अनिल प्रभा कुमार की कहानियाँ - गहन संवेदना की
सूक्ष्म-अभिव्यक्ति
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समीक्षा - रूपसिंह चन्देल
अमेरिका के प्रवासी हिन्दी लेखकों में पिछले कुछ
वर्षों में जिन साहित्यकारों ने अपनी गंभीर रचनात्मकता का परिचय दिया है, अनिल प्रभा कुमार उनमें एक नाम है। उन्होंने न केवल कहानी
के क्षेत्र में बल्कि कविता के क्षेत्र
में भी अपनी अलग पहचान बनाई है। उनकी कहानियाँ जीवनानुभूति की उस वास्तविकता से
परिचित करवाती हैं जिनसे आमजन दिन-प्रतिदिन गुजरता, जूझता, टूटता
और बिखरता है। उनकी कहानियों में पात्रों और परिस्थितियों का सूक्ष्म अध्ययन
प्रतिभासित है। उनका शिल्प उसे और अधिक प्रभावोत्पादक बनाता है।
हाल में अनिल प्रभा कुमार का
कहानी संग्रह ‘बहता पानी’ दिल्ली के ’भावना प्रकाशन’ से प्रकाशित हुआ है। संग्रह में उनकी चौदह कहानियाँ
संग्रहीत हैं। यद्यपि उनकी प्रत्येक कहानी अमेरिकी परिवेश पर आधारित है तथापि
कुछेक में भारतीय परिवेश भी उद्भासित है। काल, परिवेश और वातावरण का निर्धारण रचना की विषयवस्तु पर आधृत
होता है। अनिल प्रभा कुमार का कथाकार रचना की अंतर्वस्तु की माँग को बखूबी
जानता-पहचानता है और उसे अपने सुगठित शिल्प और सारगर्भित भाषा में पाठकों से
परिचित करवाता है. अनेक स्थलों पर उनके वाक्य-विन्यास विमुग्धकारी हैं।
छोटे-वाक्यों में बड़ी बात कहने की कला लेखिका के शिल्प कौशल को उद्घाटित करती
है। अन्य बात जो पाठक को आकर्षित करती है
और पिछले कुछ वर्षों में हिन्दी कहानी में जो छीजती दिखाई दे रही है वह है रचनाकार
का प्रकृति प्रेम। ‘किसलिए, ‘दीपावली की शाम, ‘फिर से’ कहानियों
में यह दृष्टव्य है। कहानियों की संवेदनात्मक अभिव्यक्ति उन्हें मार्मिक और सशक्त
बनाती है।
अनिल प्रभा कुमार के पात्र
पाठक में विचलन पैदा करते हैं और उसके अंतर्मन को आप्लावित कर एक अमिट छाप छोड़ते
हैं। उनकी एक भी कहानी ऎसी नहीं जो सोचने के लिए विवश नहीं करती और उस सबका कारण
उनमें रेखांकित जीवन की विडंबना और विश्रृखंलता है। ‘उसका इंतजार’ अंदर तक हिला देने वाली एक ऎसी युवती की कहानी है जो मनपसंद
युवक की प्रतीक्षा में अपनी आयु की सीढ़ियाँ चढ़ती चालीस तक पहुँच जाती है। अनिल
प्रभा कुमार एक मनोवैज्ञानिक की भाँति विधु के अंतर्मन में झाँकती हैं और
विधु का यह कथन पाठक को छील जाता है—“माँ, तुम देखना, एक दिन जरूर आएगा वह। .......मैं उसे देखते ही पहचान लूँगी
और वह----.” विधु के होठ बुदबुदा रहे
थे लेकिन गाल पर ढुलक आए आँसू का उसे पता ही नहीं चला। अनिल प्रभा कुमार की
कहानियों के अंत उन्हें सिद्धहस्त रचनाकार सिद्ध करते हैं।
‘किसलिए’ कहानी उस व्यक्ति की कहानी है, जो नौकरी से अवकाश प्राप्तकर घर में अपनी बेटी ईशा के ‘पेपे’ (कुत्ता)
