विचार
विचारों की कोई परिभाषा नहीं
होती
वो तो मन के बादलों पर बैठकर
कहीं भी बरस जाते हैं,
ज्ञान की कश्ती में बैठकर भीडूब जाते हैं,
हवा में बहते-बहते थम जाते हैं,
क्रोध को बुझाते हुए
खुद जल जाते हैं,
प्रेम को फैलाते हुए
देह में सिमट जाते हैं,
करुणा को रोकते हुए
अश्कों में बह जाते हैं
और तुझसे कुछ कहते-कहते
चुप हो जाते हैं।
वो तो मन के बादलों पर बैठकर
कहीं भी बरस जाते हैं,
ज्ञान की कश्ती में बैठकर भीडूब जाते हैं,
हवा में बहते-बहते थम जाते हैं,
क्रोध को बुझाते हुए
खुद जल जाते हैं,
प्रेम को फैलाते हुए
देह में सिमट जाते हैं,
करुणा को रोकते हुए
अश्कों में बह जाते हैं
और तुझसे कुछ कहते-कहते
चुप हो जाते हैं।
एक अदद आदमी एक अदद औरत
एक अदद आदमी
एक अदद औरत
बस मुझे प्रकृति रहने दो
इससे कम मुझे जिस्म नहीं होना
इससे ज्यादा मुझे रूह नहीं बनना
मुझे बनना है फिर वही हव्वा
तुममें देखना है फिर वही आदम
और चखना है फिर वही वर्जित फल
अपने गुनाहों पर शर्मसार होने
मंजूर है मुझे यदि इस गुनाह के बाद
हम प्रकृति हो जाते हैं
सिर्फ एक अदद आदमी
एक अदद औरत.....
हाँ इसे ही तो कहते है न
पिछले जन्मों के धागे पकड़ना
कि मुझे अब भी याद है
उस वर्जित बाग की कहानी
जब तुम हुआ करते थे आदम
और मैं हुआ करती थी हव्वा
बस एक अदद आदमी
एक अदद औरत....
एक अदद औरत
बस मुझे प्रकृति रहने दो
इससे कम मुझे जिस्म नहीं होना
इससे ज्यादा मुझे रूह नहीं बनना
मुझे बनना है फिर वही हव्वा
तुममें देखना है फिर वही आदम
और चखना है फिर वही वर्जित फल
अपने गुनाहों पर शर्मसार होने
मंजूर है मुझे यदि इस गुनाह के बाद
हम प्रकृति हो जाते हैं
सिर्फ एक अदद आदमी
एक अदद औरत.....
हाँ इसे ही तो कहते है न
पिछले जन्मों के धागे पकड़ना
कि मुझे अब भी याद है
उस वर्जित बाग की कहानी
जब तुम हुआ करते थे आदम
और मैं हुआ करती थी हव्वा
बस एक अदद आदमी
एक अदद औरत....
हम ही तो है जो बचाएँगे
पृथ्वी को
प्रलय के क्षणों में
जब कोई नहीं बचेगा
और हम दो रह जाएँगे
बस एक अदद आदमी
एक अदद औरत
और जीवन की निरंतरता.....
प्रलय के क्षणों में
जब कोई नहीं बचेगा
और हम दो रह जाएँगे
बस एक अदद आदमी
एक अदद औरत
और जीवन की निरंतरता.....
