कल तक जून की दोपहर में झुलसाती हुई लू के थपेड़ों में घर से बाहर निकलते हुए सभी सोचा करते थे, मगर अब नहीं। थैंक्स टू मैट्रो।
हुडा सिटी सेंटर, गुड़गांव, मेट्रो का पहला और लास्ट स्टॉप है। यहां से येलो लाइन मेट्रो पकड़ने का सबसे बड़ा बेनिफिट ये है कि आपको बैठने के लिये सीट तो शर्तिया मिल ही जाती है।
तब भी... दोपहर दो बजे के हिसाब से भीड़ कम नहीं थी ज़्यादातर युवा चेहरे... कमोबेश उसी की उम्र के। टाइट जींस, मैचिंग टॉप, कंधे पर बैग और हाथ में सैल फोन लिये वो निर्लिप्त भाव से 'केवल महिलाओं वाले' पिंक स्टिकर के पास खड़ी थी। मेट्रो आ गई डोर ओपन होते ही सबसे पहले वह चढ़ी और अपनी पंसदीदा कॉर्नर वाली सीट पर बैठ गई. मेट्रो के डोर बंद हो ही रहे थे कि उसके मोबाइल की रिंगटोन गुनगना उठी। ''पानी दा रंग वेख के..''
''हैलो !'' उसने लगभग फुसफुसाते हुए कहा एक नजर उसने अपने आसपास सहयात्रियों पर डाली. सभी के कानों में या तो हैड़फोन पर म्यूज़िक चल रहा था या फोन पर बातें. वह निश्चिन्त हो गई ''मै, मैट्रो में हूं! वही... जॉब और क्या..? तुम भी ना ! नहीं! और कोई बात नहीं! रखूं?'' उसने पूछा फिर उधर से जवाब का इंतजार किये बिना ही कहा
''मैं अभी बात नहीं कर सकती'' फोन काट दिया ।
''पाणी दा रंग...'' उस ने अभी फोन कान से हटाया भी नहीं था कि उसका मोबाइल फिर बज उठा ।
''क्यूं तंग कर रहे हो? मैंने कहा ना। अभी बात नहीं कर सकती! ''
'' देखो ! प्लीज फोन मत काटना ! मुझे ... ज़रुरी बात करनी है...'' कोई वहां से मनुहार कर रहा था ।
''कौन सी बात? वो ???... भूल जाओ!'' उसने बिना किसी भाव के फोन काट दिया
''पानी दा रंग वेख के...'' फोन कुछ देर बजता रहा । लडकी ने फोन उठाया
''हैलो! क्या बात है? कौन सी बात? नहीं! मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी!''
''पानी दा रंग वेख के..'' उसका मोबाइल फिर बज उठा ।
''क्या है? तुम मुझे भूल क्यूं नहीं जाते?'' कट!
''पाणी दा... रंग...'' फोन फिर बज उठा ''मुझे भूल जाओ! खुद भी जियो और मुझे जीने दो!'' कट!
''पाणी दा... रंग...'' मोबाइल बज उठा. ''क्या है? क्या कर रहे हो? क्यूं कर रहे हो? क्या कर लोगे? हां ?''
''पाणी दा... '' मोबाइल बजा ''तो कर लो जो करना है! मुझे परवाह नहीं! '' उसने कहा ।
कट!
''पाणी दा... रंग वेख के...'' लड़की ने गुस्से में फोन उठाया '' कहा ना! हमारे रास्ते अलग हैं मुझे तुमसे कोई मतलब नहीं। मरना हो मरो! जाओ भाड़ में! फोन करना बंद करो वरना... मैं फोन बंद कर रही हूं! '' उसने गुस्से में फोन काटा। हाथ में मोबाइल देर तक कांपता रहा।
''पाणी दा... रंग वेख के...'' फोन बजता रहा... लड़की ने अपने को समेटा और कड़वे लह़जे में कहा ''हैलो! अब क्या है?''
फिर अचानक ही उसकी टोन बदल गई.
''अरे नहीं! नहीं! फोन मत रखना प्लीज!
'बिज़ी? नहीं तो? मेट्रो में हूं! फोन?