के साथ रहता है। ‘पेपे’ और उस व्यक्ति का जो मनोवैज्ञानिक चित्रण लेखिका ने किया है
वह कहानी को अविस्मरणीय बनाता है। ‘घर’ अमेरिकी
संस्कृति,
सभ्यता, और
वातावरण को रेखांकित करती है। यह उस पूरे समाज की कहानी है जहाँ पति-पत्नी के
विलगाव का दुष्प्रभाव बच्चों को झेलना पड़ता है। कहानी का अंत बेहद मार्मिक है—“रात की कालिमा खत्म हो चुकी थी। आकाश का रंग ऎसा हो गया, जैसे रात जाने से पहले राख बिखेर गई हो। सलिल वहीं कार में
बैठा देखता रहा। सलीम धीरे-धीरे पैर घसीटता हुआ, उस राख के शामियाने के नीचे जा रहा था—अपने घर।” यानी चिड़ियाघर जो अब सलीम
का घर था।
‘फिर से’ कहानी
पारिवारिक विघटन को व्याख्यायित करती है।
केशी और तिया की कहानी। पुनः मिलकर भी दोनों के अहं टकराते हैं और केशी
बेटी संजना के घर से जाने का निर्णय कर लेता है। उस क्षण को कहानी में जिस प्रकार
अनिल प्रभा कुमार ने बिम्बायित किया है वह आकर्षक है—“खाली कमरे के बीचों-बीच खड़े वह बाढ़ में सब-कुछ जल-ग्रस्त हो
जाने के बाद खड़े एकाकी पेड़ जैसे लग रहे थे। नितांत अकेला, उदास वृक्ष। प्रकृति जैसे उसे पीटने के बाद, रहम खाकर, जिन्दा
रहने के लिए छोड़ गई हो।”
संग्रह की शीर्षक कहानी ‘बहता पानी’ अमेरिका
से भारत आयी एक महिला की कहानी है, जिसके दिल-दिमाग में घर और स्थानों की वही छवि अंकित है
जिसे छोड़कर वह प्रवास में गयी थी। अपनी पुरानी यादों में जीती यह एक स्त्री की
प्रभुविष्णु कहानी है।
‘बेटे हैं न!’ एक वृद्ध माँ की दारुण कथा है, जो पति की आकस्मिक मृत्यु के बाद अपने तीन बेटों में अपना
भविष्य सुखी और सुरक्षित देखती है। अंततः अमला द्वारा प्रताड़ित-अपमानित सत्या को
प्रकाश भारत भेज देता है, जहाँ सत्या
की छोटी बहन दमयंती उसे एयरपोर्ट पर रिसीव करती है। दमयंती के पूछने पर, “बहन जी, क्या
हो गया?”
सत्या फूट पड़ती है, ‘दमी, उस दिन नहीं, पर आज मैं सचमुच विधवा हो गयी हूँ।” कहानी की मार्मिकता पाठक में उद्वेलन उत्पन्न करती है।
‘मैं रमा नहीं”, कहानी
पीढ़ियों के अंतर को बखूबी दर्शाती है। ‘ये औरतें, वे
औरतें’
कहानी अपरिवर्तित सामंती पुरुष मानसिकता, उसकी लंपटता और शोषित-प्रताड़ित नारी जीवन की विडंबना को
अत्यंत सार्थकता से अभिव्यक्त करती है। ‘रीती हुई” , ‘वानप्रस्थ”,
और ‘सफेद चादर’ भी
उल्लेखनीय कहानियाँ हैं।
अंत में, यह कहना अप्रसांगिक न होगा कि अनिल प्रभा कुमार की कहानियां
ही नहीं,
कविताओं की भी मौलिकता, भाषा की प्रांजलता और शिल्प वैशिष्ट्य अनूठा है।
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कहानी संग्रह—बहता पानी , कथाकार— अनिल
प्रभा कुमार, प्रकाशक—भावना प्रकाशन,
109-ए, पटपड़गंज, दिल्ली-110091, संस्करण—2012, पृष्ठ संख्या—166, मूल्य—रु॰ 300/-
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