ब्रह्मदेव जी देहरादून के जाने माने चित्रकार और कहानीकार थे। छठे और सातवें दशक में हर पत्रिका में उनकी कहानियां और उनके खींचे चित्र देखे जा सकते थे। वे नेहरू जी के प्रिय फोटोग्राफर थे। जब कम्यूटर बड़े पैमाने पर आया तो वे लगभग 75 बरस के थे लेकिन उन्हों ने बाकायदा कम्यू़टर सीखा और उस पर काम भी किया।
ये किस्सा् उस समय का है जब 80 बरस की उम्र के आस पास उनके शरीर पर लकवे, पेरेलिसेस का हमला हुआ। मुंह विकृत हो गया। शरीर का दायां हिस्सा, लगभग बेकार हो गया। वे तब इशारों से ही बात कर पाते थे लेकिन मिलने आने वालों को देख कर बहुत खुश होते थे।
हमारे कहानीकार मित्र गुरदीप खुराना उनसे मिलने गये। ब्रह्मदेव जी के छोटे भाई ने गुरदीप जी के लिए पैग बनाया। गुरदीप जी को अच्छा नहीं लग रहा था कि हमेशा ब्रह्मदेव जी के साथ पीते थे, आज उनके हाल चाल पूछने आये हैं तो अकेले पीनी पड़ रही है। गुरदीप जी ने शरारतन अपने हाथ का गिलास उन्हें दिखाते हुए पूछा - लेंगे क्या।। ब्रह्मदेव जी ने मुंह हिला कर मना कर दिया। बायें हाथ के इशारे से बताया - बायें हाथ से नहीं पीऊंगा। पीऊंगा तो दाहिने हाथ से ही।
और चमत्कार देखिये कि ब्रह्मदेव जी पूरी तरह से ठीक हुए और दायें हाथ से पीने के लिए गाड़ी चला कर खुराना जी के घर तक आये। उस वक्ता मैं भी वहीं मौजूद था।
सूरज प्रकाश
{चित्र सौजन्य - oilpaintingsframes.com से साभार}
3 टिप्पणियाँ
सचमुच रोचक
जवाब देंहटाएंमनुष्य में जिजीविषा हो तो मृत्यु को भी एक बार धता बता देता है. एक अच्छा प्रसंग...प्रेरणादायी.
जवाब देंहटाएंरूपसिंह चन्देल
रोचक प्रसंग..
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.