
घास-पात और खोइया ग़ायब
पोखर, ताल, तलैया ग़ायब
कट गए सारे पेड़ गाँव के
कोयल औ' गोरैया ग़ायब
सूख गई है नदी बेचारी
माँझी चुप हैं, नैया ग़ायब
सोहर, कजरी, फगुआ भूले
बिरहा, नाच-नचैया ग़ायब
नोट निकलते ए टी एम से
पैसा, आना, पइया ग़ायब
दरवाज़े पर कार खड़ी है
बैल, भैंस और गैया ग़ायब
सुबह हुई तो चाय की चुस्की
चना-चबेना, लइया ग़ायब
सारे मौसम बदल गए हैं
सावन की पुरवैया ग़ायब
भाभी देख रही हैं रस्ता
शहर गए थे, भैया ग़ायब
4 टिप्पणियाँ
बदलाव का सारांश कहती सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंवक्त के साथ बदलना जरूरी हैं पर इतना भी नहीं...... आभार
जवाब देंहटाएंवाह सर क्या खूब ग़ज़ल कही है ,,,,,,,,,,,, नए उपमानों से एक खूबसूरत ग़ज़ल ,,,,, बधाई
जवाब देंहटाएंक्या यह आप की रचना है? इंटर्नेट पर कई स्वरूप मिले इस के - मैं original वाला ढूँढती ढूँढती यहाँ पहुँच गयी - कृपया जवाब ज़रूर दें
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.