1.
तू किसी को ख़्वाब की मानिंद
अपनी नींदों में रखे ये रज़ा है तेरी
पर यहां किस कंबख्त को नींद आती है ?
अरे, तुझसे भले तो ये अश्क हैं
कभी मुझसे जुदा जो नहीं होते!
टपक ही पड़ते हैं
भरी महफि़ल या तन्हाई में
कहीं भी, कभी भी
बेमौसम बरसात की तरह।
2.
ये हो न सका !
चाहा तो था बहुत
कि दिल में नफ़रत का गुबार
भर जाए तुम्हारे प्रति
पर जहां पहले से ही
मुहब्बत पाँव पसारे बैठी थी
वहाँ चाहकर भी ये हो न सका
मुझे माफ़ कर देना, ऐ दिल !
मैं दिमाग़ की सुन न सका
दिल और दिमाग़ के द्वन्द्व में
ये हो न सका
चाहा तो था बहुत......
3.
कैसा लगता है.......
मुझे पता है कैसा लगता है.......
जब सब कर रहे होते हैं इंतज़ार
बड़ी बेसब्री से, रविवार की शाम।
कब शाम हो और मेरी आवाज़
लरज़ कर पहुंचे उन तक
हवाओं की मार्फत/
हवाओं पर होकर सवार।
मुझे यह भी पता है
कैसा लगता है जब
शहर में बारिश, आंधी-तूफान का
नियमित दौर जारी हो।
यह भी कि जब आप घंटों तक
अपने सुनने वालों का मनोरंजन करें,
अच्छे-अच्छे नगमें सुनाएं।
कैसा लगता है.....
और फिर घर वापसी के वक्त
मौसम की बेवफाई के कारण
यातायात के साधन भी
धोखा दे जाएं,
विशेषकर शहर की धुरी मेट्रो।
मेट्रो के निकट पार्किंग में धन्नो
इंतज़ार करती रहे और आप
उस तक पहुंच ही न पाएं
धन्नो तक पहुंचने में ही
घड़ी की सुईयां 8 से 10 पर पहुंच जाएं
और उस तक पहुंचते ही
वो मात्र 15 मिनटों में घर पहुंचा दे
रश्क होता है धन्नो की वफ़ा पर
दिल रोता है अन्य साधनों की बेवफ़ाई पर।
4.
आई बैसाखी
आज फिर आई है बैसाखी
दिन भर चलेगा दौर
एस एम एस, ईमेल, फेस बुक पर
बधाई संदेशों का....
याद हो आती है
इतिहास के पन्नों में दर्ज
एक वह बैसाखी जब
दशमेश ने 1699 में
जाति-पाति का भेद-भाव मिटा
मानवता की रक्षा खातिर
सवा लाख से एक को लड़ा
नींव रची थी खालसा पंथ की
शत-शत नमन, शत-शत वंदन
दशमेश के चरणों में।
क्या सचमुच आज
हर्षोल्लास का दिन है?
ऐसे में जब याद हो आती हो
इतिहास के पन्नों में दर्ज
1919 की वह खूनी बैसाखी
जब जलियांवाले बाग में
हज़ारों बेगुनाह, निरीह, निहत्थी ज़िंदगियां
बर्बरता और क्रूरता का शिकार हुईं।
उन परिजनों तक
कौन पहुंचाएगा संवेदना संदेश
शत-शत नमन, वंदन उनकी अमर शहादत को
जिसने रखी थी नींव इन्क़लाब की।
5.
इस धरा को जन्नत बनाएं हम
इक बूटा मुहब्बत का लगाएं हम
महका कर हर तरफ प्यार की खुशबू
मिटाए नफ़रतों का ज़हरीला प्रदूषण
आओ इस धरा को जन्नत बनाएं हम
न तेरी न मेरी हो सबकी ज़मीं ये
न तेरा न मेरा हो सबका चमन ये
हो खुशनुमा, हरियाला, प्यारा सा वतन ये।
आओ इस धरा को ज़न्नत बनाएं हम
इक बूटा मुहब्बत का लगाएं हम।
18 टिप्पणियाँ
नीलम शर्मा अंशु की कविताएं अच्छी लगीं। पहली दो कविताएं विशेषकर…
जवाब देंहटाएंसुभाष जी, उत्साहवर्धन हेतु बहुत-बहुत शु्क्रिया। ये मेरा प्रथम प्रयास है पिछले दो महीनों में। जिस क्रम में लिखी गईं, उसी क्रम में प्रकाशित हैं।
जवाब देंहटाएं-नीलम अंशु।
सुन्दर । आपको बधाई ।
जवाब देंहटाएंरोशन जी, तह-ए-दिल से शुक्रिया इस हौंसला अफ़ज़ाई के लिए।
जवाब देंहटाएंexcellant, specially no. 2 dil ko choo gayee......... aage bhi intezaar rahega aapki kavitaaon ka.
जवाब देंहटाएंbhut shaandar aur zizivisha ki jhalak
जवाब देंहटाएंकमल जी, चंदन जी बहुत-बहुत आभार आपका। दुआ करें कि आपका ये इंतज़ार सार्थक हो और मेरी जिजीविषा बरकरार रहे।
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंजसवीर बेगमपुरी जी से प्राप्त टिप्पणी -
जवाब देंहटाएंSabhi kavitayen lajwab hai mam....aisi rachnayen apani wall pe bhi sanjhi kia kijye g.... Jasvir Begampuri
अरे, तुझसे भले तो ये अश्क हैं
जवाब देंहटाएंकभी मुझसे जुदा जो नहीं होते!.... bahut sundar pankti he, neelam ji. jisme agadh sneh aur prem he. samarpan ki bhavna ko svar mila he.prateek sundar he. badhae.
मुझे माफ़ कर देना, ऐ दिल !
मैं दिमाग़ की सुन न सका...dil aur dimag k bich ka davnd sundar roop me bahar aaya he....sabhi kavitae sundar bhavo ko nirupit karti he, neelam ji....
मथु जी, बहुत-बहुत आभार। बहुत सुंदर विश्लेषण। उत्साहवर्धन हेतु फिर से शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंअच्छी लगीं कविताएं..
जवाब देंहटाएं"पर जहां पहले से ही
जवाब देंहटाएंमुहब्बत पाँव पसारे बैठी थी
वहाँ चाहकर भी ये हो न सका
मुझे माफ़ कर देना, ऐ दिल !"
चाहा तो था बहुत ......मगर क्यों ?
जो है वो शुभ है....स्वीकार भाव को चाहो,
मत कहना कि दिल को समझाया तो था बहुत.
बोलो ! बोल पाओगे ?
यही कहोगे न कि बोलना चाहा तो था बहुत.
शुभम !
नीलम,तुम्हारी कवितायें वाक़ई काबिले-तारीफ़ हैं। तुम्हारे अन्दर काव्य-प्रतिभा भी थी,जो अब सामने आई है।तुम्हारी कविताओं में विचारों की सहज अभिव्यक्ति है।
जवाब देंहटाएंकलम गतिशील रहे, मेरी शुभकामनायें ……। रावेल पुष्प/कोलकाता
रावेल जी, इसी तरह उत्साहवर्धन करते रहें मेरा। तह-ए-दिल से आभार।
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता....बधाई
जवाब देंहटाएंaapki sabhi kavitaon ne prabhavit kiya hai,badhai.
जवाब देंहटाएंअभिषेक जी, अशोक जी तह-ए-दिल से आभार।
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.