क्यों मन भीग रहा है
बिन सावन की बारिशों में
भीग रहे है चंद अल्फाज़
बिखरती अधूरी ख्वाहिशों में
आँसुओं की इन बूंदों को
कोई उष्मा धो रही है
शायद कहीं प्रेम के बीज
ये साँसे बो रही है
तुम्हारी यादों की धूप से
दिंन रात इन्हें सींचूँगी
पतझर जब आएगा
सूखे पत्तों से अंचल भर लूंगी
झरते हुए फूलों की हंसी
फिर रोती आँखों से देखूंगी..
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फैली जब चारों ओर
रवि की सुनहरी किरणें
गाने लगीं हवाएं
खिलने लगे गुलाब
झूमने लगी धरती
दमकने लगा आकाश
जरा कह दो बादलों से
ना रोको इनकी राहें
गाने दो गीत हवाओं को
खिलने दो गुलाबों को
मचलने दो फ़िज़ाओं को
दमकने दो आकाश को
झूमने दो धरती को
गर थम गया ये कारवां
तो शेष रहेगा क्या ?
जरा कह दो बादलों से
सुन ले सूरज का पैग़ाम
जलकर जो सुबह से शाम
लिख जाता आभा हर
हम बेनामों के नाम
गर थम गई ये रोशनी
तो शेष रहेगा क्या ?
न तुम न हम
न प्यार न जीवन
न धरती आकाश सूरज
तो शेष रहेगा क्या ? ? ?
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नाइग्रा ---
अनकही भावनाओं का
अव्यक्त अहसास
बिंदु से ब्रम्हांड तक
पहुंचने का प्रयास
बूँद के हर शून्य में
कैसा अनुपम उजास.
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बूँद-बूँद देती रही
स्पर्श!
स्पंदन !
स्फुरण !
आवेग !
ऊर्जा!
क्षण प्रतिक्षण,
बनी विराट
बूँद-बूँद कहती रही
बहते रहो,
बनते रहो,
मिटते रहो,
पाओगे यंही
इंद्रधनुषी
जीवन का राज...
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वक़्त की हर आँधियों को
चुनौती देता
न जाने कब, कितनी दूर
निकल जाता है
ज़िंदगी का फ़लसफ़ा
नदी की इस धार की तरह..
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हर सुबहो-शाम
ये जमीन आसमान
डूब जाते हैं
जल-कण के बिखरे
अजस्त्र रंगों के सैलाब में
किनारों पर
इंतज़ार करते
क्षितिज को
मुक्त करने के लिए...
4 टिप्पणियाँ
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जवाब देंहटाएंBohot Badhiya..... Niagra pe kavitaon me uski khubsurti aur uske ehsas ko bohot acche
जवाब देंहटाएंse vyakt kiya hai.... !!!
अच्छी कविताएँ..
जवाब देंहटाएंbahut umda
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.