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वर्ष पाँच, अंक – 15



  
विरासत में प्रेमचन्दकी कहानी ईदगाह
रमज़ान के पूरे तीस रोजों के बाद ईद आई है। कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभात है। वृक्षों पर कुछ अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक है....।
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भाषा सेतु में ‘सज्जाद ज़हीर’ की कहानी ‘नींद नहीं आती’
घड-घड-घड-घड, टिक-टिक, चट, टिक-टिक-टिक, चट-चट-चट। गुजर गया ज़माना गले लगाए ए... ए... ऐ... खामोशी और अंधेरा। अंधेरा-अंधेरा। आँख एक पल के बाद खुली। 
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देस-परदेस में ‘खलील ज़िब्रान’ की ‘दूसरी भाषा’
मुझे पैदा हुए अभी तीन ही दिन हुए थे और मैं रेशमी झूले में पड़ा अपने आसपास के संसार को बड़ी अचरज भरी निगाहों से देख रहा था।   
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‘राकेश बिहारी’ की कहानी ‘किनारे से दूर...’
धूप की सुनहरी रोशनी खुले आसमान की नीली आभा से मिल कर रजतवर्णी होने का आभास दे रही थी। वह बार-बार सामने के दृश्य को कैमरे में उतारने की कोशिश....।  
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रक्षाबन्धन पर 'डॉ सरस्वती माथुर' के 'हाइकु'  
रिश्तों की डोरी
भाई की कलाई पे/ बहने  बांधे।
   
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'प्रेम रंजन अनिमेष' की 'गज़लें'
दिल की  किताब में  हूँ बंद  फूल की तरह
दामन से  साफ़ कर मुझे  न धूल की तरह।
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विकि आर्यकी लघु कथा 'पाणी दा रंग वेख'
कल तक जून की दोपहर में झुलसाती हुई लू के थपेड़ों में घर से बाहर निकलते हुए सभी सोचा करते थे, मगर अब नहीं। थैंक्स टू मैट्रो।   
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मैने पढी किताब में 'रूप सिंह चन्देल' की 'यादों की लकीरें'  
आप बीती सुनाने की ललक आदि मानव में  निश्चय ही रही होगी। बाद में सभ्यता के विकास के साथ अनेक विधाओं में जो विशाल साहित्य अस्तित्व में आया.....।  
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'सुभाष नीरव' की लघुकथा 'वाह मिट्टी'
छोनू बेटा, बाहर मिट्टी है, गंदी! गंदे हो जाओगे। घर के अन्दर ही खेलो, आं। जब से सोनू घुटनों के बल रेंगने लगा था, रमा चौकसी करती रहती कि वह बाहर न जाए।
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डॉ. प्राजक्ता की कुछ कवितायें
एक नजर
जिसकी कोई कशिश/ अधूरी सी।
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इस अंक की ई-पुस्तक – “प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ”
ई-पुस्तक प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ को डाउनलोड करने के लिये कृपया नीचे दिये गये लिंक पर जायें।  
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