देस परदेस में
इस बार सोहराब सेपेहरी (7 अक्तूबर 1928 – 21 अप्रैल 1980) की
कविता
सोहराब एक चर्चित
आधुनिक फारसी कवि और चित्रकार थे। सोहराब फारसी ‘’नव कविता’’ के पांच सर्वाधिक
चर्चित एवं अग्रणी हस्ताक्षरों में से एक होने के साथ ही साथ ईरान के सर्वप्रमुख
आधुनिकतावादी चित्रकार भी माने जाते हैं। उनकी कविताएं मानवतावाद का परचम बुलंद
करती हैं। रक्त कैंसर के दौर में रची इस कविता में सोहराब के मानवीय सरोकार देखने
योग्य हैं।
अनुवाद एवं प्रस्तुति
शाहिद अख्तर
चाहत
[I
want to be a peddler, peddling through streets]
मैं चाहता हूं लौटना
एक दिन संदेश के साथ
उंड़ेलने तुम्हारे रगों में रोशनी
और यह पुकारने: ‘’ऐ लोग जिनकी झोलियां भरी हैं नींद से
मैं लाया हूं तुम्हारे लिए लाल सेब
बिल्कुल उगते सूरज की तरह। ’’
मैं चाहता हूं लाना
भिखारी के लिए फूल
देना चाहता हूं तोहफे में
कोढ़ से पीडि़त सुंदर महिला को
कान की बालियां
और चाहता हूं उस अंधे के साथ बांटना
पुरबहार बाग का हुस्न
मैं चाहता हूं
बन कर फेरी वाला बेचता चलूं यूं ही
सड़कों पर
आवाज लगाऊं: ‘’ले लो ले लो शबनम
लाया हूं तुम्हारे लिए कतरे शबनम के...’’
और जब कोई पास से गुजरती हुई राहगीर
आह भरे और कहे:
’’उफ्फ कितनी स्याह है यह रात’’
तो उसे तोहफे में दे डालूं
सारी की सारी आकाशगंगा
और पुलिया पर बैठी उस अपाहिज लड़की के
गले में प्यार से डालूं
सितारों का एक हार
और जो लब कोसते हैं
उन पर उगाना चाहता हूं
बगिया फूलों की
तोड़ डालना चाहता हूं
जहां भी दिखे
दीवारें फुट और बंटवारे की
4 टिप्पणियाँ
साहित्य शिल्पी पर विविधता अच्छी लग रही है।
जवाब देंहटाएंऔर जो लब कोसते हैं
जवाब देंहटाएंउन पर उगाना चाहता हूं
बगिया फूलों की
तोड़ डालना चाहता हूं
जहां भी दिखे
दीवारें फुट और बंटवारे की
प्रस्तुति की बधाई और सूरज जी को धन्यवाद।
गरीबों के लिए चिंता करती आशा की उम्मीद बांधती कविता का सहज अनुवाद.
जवाब देंहटाएंअच्छा अनुवाद...अच्छी कविता...बधाई
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.