मैंने पिछले दिनों मंटो की किताब ‘’लज्जते संग’’ का हिंदी अनुवाद ‘’गुनहगार मंटो’’ पढ़ी जिसमें उनकी कहानियां ‘धुआं’, ‘बू’, ‘ठंडा गोश्त’, ‘काली सलवार’, ‘खोल दो’ और ‘यह कहानी’ पर चले मुकदमों के बारे में मंटो की सफाई दी गई है। ये कहानियां भी पुस्तक में शामिल हैं। हिंदी अनुवाद शकील सिद्दीकी ने किया है और किताब वाणी प्रकाशन ने प्रकाशित की है।
शकील सिद्दीकी ने भूमिका में लिखा है कि मंटो को अपने 21 वर्ष के छोटे से साहित्यिक जीवन में लगभग दस वर्ष अदालतों के चक्कर लगाने पड़े। थाना, जेल, अदालत, खाना तलाशी और सम्मन पर सम्मन। यह सब कितना यातनाप्रद रहा होगा इसका अनुमान लगा सकते हैं, वह भी एक संवेदनशील, नाजुक और बीमार आदमी के लिए।
अदब-ए-जदीद’ में मंटो ने बदलते जमाने के साथ लिखने के विषयों और शैली में बदलाव लाने की हिमायत की है। अपने पात्रों के चयन पर मंटो कहते हैं, ‘’चक्की पीसने वाली औरत जो दिन भर काम करती है और रात को इत्मिनान से सो जाती है, मेरे अफसानों की हीरोइन नहीं हो सकती। मेरी हीरोइन चकले की एक टखियाई रण्डी हो सकती है जो रात में जागती है और दिन में कभी कभी यह डरावना ख्वाब देख कर उठ जाती है कि बुढ़ापा उसके दरवाजे पर दस्तक देने आया है।‘
’धुआं’ कहानी में कुलसुम अपने छोटे भाई मसऊदी से कमर और पांव दबवाती है तो वह किशोर अपनी कल्पनाओं में खो जाता है। अपनी बहन और उसकी सहेली को गुत्थम गुत्था देख कर वह और भी हैरान हो जाता है। इस कहानी पर लगे इल्जाम के बारे में मंटो ने कहा, ‘मेरे अफसाने तन्दरुस्त और सेहतमंद लोगों के लिए है, नार्मल लोगों के लिए जो औरत के सीने को औरत का सीना ही समझते हैं, और इससे ज्यादा आगे नहीं बढ़ते।‘
‘काली सलवार’ कहानी में मंटो वेश्या जीवन की हकीकत बयान करते हैं। इधूराल्जाम के बारे में कहते हैं, ‘अगर वेश्या का जिक्र निषिद्ध है तो उसका पेशा भी निषिद्ध होना चाहिए। वेश्या को मिटाइये, उसका जिक्र खुद बखुद मिट जाएगा। वेश्या का मकान खुद एक जनाजा है जो समाज अपने कंधे पर उठाए हुए है।‘ मंटो मानते हैं कि वेश्या अपनी तारीक तिजारत के बावजूद रोशन रूह की मालिक हो सकती है।
‘खोल दो’ कहानी विभाजन पर एक दमदार कहानी है, मगर उसे भी अश्लील माना गया। ‘ठण्डा गोश्त’ भी विभाजन के दौरान दंगों के पृष्ठभूमि की कहानी है। मंटो के अनुसार ‘यह एक अफसाना है जिसका अकबी मंजर फसादात हैं, लेकिन असल में इसकी बुनियाद नफसियात पर कायम है...और इंसानी नफसियात का जिंस से चोली दामन का साथ है।
‘गुनहगार मंटो’ में अश्लीलता के आरोपों पर मंटो ने बहुत तर्कसंगत बयान दिए हैं। ज्यादातर मामलों में उन्हें बरी कर दिया गया और कुछ में उन्हें जुर्माना देना पड़ा था। उर्दू-हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय और महत्वपूर्ण कथाकार माने जाने वाले मंटो को संकीर्ण मानसिकता वाले के कारण झेले गए कष्टों और लेखन की स्वतंत्रता के संबंध में यह पुस्तक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाती है। गुनहगार मंटो है जो स्याह समाज का चित्रण करता है या उसपर इल्जाम लगाने वाले लोग।
4 टिप्पणियाँ
मंटो का लिखा निवर्तमान समय है , समय का वर्तमान है और भविष्य .. ये समय से आगे की बात कहता चलता है , इसलिए समाज के हलक से मंटों की कहानियां आज भी नहीं उतरतीं .
जवाब देंहटाएंसरिता ने पुस्तक की संक्षिप्त समीक्षा में काफी कुछ समेटा है .
बधाई ! सरिता ..
- अपर्णा मनोज
मंटो का लिखा निवर्तमान समय है , समय का वर्तमान है और भविष्य .. ये समय से आगे की बात कहता चलता है , इसलिए समाज के हलक से मंटों की कहानियां आज भी नहीं उतरतीं .
जवाब देंहटाएंसरिता ने पुस्तक की संक्षिप्त समीक्षा में काफी कुछ समेटा है .
बधाई ! सरिता ..
- अपर्णा मनोज
Badhiya Samiksha hai.
जवाब देंहटाएंसत्सैय्या के दोहरे ,ज्यो नाविक के तीर ,
जवाब देंहटाएंदेखन में छोटे लगे , घाव करे गंभीर ,
सरिता जी आपमें एक अच्छे समीक्षक के गुण देख रहा हु , प्रभु आपको बढ़ने की सकती दे ,,,
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.