तुम्हें मिलने के बाद - सुखपाल
खुद के साथ ऐसे रहता हूँ-
जैसे मैं तेरे साथ हूँ
नींद ऐसे आती है जैसे
कल ही तेरी कोख से जन्मा हूँ
आंख ऐसे खुलती है
जैसे कोई जोगी
तपस्या पूरी करने के बाद उठता है
पानी उस प्यास से पीता हूँ
जिस प्यास से तुम्हें मिलता हूँ
भोजन में वही तृप्ति है-
जैसे आखिरी यात्रा आरंभ करने से पहले किया हो
इस तरह बोलता हूँ -
जैसे सारे सफर आज खत्म हो गये हों
ऐसे उठता हूँ –
जैसे चाँद ने आ दरवाजा खटखटाया हो
हर कदम ऐसे संभल-संभल रखा जाता है -
जैसे फूलों के खेत में गुम हो गया हूँ
तुमसे मिलने के बाद मैने जाना -
मेरा अपना आप
कितना खुबसूरत है
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तू - देवनीत
तू
अच्छी है
पर तेरे बारे मेरे भीतर
जो विचार है न
वह बुरा है
जिस दिन
तूउस विचार को पढ़ लेगी
वह सब विचारों से
अच्छा हो जाएगा
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जब वह - शशि समुंद्रा
जब वह दोस्त बना
तो कितना अच्छा था
जब वह महबूब बना
कितना सुंदर वह प्यारा था
जब वह पति बना
तो सब बदल गया
वह हिटलर बन गया
और वह उसके कंसन्ट्रेशन कैंप में
एक यहूदी स्त्री.
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वह आती और कहती है - सतिंदर नूर
वह आती और कहती है
मुझसे बातें कर
मैं बहुत दिनों से चुप से घिरी हुई थी
कैद थी घर की घुटन में
सब कुछ सहमा हुआ था
टी.वी ,फोन की घरर-घरर में भी
मैं अकेली थी
मुझसे बातें कर
उन पंछीयों की
जो लकड़ी के होते हुये भी
तुम्हारे कमरे में बोलते हैं
बातें कर उस वृक्ष की
जो सूखा हुआ भी रुमकता है
बातें कर उन फूलों की
जो तुम्हारे कमरे में
आग से जलते हैं
वह आती और कहती है
मुझसे बातें कर
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पल क्षण में - सतिंदर नूर
वह आई और पल क्षण में
सारे कमरे में फैल गई
मेरा हाल –चाल पूछते हुए
पहले उसने मेरे पैरों की तरफ से
दोहरी हुई चद्दर को ठीक किया
फिर मेज पर अस्त –व्यस्त हुई किताबों को
खिड़की से अंदर झांक रहे फुलों को निहारते हुए
एक-एक करके चुनने लगी
और कहने लगी
हर सवेर वक्त बदल जाता है
हर सवेर मौसम भी बदल जाता है
वह आई और पल क्षण में
सारे कमरे में फैल गई
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ऐ मुहब्बत - सुखविंदर अमृत
ऐ मुहब्बत
मैं तेरे पास से
मायूस होकर नहीं लौटना चाहती
नहीं चाहती
कि तेरा वह बुलंद रूतबा
जो मैंने देखा था
अपने मन में
नीचा हो जाए कभी
नीचा हो जाए
इतना नीचा
कि तेरा पवित्र नाम
मेरी जुबान से फिसलकर
नीचे गिर जाए
फिर तेरी कसक
मुझे उमर भर तड़पाए
ऐ मुहब्बत
मेरा मान रख
तू इस तरह कसकर मुझे गले लगा
कि मेरा दम निकल जाए
और कोई जान न सके
कि तू मेरी जिंदगी है या मुक्ति
ऐ मुहब्बत
मैं तेरे पास से
मायूस हो कर नहीं लौटना चाहती
मुझे जज्ब कर ले
अपने आप में.
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अनुवाद और चयन
हरप्रीत कौर
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविध्यालय
वर्धा,महाराष्ट्र -442001
1 टिप्पणियाँ
अच्छी कविता...
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