HeaderLarge

नवीनतम रचनाएं

6/recent/ticker-posts

जीवन के रंग में ‘सूरजप्रकाश’ की वो ‘अंडे वाली’

मैं अपने बड़े भाई के पास 1993 में गोरखपुर गया हुआ था। ड्राइंगरूम में ही बैठा था कि दरवाजा खुला और एक भव्य सी दिखने वाली लगभग पैंतीस बरस की एक महिला भीतर आयी, मुझे देखा, एक पल के लिए ठिठकी और फ्रिज में छः अंडे रखने लगी। तब तक भाभी भी उनकी आहट सुन कर रसोई से आ गयी थीं। दोनों बातों में मशगूल हो गयीं। थोड़ी देर बाद जब वह महिला गयी तो मैंने पूछा कि आपको अंडे सप्लाई करने वाली महिला तो भई, कहीं से भी अंडे वाली नहीं लगती। खास तौर पर जिस तरह से उसने फ्रिज खोल कर अंडे रखे और आप उससे बात कर रही थीं। जो कुछ भाभी ने बताया, उसने मेरे सिर का ढक्कन ही उड़ा दिया था और आज तक वह ढक्कन वापिस मेरे सिर पर नहीं आया है।

भाभी ने बताया कि ये लेडी अंडे बेचने वाली नहीं, बल्कि सामने के फ्लैट में रहने वाले फ्लाइट कमांडर की वाइफ है। उन्हें कैंटीन से हर हफ्ते राशन में ढेर सारी चीजें मिलती हैं। वैन घर पर आ कर सारा सामान दे जाती है। वे लोग अंडे नहीं खाते, इसलिए हमसे तय कर रखा है, हमें बाज़ार से कम दाम पर बेच जाते हैं। और कुछ भी हमें चाहिये हो, मीट, चीज़ या कुछ और तो हमें ही देते हैं।

एक फ्लाइट कमांडर की बला की खूबसूरत बीवी द्वारा (निश्चित रूप से अपने पति की सहमति से) अपने पड़ोसियों को हर हफ्ते पांच सात रुपये के लिए अंडे सिर्फ इसलिए बेचना कि वे खुद अंडे नहीं खाते, लेकिन क्यूंकि मुफ्त में मिलते हैं, इसलिए लेना भी ज़रूरी समझते हैं, मैं किसी तरह से हजम नहीं कर पाया था। उस दिन वे अंडे खाना तो दूर, उसके बाद 1993 के बाद से मैं आज तक अंडे नहीं खा पाया हूं।

एक वक्त था जब ऑमलेट की खुशबू मुझे दुनिया की सबसे अच्छी खुशबू लगती थी और ऑमलेट मेरे लिए दुनिया की सबसे बेहतरीन डिश हुआ करती थी। मैं आज तक समझ नहीं पाया हूं कि जो अधिकारी चार छः रुपये के अंडों के लिए अपना दीन ईमान बेच सकता है, उसके ज़मीर की कीमत क्या होगी।)

उस घटना के बाद से मुझे अंडे और ऑमलेट से स्थाययी रूप से एलर्जी हो चुकी है।

एक टिप्पणी भेजें

2 टिप्पणियाँ

  1. अर्चना यादव12 जून 2012 को 10:41 pm बजे

    खूब लिखा सूरज प्रकाश जी , ऐसे अंडे बेचने वाले हमारे देश मैं बहूत मिल जायंगे

    जवाब देंहटाएं
  2. सूरज भाई,

    यह एक फ्लाइट कमांडर की कहानी नहीं सैन्य अफसरों के यहां के विषय में जानकर शर्म से सिर नीचा हो जाएगा. यही नहीं मंत्रालयों, उनसे संबन्ध कार्यालयों---किसी एक विभाग की बात नहीं--लगभग सभी में बड़े अफसरों की बीबियां एक किलो आलू में अपना मात्र एक रुपया बचाने के लिए पांच-सात किलोमीटर दूर की सब्जी मंडी तक दौड़ा ले जाती हैं. यह सब उसी का हिस्सा है. ऎसे कारनामों में वे बड़े अपहसर भी लिप्त हैं जो लेखक हैं. उनकी नैतिकता केवल साहित्य में ही रहती है. दूसरों के लिए भाषण और अपने लिए क्दाचार के सभी दरवाजे खुले---क्या होगा इस देश का. भाई, अगर आपने उसे महिला को अंडे के स्थान पर पैक्ड मीट रखते देखा होता तो क्या करते --- आमलेट मुझे भी बहुत प्रिय है, लेकिन अब अफसोस यह कि आपके साथ उसका स्वाद नहीं ले पाउंगा.

    रूपसिंह चन्देल

    जवाब देंहटाएं

आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.

आइये कारवां बनायें...

~~~ साहित्य शिल्पी का पुस्तकालय निरंतर समृद्ध हो रहा है। इन्हें आप हमारी साईट से सीधे डाउनलोड कर के पढ सकते हैं ~~~~~~~

डाउनलोड करने के लिए चित्र पर क्लिक करें...