शर्मा की कविताएं। स्वागत है अरुणा।
अरुणा की कविताओं में पींगें बढ़ता प्यार है, प्रकृति है, मां है, घर परिवार है, जीवन की उमंग है और सबसे बड़ी बात, जीवन के प्रति गहरी आस्था है जो आगे चल कर अरुणा को कविता से और गहरे से जोड़ेगी।
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माँ
जीवनदायिनी तुम
है जीवन का सार तुमसे
तुम हो अनंत
तुलना नहीं तुम्हारी किसी से
धरा सी तुम हो सहनशील
सबकी प्यास बुझाने वाला
जल हो शीतल
दुख सहकर सुख बांटती
परिस्थिति हो चाहे जितनी विकल
सागर की गहराई जितना
गहरा होता मां का प्यार
अपने बच्चों पर मां तो बस
उसे लुटाती बार-बार।
फागुन आया
फागुन आया खुशियां लाया,
खोलो अपने द्वार॥
शीत मंद बहता समीर,
हरे सहज ही तन-मन पीर।
तरंगायित हो उमंग वासना,
रति, कामदेव परिवार॥
कामोत्सव के दिन चालीस,
बसंत पंचमी से, होली शीशा।
अबीर, गुलाल, पानी की वर्षा,
उत्सव मिलन का, हो प्रेम बौछार॥
मदमाती फूलों की गंध,
शीत पवन के चढ़ कर कंध।
मन मयूर को उन्मत कर दे,
परम पिता का यह उपहार॥
नव-पल्लव से लदी प्रकृति,
होता नव-र्निमाण, मिटकर विकृति।
हरा-हरा पीड़ाहर हो जाता,
चित तनाव, चिंता निर्भार॥
वन, उपवन, उद्यान, बगीचे,
प्राणवायु बहुतायत उलीचे।
कू-कू करती कोयल बोले,
करे कामभाव प्रहार॥
"स्व" समीप मानुष आ जाये,
महासुखी फिर वह कहलाये।
यहां पर आना सार्थक हो जाये,
सुन उद्गीत उच्चार॥
बालक, युवा, प्रौढ़, व वृद्ध,
पाकर मस्ती, हो जाते शुद्ध।
वरदान यह रंगों का उत्सव,
परस्पर घृणा पर करता प्रहार॥
प्रेम-पियास
प्रेम शब्द का रखना तुम मान
रोशनी से भर देता मन को मेरे
बन प्रकाश पुंज समान
उतरता जब ह्रदय की गहराइओं में
होता इसकी प्रत्येक ध्वनि का भान
कोई कोना, कोई किनारा
खाली नहीं रहा मन में मेरे
प्रेम का न पहुंचा हो जहां ज्ञान
तुम आये जब से पास
होता संपूर्णता का एहसास
अंधेरे मौन जीवन में
तुम्हीं हो संगीत की मधुर तान
पतझड़ का एक सुखा पत्ता थी मैं
अकेला छोड़ भूला दिया गया जिसे
बंसत बन, आये तुम
बांसती हो गई मेरी प्रत्येक शाम
भावों को अभिव्यक्ति तुमने दी
शब्दों का यहां क्या है काम
एक संप्रेक्षण यह तुमसे
बोलने को आतुर अब मौन॥
मिलने की आशा
दिन पर दिन बीत रहे हैं
बैठकर दिनों का हिसाब लगाती हूं
तुम आओगे एक दिन मिलने मुझसे
मन में मिलने की आशा जगाती हूं
दिन बदलते हफ्तों में
हफ्तों का महीनों में बदलना
एक एक पल सालों के समान
क्या यह ठीक नहीं, हम दोनों का साथ रहना
इंतजार बहुत लंबा हो जाता
ऐसा कोई पल नहीं जब
मन मेरा तुम्हें अपने पास नहीं पाता
याद करती हूं तुम्हारे प्रथम स्पर्श को
अपने होठों पर अंकित ह्रदय में उतरे चुंबन को
तुम्हारे प्यार भरे स्पर्श से
मेरी धड़कनों का तीव्र होना
एक-दूसरे की बांहों में
आंखों ही आंखों में सारी रात बिताना
मिलन के पल मिलने की आशा जगाते हैं
आ जाओ एक बार मेरे ह्रदय में बसे प्रिय
सूर्य छिप गया है अब तारे झिलमिलाते हैं...........॥
10 टिप्पणियाँ
मधुर कवितायें।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअच्छी कविताए...बधाई
जवाब देंहटाएंKeep it up aruna.
जवाब देंहटाएंnice poem
जवाब देंहटाएं- Alok Kataria
बहुत ही बढिया कविताएं हैं, विशेषकर मां के प्रति लिखी गई कविता।
जवाब देंहटाएंडा. सुरेश कुमार
सभी कवितायें अच्छी बन पडी हैं।
जवाब देंहटाएंNICE POEMS
जवाब देंहटाएंnice ....all the best
जवाब देंहटाएंसुन्दर कवितायें हैं अरुणा.....भावाभिव्यक्ति बड़ी गहरी है लेकिन नई कविता में तुकबंदी ख़त्म हो गयी है,अतः इस पर जोर ना देकर विचारों की सघनता को व्यक्त करने का प्रयास करो .......
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.