अनुवाद: विम्मी सदारंगानी
1. काश! समझदार न बनूं $- अतिया दाऊद (कराची, सिन्ध)
अनुभवी ज़हन, जो सबकुछ समझ जाता है
उस ज़हन में सभी सोचों को बंद करके
ताला लगा दूं।
चालाक आँखें, जो सबकुछ ताड़ लेती हैं
उन पर अज्ञान के शीशे चढ़ा दूं।
अपने संवेदनशील मन पर
बिल्कुल भी ध्यान न दूं।
भूतकाल के सारे मुशाहिदे और तजुर्बे
जे मेरे मन पर दर्ज हैं
उन सभी को खुरच डालूं।
मेरी अक़्ल, मेरी समझदारी
मेरे लिये अज़ाब बन गई है।
काश! मैं समझदार न होऊं
तुम्हारी उंगली पकड़कर
ख़्वाबों में ही चलती रहूं,
तुम्हारे साथ को हक़ीक़त समझ
सपनों में उड़ती रहूं,
तुम जो भी मनघड़त कहानी बताओ
किसी बच्चे की तरह सुनती रहूं,
मेरे दिमाग़ को पतंग बनाकर
तुम जैसे उड़ाओ, उड़ती रहूं,
मेरी अक़्ल मेरे लिए मुसीबत बनी
काश! समझदार न होऊं...
$ ‘अला! डाही म थियां, डाहियूं डुख डिसनि’ सूफ़ी सिन्धी कवि शाह अब्दुललतीफ़ भिटाई के बैत की पंक्ति जिसका अर्थ है, काश! मैं समझदार न होऊं,समझदार दुख पाती हैं’।
(काव्य संग्रह ‘अणपूरी चादर’ से)
अतिया दाऊद को सुप्रसिद्ध सिन्धी कवि शेख़ अयाज़ ने ‘सबसे अहम फे़मिनिस्ट सिन्धी लेखिका’ माना है। महिला सशक्तिकरण और समान अधिकार जैसे मुद्धों पर सक्रिय कार्य करने वाली अतिया की कविताओं और लेखों की छह पुस्तकें प्रकाशित हैं। उनकी आत्मकथा ‘आइने के सामने’ हिन्दी में राजकमल प्रकाशन द्वारा 2004 में और उर्दू में ऑक्सफ़ोर्ड युनिवर्सिटी प्रेस, कराची द्वारा 2009 में प्रकाषित की गई है। भारतीय संस्था ‘अखिल भारत सिन्धी बोली ऐं साहित सभा’ ने अतिया को ‘बेहतरीन सिन्धी अदीब अवार्ड’ से सम्मानित किया है।
----------
2. अहसास - माया राही (मुंबई, भारत)
तुम पर जब प्यार आया
जब तुम्हारे होंठों को चूमना चाहा
तो वहाँ
पहले से ही किन्हीं और होंठों के होने का
अहसास हुआ।
ठोकर खाई,
तुम्हारी ओर हाथ बढ़ाया
तुम्हारा हाथ थामना चाहा
तो वहां पहले से ही
किसी और का हाथ होने का
अहसास हुआ।
तुम्हारे पास खड़े रहकर
तस्वीर खिंचवाने की इच्छा हुई
तो पहले से ही किसी और का कंधा
तुम्हारे कंधे को छूता
तस्वीर खिंचवा रहा था।
आँखों में अथाह प्रेम भर
तुम्हारी नज़रों से प्यार बांटना चाहा
तो तुम्हारी नज़रें
पहले से ही किसी और की
नज़रों में अटकी दिखीं।
पता नहीं था मुझे कि
जीवनसाथी तो तुम मेरे हो
पर तुम्हारी और भी कई साथी हैं!!
(काव्यसंग्रह ‘अहसास’ से)
माया राही ने सत्तर के दशक में लिखना शुरू किया। फिर काफ़ी अर्से तक शांत रहीं। हाल ही में उनका काव्य संग्रह ‘अहसास’ और कहानी संग्रह ‘ढाल’प्रकाषित हुआ है। उनकी रचनाओं में स्त्री पुरूष संबंधों का बेबाक विवेचन और वर्णन है।
----------
3. सवाल की तलाश - विम्मी सदारंगानी
रात रानी है लड़की
दिन भर ख़ामोश
रात को चंचल और मस्त।
सूरज है लड़की
अपनी आग में स्वयं जलती है
शाम को डूब जाती है।
सपना है लड़की
चादर ओढ़कर
जो झूठमूठ की नींद करता है।
काग़ज़ की नाव है लड़की
बहती चली जाती है
किसके हाथ लगेगी
यह परवाह किये बिना।
हवा है लड़की
उसकी हंसी पीछा कर रही है
सुनहरी काग़ज़ के फटे हुए टुकड़ों का।
एक द्वीप है लड़की
उसकी चीख़ें चिल्लाहटें गुम हो जाती हैं
आसपास लिपटी लहरों के शोर में।
पेड़ है लड़की
उसके बदन से नित नई बांहें
और बांहों में नए हाथ फूटते रहते हैं,
दो हाथों से वह सारा काम नहीं कर पाती।
ब्राइडल क्रीपर फूल है लड़की
साल में सिर्फ़ पंद्रह दिन खिलती है
और बाक़ी तीन सौ पचास दिन
उसकी सज़ा भोगती है।
लड़की एक सच है
जिसे झूठ से डर लगता है
झूठ छाती ठोककर आता है
और सच के सीने पर दाग़ लगा जाता है।
लड़की है एक जवाब
सवाल की तलाश में लगी हुई।
विम्मी सदारंगानी का नाम सिन्धी कविता जगत में ताज़ा हवा का झोंका माना जाता है। इनके तीन काव्य संग्रह प्रकाशित हैं - ‘सोनहरी रंग जी काराण’ (1996), ‘सिजु अलाए किथे किरी पियो’ (2004) और ‘सवाल की तलाश’ (2011)। लेखक-आलोचक सतीश रोहरा के अनुसार, विम्मी की कविताओं की विषेशता इनका निजीपन और जीवन की मासूमियत है। विम्मी की कविताएं एकदम तरल हैं, पाठक को शुष्क से बचा लेती हैं। कृष्ण खटवाणी के अनुसार, ‘ विम्मी का इज़हार सलोना और सच्चा है, बिना जे़वरों वाला; इसीलिये दिल तक पहुँचता है।’
5 टिप्पणियाँ
LADKI KE SUNDAR SAPNON AUR KATU YATHARTH PAR SUNDAR KAVITAYEN.
जवाब देंहटाएंBadhaai is khaas ank ke liye Suraj Prakash ji aur Sahitya Shilpi Team ko.. shukriya Sarita Sharma ji..
जवाब देंहटाएंKya sunder man ko jhanjodh karne wali kavitaya hai!!!aur fir lagata hai ki samaj ko badlo abhi bhi women are not respected and accepted !!
जवाब देंहटाएंBina
shandar anuwad ..antim kavita khas pasand aayi . badhai! Vimmi ..
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया बीना जी और अपर्णा :)
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.