आत्म कथाएं पढ़ना मुझे हमेशा अच्छा लगता रहा है। लेखकों, दार्शनिकों, राजनैतिक हस्तियों, अभिनेताओं और इतर विभूतियों की आत्मकथाएं पढ़ते हुए हमेशा मुझे एक दुर्लभ सुख मिलता रहा है।
जब तक कोई आत्मअकथा पूरी नहीं पढ़ ली जाती, हमेशा ऐसा लगता रहता है, मानो अपने जीवन की संघर्षपूर्ण गाथा लिखने वाले उस दार्शनिक, नेता, अभिनेता या महान आत्माअ ने हमें अपने जीवन के ऐसे दुर्लभ पलों में झांकने की अनुमति दे दी हो, बीच-बीच हमें अपने साथ चाय पीने के लिए बुला लिया हो या शाम की सैर पर अपने साथ चहल-कदमी करने का न्यौता दे दिया हो। लेखक तब पूरी ईमानदारी से, आत्मीयता से और अपनी पूरी आस्था के साथ अपने जीवन के कुछ दुर्लभ, छुए, अनछुए किस्सों और घटनाओं की कहानी हमें खुद सुनाता लगता है। तब हम दोनों के बीच लेखक और पाठक का नाता नहीं रह जाता, बल्कि जैसे दो अंतरंग मित्र अरसे बाद मिल बैठे हों और भूली-बिसरी बातें कर रहे हों। लेखक हमारे साथ अपने अमूल्यि जीवन के कई अनमोल पल बांटता चलता है और हमें जाने-अनजाने समृद्ध करता चलता है। हमें पता ही नहीं चलता कि आत्म कथा के जरिये हम उसके लेखक के घर कई दिन गुज़ार आये हैं। एकाएक हम पहले की तुलना में कई गुना मैच्योकर, अनुभवी और अमीर हो गये हैं। हम दूसरों से अलग हो गये हैं।
जब तक कोई आत्मअकथा पूरी नहीं पढ़ ली जाती, हमेशा ऐसा लगता रहता है, मानो अपने जीवन की संघर्षपूर्ण गाथा लिखने वाले उस दार्शनिक, नेता, अभिनेता या महान आत्माअ ने हमें अपने जीवन के ऐसे दुर्लभ पलों में झांकने की अनुमति दे दी हो, बीच-बीच हमें अपने साथ चाय पीने के लिए बुला लिया हो या शाम की सैर पर अपने साथ चहल-कदमी करने का न्यौता दे दिया हो। लेखक तब पूरी ईमानदारी से, आत्मीयता से और अपनी पूरी आस्था के साथ अपने जीवन के कुछ दुर्लभ, छुए, अनछुए किस्सों और घटनाओं की कहानी हमें खुद सुनाता लगता है। तब हम दोनों के बीच लेखक और पाठक का नाता नहीं रह जाता, बल्कि जैसे दो अंतरंग मित्र अरसे बाद मिल बैठे हों और भूली-बिसरी बातें कर रहे हों। लेखक हमारे साथ अपने अमूल्यि जीवन के कई अनमोल पल बांटता चलता है और हमें जाने-अनजाने समृद्ध करता चलता है। हमें पता ही नहीं चलता कि आत्म कथा के जरिये हम उसके लेखक के घर कई दिन गुज़ार आये हैं। एकाएक हम पहले की तुलना में कई गुना मैच्योकर, अनुभवी और अमीर हो गये हैं। हम दूसरों से अलग हो गये हैं।
मैं सचमुच अपने आपको खुशकिस्मत मानता हूं कि मैं इसी बहाने से विश्व की महान विभूतियों से मिल कर आया हूं और उनके संघर्षों का प्रत्यंक्षदर्शी रहा हूं, उनके साथ मिल बैठने और बतियाने का असीम सुख पाता रहा हूं। मुझे ये दुर्लभ सुख भी मिला है कि मैं कुछेक विश्व प्रसिद्ध मनीषियों की आत्मकथाओं को हिंदी के पाठकों तक ला पाया हूं। अनुवाद की बात फिर सही।
कुछ ही दिन पहले मैंने रूपा एंड कम्पंनी द्वारा प्रकाशित पाब्लोष नेरूदा की आत्मककथा MEMOIRS पढ़ी। आत्म कथा पढ़ते हुए मुझे लगातार ये दुर्लभ सुख मिलता रहा कि मैंने इतने दिन इस महान प्रेम कवि, जन कवि, राजनीतिज्ञ और डिप्लोमैट के साथ गुज़ारे हैं और मैं पहले की तुलना में और समृद्ध हो गया हूं। आत्म़कथा पूरी करते ही मैंने उनकी और किताबें खोज कर पढ़ीं। मैं यह अफसोस मनाता रहा कि मैं इस कवि को पहले ही सिलसिलेवार क्यों नहीं पढ़ पाया।
