पत्थर दिल
रमेश कब कैसे, किन हालात के कारण इतना बदल गया यह अंदाजा लगाना उसके पिता सेठ दीनानाथ के लिये मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा लगा. अपने घर की दहलीज पार करके उसके बंगले के सामने खड़े होकर सोचते रहे - जो मान-सम्मान, इज्ज़त उम्र गुज़ार कर पाई आज वहीं अपने बेटे की चौखट पर झुकेगी, वो भी इसलिये कि उसकी पत्नी राधा मरन-शैया पर लेटी अपने बेटे का मुंह देखने की रट लगाये जा रही थी - मजबूरन यह क़दम उठाना पड़ा.
दरवाज़ा पर लगी बेल बजाते ही घर की नौकरानी ''कौन है?'' के आवाज़ के साथ उन्हें न पहचानते हुए पूछ बैठी " आपका परिचय"?
''मै रमेश का बाप हूँ, उसे बुलाएं'' और नौकरानी चकित मुद्रा में कुछ सोचती हुई अंदर संदेश लेकर गई और तुरंत ही रोती सी सूरत लेकर लौटी। जो उत्तर वह लाई भी वह तो उसके पीछे से आती तेज़ तलवार की धार जैसी उस आवाज़ में ही दीनानथ जी को सूद समेत मिल गया।
''जाकर उनसे कह दो यहां कोई उनका बेटा-वेटा नहीं रहता। जिस ग़ुरबत में उन्होने मुझे पाला पोसा,उसकी संकरी गली की बदबू से निकल कर अब मैं आज़ाद आकाश का पंछी हो गया हूँ। मै किसी रिश्ते-विश्ते को नहीं मानता। पैसा ही मेरा भगवान है। अगर उन्हें जरूरत हो तो कुछ उन्हें भी दे सकता हूँ जो शायद उनकी पत्नी की जान बचा पायेगा........".! और उसके आग ख़ामोशियों के सन्नाटे से घिरा दीनानाथ लड़खड़ाते क़दमों से वापस लौटा, जैसे किसी पत्थर दिल से उनकी मुलाकात हुई हो।
3 टिप्पणियाँ
MAARMIK LAGHU KAATHA ` PATTHAR DIL ` KE LIYE
जवाब देंहटाएंDEVI NAGRANI KO BADHAAEE .
मार्मिक लघुकथा..
जवाब देंहटाएंwah kya baat hai bete .kal tum bhi wahi khade hoge jahan aaj tera yeh badnasib ,garib baap khada hai.tab isi gande mukh se kahoge"jo diya wohi paya.
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.