स्तंभ आओ धूप में इस बार प्रस्तुत हैं सजीव सारथी की कुछ गज़लें -
मुखौटा
पहचान लेता है चेहरे में छुपा चेहरा - मुखौटा।
मुश्तैद है, तपाक से बदल देता है चेहरा - मुखौटा।
कहकहों में छुपा लेता है, अश्कों का समुन्दर,
होशियार है, ढाँप देता है सच का चेहरा - मुखौटा।
बडे छोटे लोगों से, मिलने के आदाब जुदा होते हैं,
समझता है खूब, वक्त ओ हालात का चेहरा - मुखौटा।
देखता है क्यों हैरान हो कर, आईना मुझे रोज,
ढूंढता है, मुखौटों के शहर में एक चेहरा - मुखौटा।
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रूठे रूठे से हबीब
रूठे रूठे से हबीब, मिले हैं कुछ,
हमने पूछा तो कहा, गिले हैं कुछ।
ख्वाब बोये जो हमने, बुरा क्या किया,
चंद मुरझा गये तो क्या, खिले हैं कुछ।
जो कच्चे हैं, कडुवे हैं तो हैरत क्या,
पके फलों में भी तो पिलपिले हैं कुछ।
कहाँ रहा अब ये, प्रेम का ताल महल,
ईंट ईंट में अहं के किले हैं कुछ।
बस इतना समझ लीजिये तो बहुत है,
अपनी हदो से सब ही हिले हैं कुछ।
चुप रहिये, न बोलिये, कि छिल जायेंगे,
मुश्किलों से जख्म जो, सिले हैं कुछ।
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पहरे हैं जुबानों पर
पहरे हैं ज़ुबानों पर, लफ्ज़ नजरबंद है,
आजाद बयानों पर लगे, फतबों के पैबंद हैं।
फाड देते हैं सफहे, जो नागवार गुजरे,
तहरीर के नुमाईन्दे ऐसे, मौजूद यहाँ चंद हैं।
तस्वीरे-कमाल कितने रानाईये ख्याल,
मेहर है इनकी जो आज, मंजुषों मे बंद हैं।
हथकडियाँ दो चाहे,फाँसी पर चढवा दो,
जुल्म के हर वार ;पर, जोरे कलम बुलंद है।
पी कर के जहर भी, सूली पर मर कर भी
जिन्दा है सच यानी, झूठ के भाले कुंद हैं।
बेशक जोरो-जबर से, दबा दो मेरी चीख तुम,
आग है जंगल की, ये लौ जो अभी मंद है।
3 टिप्पणियाँ
अच्छी गजले
जवाब देंहटाएंअच्छी गजले
जवाब देंहटाएंअच्छी गज़ले...बधाई
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.