नोबल पुरस्कार और दुनिया भर के तमाम सम्मानों से नवाजे गये पाब्लो (12 जुलाई 1904 - 23 सितम्बर 1973) की आत्मकथा से गुजरना एक ऐसा अनुभव था जिसकी आंच बरसों तक मेरे मन में बनी रहेगी। वे ऐसे जन कवि और प्रेम कवि थे जिन्होंने दुनिया के तमाम देशों में हजारों लाखों लोगों को अपनी कविताएं सुना कर मुग्ध किया। लुई कार्लोस प्रेस्तेज नाम के कम्यूंनिस्ट क्रांतिकारी नेता के सम्मा्न में उन्होंने एक लाख लोगों के हुजूम के सामने अपनी कविताएं सुनायीं थीं। उनके जीवन में ऐसे कई प्रसंग आते हैं जब वे कोयला खदान मजूरों को, सड़क पर काम कर रहे दिहाड़ी कामगारों को, सैनिकों को, आम जनता को, पार्टी वर्करों को अपनी प्रेम कविताएं सुना कर विभोर करते रहे हैं। चार्ली चैप्लिन ने शायद पाब्लो की कविताएं सुनने के बाद ही कहा होगा कि कविता दुनिया के नाम लिखा गया एक खूबसूरत प्रेम पत्र होती है। पाब्लो आजीवन दुनिया के नाम हजारों प्रेम पत्र लिखते और सुनाते रहे।
अपने बचपन के दिनों से शुरू करते हुए पाब्लो एक बेहतरीन किस्सागो की तरह हमें अपने जीवन में आये ऐसे हर शख्स से मिलवाते हैं जिसने भी उन्हें और उनकी कविता को प्रभावित किया। उस हर घटना का आत्मीय वर्णन हम इस किताब में देखते हैं जिनसे कोई आम आदमी कवि बनता है। वे डिप्लोमैट होने के नाते दुनिया भर में घूमें और हर क्षेत्र की विभूतियों के निकट सम्पर्क में आये। ऐसी सैकड़ों मुलाकातों का जिक्र है इसमें। पाब्लो बेहद ईमानदारी से अपने जीवन को संवारने वाले सभी मित्रों को तो याद करते ही हैं, वे उस कचोट को भी हमसे शेयर करते चलते हैं जो उन्हें पार्टी कमिटमेंट की वजह से और नौकरी के चलते उनके हिस्से में आयी। वे भारत भी आये थे और दूसरे नेताओं के अलावा नेहरू जी से भी मिले थे लेकिन उनके पास नेहरू जी से मुलाकात की बहुत अच्छी यादें नहीं थीं।
वे इतने स्पष्टवादी थे कि बेशक साहित्य के लिए उन्हें नोबल पुरस्कार मिला लेकिन इस पुरस्कार के पाने और देने के बीच दुनिया भर के लेखकों और आयोजकों के बीच हमेशा से चली आ रही जोड़तोड़ के हथकंडों पर तीखी टिप्पणियां करने से नहीं डरते।
पाब्लो अपने देश से और अपने देश वासियो से बहुत प्यार करते थे। वे अपने देश और देशवासियों की बेहतरी के लिए हमेशा अपनी सीमाओं से बाहर जा कर भी काम करते रहे और इन्हें इस बात का कई बार खामियाजा भी भुगतना पड़ा। उन्हें देश निकाला तक मिला। पाब्लो के देश से निकाले जाने के प्रसंग पर 1994 में इटली माइकल रैडफोर्ड ने एक बेहद खूबसूरत फिल्मं postino यानी पोस्टमैन बनायी थी। ये फिल्म मेरे पास है।
पाब्लो नेरूदा, आपकी आत्मकथा पढ़ कर और आपके रचना संसार से गुज़र कर मैं पहले की तुलना में और अमीर हो गया हूं।
आभार शब्द नहीं कहूंगा। ये तो आपकी पीढ़ी ने हमारी पीढ़ी को सौगात देनी ही थी। बेशक आपने दिल खोल कर दी। आमीन।
6 टिप्पणियाँ
आत्मकथा की महत्ता को बहुत सही ढंग से समझाया सूरज जी आप ने . हस्ती के चाय पर बुलाने वाली बात काफी सटीक लगी . ये स्तम्भ भी बहुत रोचक लगा . नेरुदा तो पढता रहता ही हूँ पर अब memoirs भी पढनी होगी .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिव्यांशु
पाब्लो नेरुदा के बारे में दिलचस्प जानकारी.संस्मरण से लेखक के जीवन और लेखन के अनेक पहलुओं के बारे में ज्ञात होता है.
जवाब देंहटाएंइतना रोचक वर्णन है कि सूरज जी नें इस किताब को बढने के लिये मजबूर कर दिया है।
जवाब देंहटाएंNice sir
जवाब देंहटाएंअच्छा वर्णन...बधाई
जवाब देंहटाएंआत्मकथा पढ़कर मुझे हमेशा ऐसा लगता है जैसे कि लेखक ने अपनी ज़िन्दगी के गुज़रे पलों और वर्तमान के बीच की दीवार में एक खिड़की खोल दी हो जिसके माध्यम से हम उन लम्हों से कुछ सीख समझ सकें. जान सकें उन बातों को जो एक महान व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक हुईं. अत: आत्मकथा लेखन में ईमानदारी सर्वोपरि है. आपके विवरण ने निस्सन्देह Memoirs पढ़ने की उत्कंठा जगा दी है.
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.