अरे वो फोन...? बॉस का था मेरे! लड़कों को तो तुम जानते ही हो... सारे एक जैसे! ज़रा हंस के क्या बोल लिया कि बस! अरे रे रे नॉट यू! यू आर एन एक्सेप्शन! रात को फोन करुं'' उसने गहरी आवाज़ में कहा... इतनी जल्दी सो जाते हो? आज ज़रा देर जागोगे तो क्या हो जायेगा..? उ ऊं मेरे लिए...प्लीज़ '' उसकी आवाज में शहद घुल रहा था।
मेट्रो के दरवाज़े हर स्टेशन पर बंद और खुलते रहे और ऐसे ही ना जाने कितने युवा चेहरों की कहानियां हुडा सिटी सेंटर से राजीव चौक तक की यात्रा में कितनी बार खुलती और बंद होती हैं। आज रिश्तों के पानी का रंग क्या है... कोई मेट्रो से पूछे।
19 टिप्पणियाँ
Great story Viky. Read a short story in hindi after a long time. Looking forward to more. atanu
जवाब देंहटाएंWah Vikyji....interesting read.
जवाब देंहटाएंI love the way you have used the metaphor of a metro, to describe the life of those who travel in it...Keep the good work on ..awaiting more.
'रिश्तों के पानी का रंग क्या है... कोई मेट्रो से पूछे'
जवाब देंहटाएंWaah!!!What a line!Undoubtedly, numerous hues of relations are reflected by a Metro carrying swarms of emotions everyday!
Great Story!Great Ideation!
Way to go!
विकी जी,
जवाब देंहटाएंमेरी कहानी भले ही मेट्रो की नहीं है, पर उससे अलग भी नहीं. उस लड़की के बोले गए हर एक लफ्ज़ मुझे मेरे अतीत में ले गया. पढ़ते-पढ़ते ऐसा लगा जैसे की वह मेरे सामने हो या किसी ने मेरी कहानी लिख दी हो.
सही में आज कल के रिश्ते, पानी की तरह हैं.
wah!...very crisp and very evocative!....
जवाब देंहटाएंMamta
nice one viky ji... now waiting for next one :). all the best.
जवाब देंहटाएंA very brief and to the point summary of today's youth. Call it 'life in a metro'
जवाब देंहटाएंKudos kaka
very crisp, insightful and beautiful. keep it up Vicky
जवाब देंहटाएंsabse khaas baat mujhe yeh lagi is laghu katha ki apne aap main yeh sochne laga ki aage kya?...is tez raftaar shehar mein jab insaan apne adhi jindagi safar mein bitata hai to jivan ke jo pal, kamre ya ghar/hotel ityadi mein bitate the, ab metro mein gujar te hein.. unka bahut hi accha varnan hai yahan!... as usual...kaka- the best!!!...:-)
जवाब देंहटाएंKya Baat hai Viky ji, Awesome Story.
जवाब देंहटाएंRegards
Siddharth Kapila
Good one Viky. Its really amazing, just the other day, I was talking with one of my friends about about such strange metro conversations that one becomes an unwilling and unwitting party to !!!
जवाब देंहटाएंUnsolicited advice: can you please not use English words in your stories....
Deepdi
Very nice viky ji....
जवाब देंहटाएंViky ji,
जवाब देंहटाएंएक तितली
काट गयी रास्ता
सुबह सुबह
दिन सारा
रंग रंग हो गया Jaisi behtreen kavitaon ke bad aapne METRO ke rang main rang diya. Aise laga jaise main metro main baitha hun. Katha bhut achchi lagi.
Prem
Bahut Khoob ! Ek ansh safarnama vakai kai kahaniya banti bigarti rahti hain, kuth log unhe apne andaj mein bayan kar unhe amar kar dete hain.
जवाब देंहटाएंVicky is vidha mein to tumahra jawab nahin!
bahut acche viky. story real hai.
जवाब देंहटाएंnice story vicky keep it up...
जवाब देंहटाएंअच्छी लघुकथा..
जवाब देंहटाएंGood Story...
जवाब देंहटाएंvikki da ye rang dekhke dang...nisha
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.