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वर्ष पाँच, अंक – 14



विरासत में यशपालकी करवा का व्रत
कन्हैयालाल अपने दफ्तर के हमजोलियों और मित्रों से दो तीन बरस बड़ा ही था, परन्तु ब्याह उसका उन लोगों के बाद हुआ। 
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देस-परदेस में ‘तस्लीमा नसरीन’ की कवितायें
इस बार कलकता ने मुझे काफ़ी कुछ दिया,
लानत-मलामत; ताने-फिकरे/छि: छि:, धिक्कार..।
  
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भाषा सेतु में ‘इस्मत चुग़ताई’ की ‘लिहाफ़’
जब मैं जाडों में लिहाफ ओढती हूँ तो पास की दीवार पर उसकी परछाई हाथी की तरह झूमती हुई मालूम होती है।   
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विनीता शुक्ला की कवितायें
पहले बोलते थे तुम्हारे शब्द
सुनता था मेरा मौन।
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‘मीनाक्षी जोशी’ का ‘न्यूयार्क’ से यात्रा संस्मरण  
17 मई, न्यूयार्क। यहाँ आये 15 दिन हो गये है। रोज कहीं ना कहीं घूमने का सिलसिला जारी है। आज शाम हम स्क़्वेयर टाईम्स देखने पहुचें।   
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प्राण शर्मा की दो ग़ज़लें   
जीवन में बढ़ रही हैं कुछ ऐसी जरूरतें, 
ऐसी  जरूरतें  कि  हों  जैसे  कयामतें।   
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'शेर सिंह' की लघुकथा 'भाई दूज'
दीपावली के तीसरे दिन यानी भाई दूज के दिन मैं अपने परिजनों और पारिवारिक मित्र के साथ भोपाल के न्‍यू मार्केट में टॉप एन टाऊन आईस्‍क्रीम पॉर्लर से........।  
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मैने पढी किताब में 'त्रिजुगी कौशिक' का काव्य संग्रह 'ओ जंगल की प्यारी लडकी'  
एक समय जगदलपुर का सृजन संसार जिन रचनाकारों से गुलज़ार था; त्रिजुगी कौशिक भी उनमे से एक हैं। 
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आओ धूप में ‘संदीप मधुकर सपकाले’ की कहानी ‘इमू’
कहानी कहने जैसी कोई बात नहीं थी उसके पास। वो हमेशा स्वप्नलोक और यथार्थ जीवन के अनुभवों के साथ उड़ता था। उसके पास उड़ने के लिए एक चादर थी।
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अर्चना "राज" की कवितायें
मिटटी की सतह पर फसल के साथ उगा करते हैं तमाम सपने भी
पलतें हैं जो उसी की खाद पानी की उर्वरता के साथ ।
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