1.
जब वो मेरी ग़ज़ल गुनगुनाने लगे
तो रकीबों के दिल कसमसाने लगे
आप जिस बात पर तमतमाने लगे
हम उसी बात पर मुस्कुराने लगे
ग़म न जाने कहाँ पर हवा हो गए
साथ बच्चों के जब खिलखिलाने लगे
है मुनासिब यही, मयकशी छोड़ दे
पाँव पी कर अगर, डगमगाने लगे
फिर हमें देख कर मुस्कुराए हैं वो
फिरसे बुझते दीये जगमगाने लगे
जुल्म करके बड़े सूरमा जो बने
वक्त बदला तो वो गिड़गिडाने लगे
आज के दौर में, प्यार के नाम पर
देह का द्वार सब, खटखटाने लगे
जिन चरागों को समझा था मज़बूत हैं
जब हवायें चलीं टिमटिमाने लगे
ख्वाइशों के परिंदे थे सहमे हुए
देख 'नीरज' तुम्हें चहचहाने लगे
2.
तोड़ना इस देश को, धंधा हुआ
ये सियासी खेल अब गंदा हुआ
सर झुका कर रब वहां से चल दिया
नाम पर उसके जहां दंगा हुआ
तोल कर रिश्ते नफा नुक्सान में
आज तन्हा किस कदर बंदा हुआ
क्या छुपाने को बचा है पास
फिर आदमी जब सोच में नंगा हुआ
मौत से बदतर समझिये जिंदगी
जोश लड़ने का अगर ठंडा हुआ
आँख जब से लड़ गयी है आपसे
नींद से हर शब मिरा पंगा हुआ
दूर सारी मुश्किलें उस की हुईं
पास जिसके आपका कंधा हुआ
जो पराई पीर में "नीरज" बहा
अश्क का कतरा, वही गंगा हुआ
3.
ये कैसे रहनुमा तुमने चुने हैं
किसी के हाथ के जो झुनझुने हैं
तलाशो मत तपिश रिश्तों में यारों
शुकर करिये अगर वो गुनगुने हैं
बहुत कांटे चुभेंगे याद रखना
अलग रस्ते अगर तुमने चुने हैं '
दया' 'ममता' 'भलाई' और 'नेकी'
ये सारे शब्द किस्सों में सुने हैं
रिआया का सुनाओ दुख अभी मत,
अभी मदिरा है और काजू भुने हैं
यहाँ जीने के दिन हैं चार केवल
मगर मरने के मौके सौ गुने हैं
परिंदे प्यार के उड़ने दे 'नीरज'
हटा जो जाल नफरत के बुने हैं
4.
फासले मत बढ़ा इस कदर
दूँ सदाएं तो हों बेअसर
सोच मत, ठान ले, कर गुज़र
जिंदगी है बडी मुख़्तसर
याद उनकी हमें आ गयी
मुस्कुराए, गयी ऑंख भर
बिन डरे सच कहें किस तरह
सीखिए आइनों से हुनर
गर सभी के रहें सुर अलग
टूटने से बचेगा न घर
राह, मंजिल हुई उस घड़ी
तुम हुए जिस घड़ी हमसफ़र
घर जला कर मेरा झूमते
दोस्तों की तरह ये शरर
हैं सभी पास “नीरज”
किसे ढूंढती है सदा ये नज़र
जब वो मेरी ग़ज़ल गुनगुनाने लगे
तो रकीबों के दिल कसमसाने लगे
आप जिस बात पर तमतमाने लगे
हम उसी बात पर मुस्कुराने लगे
ग़म न जाने कहाँ पर हवा हो गए
साथ बच्चों के जब खिलखिलाने लगे
है मुनासिब यही, मयकशी छोड़ दे
पाँव पी कर अगर, डगमगाने लगे
फिर हमें देख कर मुस्कुराए हैं वो
फिरसे बुझते दीये जगमगाने लगे
जुल्म करके बड़े सूरमा जो बने
वक्त बदला तो वो गिड़गिडाने लगे
आज के दौर में, प्यार के नाम पर
देह का द्वार सब, खटखटाने लगे
जिन चरागों को समझा था मज़बूत हैं
जब हवायें चलीं टिमटिमाने लगे
ख्वाइशों के परिंदे थे सहमे हुए
देख 'नीरज' तुम्हें चहचहाने लगे
2.
तोड़ना इस देश को, धंधा हुआ
ये सियासी खेल अब गंदा हुआ
सर झुका कर रब वहां से चल दिया
नाम पर उसके जहां दंगा हुआ
तोल कर रिश्ते नफा नुक्सान में
आज तन्हा किस कदर बंदा हुआ
क्या छुपाने को बचा है पास
फिर आदमी जब सोच में नंगा हुआ
मौत से बदतर समझिये जिंदगी
जोश लड़ने का अगर ठंडा हुआ
आँख जब से लड़ गयी है आपसे
नींद से हर शब मिरा पंगा हुआ
दूर सारी मुश्किलें उस की हुईं
पास जिसके आपका कंधा हुआ
जो पराई पीर में "नीरज" बहा
अश्क का कतरा, वही गंगा हुआ
3.
ये कैसे रहनुमा तुमने चुने हैं
किसी के हाथ के जो झुनझुने हैं
तलाशो मत तपिश रिश्तों में यारों
शुकर करिये अगर वो गुनगुने हैं
बहुत कांटे चुभेंगे याद रखना
अलग रस्ते अगर तुमने चुने हैं '
दया' 'ममता' 'भलाई' और 'नेकी'
ये सारे शब्द किस्सों में सुने हैं
रिआया का सुनाओ दुख अभी मत,
अभी मदिरा है और काजू भुने हैं
यहाँ जीने के दिन हैं चार केवल
मगर मरने के मौके सौ गुने हैं
परिंदे प्यार के उड़ने दे 'नीरज'
हटा जो जाल नफरत के बुने हैं
4.
फासले मत बढ़ा इस कदर
दूँ सदाएं तो हों बेअसर
सोच मत, ठान ले, कर गुज़र
जिंदगी है बडी मुख़्तसर
याद उनकी हमें आ गयी
मुस्कुराए, गयी ऑंख भर
बिन डरे सच कहें किस तरह
सीखिए आइनों से हुनर
गर सभी के रहें सुर अलग
टूटने से बचेगा न घर
राह, मंजिल हुई उस घड़ी
तुम हुए जिस घड़ी हमसफ़र
घर जला कर मेरा झूमते
दोस्तों की तरह ये शरर
हैं सभी पास “नीरज”
किसे ढूंढती है सदा ये नज़र
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