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संपादकीय - अंक १ मई, २०१२

आज पहली मई है। सन दो हज़ार बारह। हम साहित्यशिल्पी का नया अंक ले कर आपके सामने हाजि़र हैं। नये कलेवर में, नयी सज्जा और नयी रचनाशीलता के साथ। मैं 30 मार्च को नौकरी से रिटायर हुआ। लगभग 42 बरस तक नौकरियां करने के बाद। मज़ाक ही मज़ाक में दोस्तों से कहता रहा - फर्स्ट र्इनिंग डिक्लेयर्ड। सिक्टी नॉट आउट। रेडी फॅार सेकेंड ईनिंग। वैसे भी नौकरी से रिटायर हुआ हूं। लेखन से नहीं। यहां तो ईनिंग न तो डिक्लेयर होती है न खत्म। जब तक चाहो, खेलो। कोई रोक नहीं। कोई टार्गेट नहीं पीछा करने के लिए। बयालीस बरस की लम्बी ईनिंग खेलने के बाद कुछ दिन आराम करना चाहता था ताकि अपनी दूसरी पारी के लिए अपने आपको तैयार करूं कि फरमान हुआ – साहित्यशिल्पी.कॉम आपको संभालनी है।.....। पत्रिका का काम संभालने के लिए इससे बेहतर दिन कौन सा हो सकता था। आज मई दिवस है। पूरी दुनिया में मेहनतकश और हर दिन एक नया संघर्ष करने वाली सबसे बड़ी जनसंख्या का दिन। हर बार हम नये नारे सुनते हैं इस दिन लेकिन मज़दूर की हालत जस की तस है पूरी दुनिया में। बेशक कहीं हालात बेहतर भी हुए होंगे लेकिन बदतर भी कम नहीं हुए हैं।.....। किस हाल में है आज हमारा मजदूर, इसे बहुत ही ईमानदारी, सादगी और पुख्तां आवाज़ में बयान किया है विपिन चौधरी ने अपनी कविताओं में जो उन्होंने खास तौर पर साहित्यशिल्पीं के प्रवेशांक के लिए लिखी हैं। क्या् कविता कर्म भी मज़दूरी की तरह है? हम बेशक इसे मानते हुए हिचकिचायें लेकिन मेरा दागिस्तान के लेखक रसूल हमजा़तोव तो कम से कम यही मानते हैं। देस परदेस में उनकी आत्मकथा से इस बात को रेखांकित करने वाला अंश हमने खास तौर पर आज के लिए चुना है। ये अध्याय बहुत रोचक लेकिन थोड़ा बड़ा है। अगले दो अंकों में भी जारी रहेगा। विरासत में हम कथामनीषी शेखर जोशी की अप्रतिम प्रेम कहानी कोसी का घटवार दे रहे हैं। पिछले दिनों ही पुस्तक दिवस गुजरा है और इसी अवसर पर विशेष में प्रस्तुत है सफदर हाशमी की कविता। भाषा सेतु में मराठी के प्रसिद्ध जनकवि नारायण सुर्वे की बेहद लोकप्रिय कविता है। साक्षात्कार में व्यास सम्मान प्राप्त वरिष्ठ लेखिका मृदुला गर्ग से बातचीत है तो प्रेरक प्रसंग में फ्रांज काफ्का के बचपन की एक बहुत ही मार्मिक घटना है। एक बिल्कुल नयी तरह‍ का कॉलम है- मेरे पाठक। हम पाठक को बेशक ध्यान में रख कर न लिखते हों लेकिन अंतत: लिखा तो उसी के लिए जाता है। हर लेखक को उसके पाठक अलग तरह के अनुभव दे कर जाते हैं। पाठक कभी कहते हैं कि आपने तो मेरी ही कहानी लिख दी तो कभी पाठक रूठते भी हैं कि आपने अपनी कहानी का ऐसा अंत‍ क्यों किया। इस कॉलम में हमारे लेखक अपने पाठकों से मिले अनुभव शेयर करेंगे। शुरुआत कर रहे हैं वरिष्ठ रचनाकार प्रताप सहगल। आओ धूप में हम किसी भी नवोदित रचनाकार की पहली और अब तक अप्रकाशित रचना छापेंगे। मैंने पढ़ी किताब में किसी न किसी चर्चित किताब के पढ़े जाने के बारे में हम बात करेंगे। इस बार की किताब है पाब्लो नेरूदा की आत्मकथा। इस कॉलम के लिए आप भी अपनी पढ़ी यादगार किताबें पाठकों के साथ शेयर कर सकते हैं। पत्रिका आज अपने पाठकों को एक अनूठा उपहार दे रही है। ई-बुक के रूप में जार्ज आर्वेल के बेहद लोकप्रिय उपन्याएस एनिमल फार्म के अनुवाद की किताब। आपको ये उपहार पसंद आयेगा। हिंदी में ईबुक्स का चलन कम है बेशक अब जरूरत महसूस होने लगी है ऐसी किताबों की। हम इसे नियमित रूप से आगे बढायें‍गे। आप इस किताब को डाउनलोड करके अपने लिए सहेज कर रख सकते हैं।.....। आपकी रचनाओं, प्रतिक्रियाओं, सुझावों और पत्रिका का एक बड़ा पाठक वर्ग तैयार करने में आपके सहयोग का हमें बेसब्री से इंतजार रहेगा।
आपका ही,
सूरजप्रकाश

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1 टिप्पणियाँ

  1. मुझे पूरा विशवास है के आप जैसे कर्मठ, साहित्य साधक की देख रेख में साहित्य शिल्पी नयी ऊचाइयां छूने में कामयाब होगा. मेरी शुभकामनाएं स्वीकारें

    नीरज

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