संवाद
वो एक
पूरा संवाद था
जब तुमने कहा था
ऐसा कुछ विशेष नहीं हमारे बीच
जो रहे सदियों तक
और हम उस सदी को
हर पल जीते रहें।
वो पूरा संवाद था
जिसे मैं उठाकर लाई थी
अपनी पलकों के किनारे पर रखकर
बावजूद इसके कि
वह ऊपर से छलक रहा था
वो पूरा संवाद था
जिसे मैं नाराज़गी बनाकर
निकाल सकती थी कुछ बरस और
यूँ ही तन्हाइयों में छुपाकर
लेकिन जब उसे दोबारा देखा
तो लगा कुछ रह गया मुझसे वहीं पर
जहाँ तुम खड़े थे
और मैं गुज़र गई थी तुमसे होकर
मैं शायद भूल आई हूँ
अपनी साँसे तुम्हारे लबों पर
कुछ पल खामोश ही रहना
मैं उठा लूँ अपनी साँसे
इससे पहले कि तुम
फिर कहो कि
ऐसा कुछ विशेष नहीं हमारे बीच।
जब तुमने कहा था
ऐसा कुछ विशेष नहीं हमारे बीच
जो रहे सदियों तक
और हम उस सदी को
हर पल जीते रहें।
वो पूरा संवाद था
जिसे मैं उठाकर लाई थी
अपनी पलकों के किनारे पर रखकर
बावजूद इसके कि
वह ऊपर से छलक रहा था
वो पूरा संवाद था
जिसे मैं नाराज़गी बनाकर
निकाल सकती थी कुछ बरस और
यूँ ही तन्हाइयों में छुपाकर
लेकिन जब उसे दोबारा देखा
तो लगा कुछ रह गया मुझसे वहीं पर
जहाँ तुम खड़े थे
और मैं गुज़र गई थी तुमसे होकर
मैं शायद भूल आई हूँ
अपनी साँसे तुम्हारे लबों पर
कुछ पल खामोश ही रहना
मैं उठा लूँ अपनी साँसे
इससे पहले कि तुम
फिर कहो कि
ऐसा कुछ विशेष नहीं हमारे बीच।
मेरे सपने मुझे सोने नहीं देते
मेरे सपने
मुझे सोने नहीं देते
कभी रात की चादर पर पड़ी
सलवटों से चुभते हैं
तो कभी दिन के आसमां से
जलती धूप से बरसते हैं
मैं अकसर रातों में उठकर
उन सलवटों को हटाता हूँ
और भरी दोपहर
काला चश्मा पहनकर निकलता हूँ।
यदि रात एक करवट में निकाल भी लूँ
तो पीठ का दर्द बनकर दिनभर सताते हैं
चश्मे से आँखें तो बचा ली
लेकिन बालों में चाँदी से चमचमाते हैं।
एक छोटी कैंची से
बालों में उग आए सपनों को काटता हूँ
और आइने के सामने फिर जवाँ हो जाता हूँ
पीठ का दर्द तो किसी को दिखाई नहीं देता
सो अकेले ही सहन कर जाता हूँ
मेरे सपने जो मुझे सोने नहीं देते
नींद की गोलियों से उन्हें भगाता हूँ
वो जब तक चले नहीं जाते
तब तक सोने का स्वाँग रचाता हूँ
वो जाते भी कहाँ हैं
कभी दराज़ में पुराने ख़त की तरह फड़फड़ाते हैं
तो कभी तकिए को गीला कर जाते हैं
और जब दुनिया से दूर
खुद को तन्हा पाता हूँ
तो मेरे सपने जो मुझे सोने नहीं देते
उन्हें अपने सिरहाने रखकर सो जाता हूँ ।
कभी रात की चादर पर पड़ी
सलवटों से चुभते हैं
तो कभी दिन के आसमां से
जलती धूप से बरसते हैं
मैं अकसर रातों में उठकर
उन सलवटों को हटाता हूँ
और भरी दोपहर
काला चश्मा पहनकर निकलता हूँ।
यदि रात एक करवट में निकाल भी लूँ
तो पीठ का दर्द बनकर दिनभर सताते हैं
चश्मे से आँखें तो बचा ली
लेकिन बालों में चाँदी से चमचमाते हैं।
एक छोटी कैंची से
बालों में उग आए सपनों को काटता हूँ
और आइने के सामने फिर जवाँ हो जाता हूँ
पीठ का दर्द तो किसी को दिखाई नहीं देता
सो अकेले ही सहन कर जाता हूँ
मेरे सपने जो मुझे सोने नहीं देते
नींद की गोलियों से उन्हें भगाता हूँ
वो जब तक चले नहीं जाते
तब तक सोने का स्वाँग रचाता हूँ
वो जाते भी कहाँ हैं
कभी दराज़ में पुराने ख़त की तरह फड़फड़ाते हैं
तो कभी तकिए को गीला कर जाते हैं
और जब दुनिया से दूर
खुद को तन्हा पाता हूँ
तो मेरे सपने जो मुझे सोने नहीं देते
उन्हें अपने सिरहाने रखकर सो जाता हूँ ।
3 टिप्पणियाँ
एक छोटी कैंची से
जवाब देंहटाएंबालों में उग आए सपनों को काटता हूँ
और आइने के सामने फिर जवाँ हो जाता हूँ.........सुंदर कविता लिखने के लिए बधाई
Achchhi kavtai badhai
जवाब देंहटाएंशैफ़ाली की कविताएं सुन्दर हैं, प्रभाव छोड़ने में सक्षम हैं।
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.