मां बेटा बहुत गरीब थे।
दो वक्त की रोटी मुश्किल से जुटती थी।
इतना भर हो जाता कि दोनों की थाली में दो दो रोटी आ पाती।
एक दिन बेटे ने मां से कहा - मां अब मैं बड़ा हो गया हूं।
दो रोटी से पेट नहीं भरता।
मॉं ने कहा – ठीक है बेटा।
अगले दिन बेटे की थाली में तीन रोटियां थीं और मां की थाली में एक।
बेटे ने पूछा- ये क्या मां, तेरी थाली में एक ही रोटी?
मां ने जवाब दिया- हां बेटा, अब मैं बूढ़ी हो चली हूं।
तीन रोटी पचा नहीं पाती।
(अज्ञात)
दो वक्त की रोटी मुश्किल से जुटती थी।
इतना भर हो जाता कि दोनों की थाली में दो दो रोटी आ पाती।
एक दिन बेटे ने मां से कहा - मां अब मैं बड़ा हो गया हूं।
दो रोटी से पेट नहीं भरता।
मॉं ने कहा – ठीक है बेटा।
अगले दिन बेटे की थाली में तीन रोटियां थीं और मां की थाली में एक।
बेटे ने पूछा- ये क्या मां, तेरी थाली में एक ही रोटी?
मां ने जवाब दिया- हां बेटा, अब मैं बूढ़ी हो चली हूं।
तीन रोटी पचा नहीं पाती।
(अज्ञात)
5 टिप्पणियाँ
अच्छी लघुकथा...बधाई
जवाब देंहटाएंMa esi hi hoti hai .
जवाब देंहटाएंसूचनाः
जवाब देंहटाएं"साहित्य प्रेमी संघ" www.sahityapremisangh.com की आगामी पत्रिका हेतु आपकी इस साहित्यीक प्रविष्टि को चुना गया है।पत्रिका में आपके नाम और तस्वीर के साथ इस रचना को ससम्मान स्थान दिया जायेगा।आप चाहे तो अपना संक्षिप्त परिचय भी भेज दे।यह संदेश बस आपको सूचित करने हेतु है।हमारा कार्य है साहित्य की सुंदरतम रचनाओं को एक जगह संग्रहीत करना।यदि आपको कोई आपति हो तो हमे जरुर बताये।
भवदीय,
सम्पादकः
सत्यम शिवम
ईमेल:-contact@sahityapremisangh.com
sach mein ise hi maa kehte hain.Kitne tyag kiya hai hamare maa baap ne hamare liye.Lekin hum sayad samajh nhi pate ise.
जवाब देंहटाएंMaa tu dhanya hai tughe koti koti pranaam.
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.