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आओ धूप में ‘संदीप मधुकर सपकाले’ की कहानी ‘इमू’


संदीप मधुकर सपकाले
कहानी कहने जैसी कोई बात नहीं थी उसके पास| वो हमेशा स्वप्नलोक और यथार्थ जीवन के अनुभवों के साथ उड़ता था| उसके पास उड़ने के लिए एक चादर थी| चादर की उड़ने की गति बहुत धीमी थी| नीचे से देखने वाले लोगों के लिए यह एक उबाऊ सवारी थी| अपने आलसी होने के कई फायदे भी इमू ने इस चादर पर सोते हुए सपने में देखे थे| खजूर और गुड़ बेचने वाले व्यापारी जलन से भरी निगाह से देखते थे उसे| उसे कभी इस बात की परवाह नहीं थी कि कौन क्या कर रहा है ? कौन क्या करेगा ? उड़ने वाली चादर बहुत पुरानी थी उसके परदादा की पीढ़ी से उस तक पहुंची थी इतनी लंबी दूरी तय करते-करते इसका ज़री काम घिस गया था| जगह जगह छछुंदरों और चूहों के काटने से बने निशानों पर रफू की  कारीगरी पहचानी जा सकती थी| 

इमू जब छोटा था तब वो अपने पिता के साथ इस चादर पर उड़ा करता था| इमू की माँ को कभी भी इस चादर पर उड़ने की इजाजत नहीं मिली थी| जब उसकी दादी गुजर गयी थी तब एक गर्मी की सितारों वाली रात में माँ, पिता और इमू तीनों उड़ते हुए अपने शहर से दूर रेत के टीलों पर गए थे| उस पहली और आखिरी बार माँ ने इस चादर की उड़ान भरी थी| इमू के पिता बूढ़े हो गए थे और माँ मर गयी थी| एक दिन पिता ने वह चादर इमू के हवाले कर दी| इमू के जवान होते-होते चादर की गति धीमी पड़ गयी थी| इमू अपनी चादर पर एक करवट पर लेटे हुए पुरे शहर को देखता, वहाँ से लौट कर फिर अपने दुकानदार दोस्तों को किस्से के रूप में कहानी सुनाता| अब कहानी सुनने वालों की भी कमी हो चली थी| कुछ बुजुर्ग इमू को बताते कि‍ जो बात कहानी सुनाने की उसके बाप-दादा में थी अब उसमें नहीं बची है| उसकी चादर की गति भी उसकी कहानी कहने की ताकत पर निर्भर थी| 

एक जमाना था जब लोग घंटों और कई-कई दिनों तक किस्से-कहानिया सुनाते और सुनते थे| इमू पर इन बातों का कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा था कि कहानी कब और कैसी या कितनी लंबी सुनाई जाये| वो एक कहानी सुनकर कई रोज तक उसी एक कहानी की रोजी पर अपनी आजीविका चला लेता था| इमू अकेला था बिलकुल अकेला, इस अकेलेपन से शायद ही वो कभी ऊबा हो| शादी की बात उसके ख्याल में कभी नहीं आयी| लोग कहते हैं अगर उसकी माँ जिन्दा होती तो इमू का भी एक परिवार होता| बूढ़े हो चुके पिता ने मुश्किल से एक-आध बार उससे शादी करने के लिए कहा था| 

फूलों के बाज़ार में घुमती हुई लड़कियां अक्सर उसकी उडती हुई चादर को देखती और मुँह पर हाथ रखकर हँसती, इमू अपने पेट के बल लेटकर नीचे देखता और फिर से सीधे करवट बदलकर आसमान की ओर देखने लगता| इमू को किसी ने बताया था की इन दिनों कहानी सुनाने वाले बहुत से किस्सागो और जादू से पारंगत कई प्रभावशाली युवक फूलों के बाज़ार में आते है और लड़कियों को कहानी से इतना मुग्ध कर देते हैं मानो उन्होंने कहानी सिर्फ सुनी ही नहीं बल्कि देख भी ली हो| जो भी लड़की फूलों के बाज़ार से कहानी सुनकर आती वो जरूर अपनी सहेलियों को बताती की कैसे जब आसमान में उड़ने का प्रसंग आया तब वो और किस्सागो दोनों एक दूसरे के साथ जमीन से ऊपर उड़ गए| कैसे वो नदी के पास के खजूर के पेड़ों के पास पहुँच गए| कैसे उन्हें दिन में ही तारों और चाँद की ठंडक का अहसास हुआ| इमू के पास ऐसी कोई जादुई ताकत नहीं थी जिससे वो किस्सों की बातों को सच में दिखा दे, ले-दे कर अपनी एक उड़ने वाली चादर ही उसका सब कुछ थी| जब चादर की गति एकदम धीमी हो जाती तब इमू वही रुककर चादर के साथ आराम करने पड़ जाता| गुलामों के बच्चे इमू से कहानी सुनते थे पर उनके पास इमू को देने के लिए कुछ न होता था| पैसों के बदले वे उसे जादूगरों के कारनामों के बारे में बताते थे| उन जादूगरों ने कई-कई गुलामों को गायब कर दिया था| ये जादूगर किस्सागो थे जिनसे फूलों के बाज़ार में आनेवाली लड़कियाँ अद्भुत प्रेम करती थी| लड़कियों को उनके साथ गायब हो जाना बहुत पसंद था| 

एक दिन की भरी दुपहरी में जब इमू की चादर उड़ते-उड़ते थक गयी तो उसने आराम करने के लिए नदी का किनारा देखा किनारों पर लगे हुए खजूर के छोटे पेड़ों के नीचे उसने चादर को बिछाया और उस पर लेट गया| तेज धूप की इस ठंडी रेत पर लेट कर इमू को आनंद आ गया| ऐसा कम ही होता जब इमू और चादर दोनों आपस में बात करते| अभी इमू लेटा ही था की चादर ने उसके कानों में अपने धागों से सहलाते हुए जगाया और इशारों में बताया की देखो, वहाँ थोड़ी ही दूर पर सरोवर में पाँव डाले जादूगर और फूलों के बाज़ार से आयी एक लड़की आपस में बातें कर रहे है| लड़की की हंसी इतनी कोमल और मिठास भरी थी की इमू दिन में ही स्वप्नलोक में पहुँच जाना चाहता था| जादूगर उसकी खूबसूरती की तारीफ कहानी में करते हुए एक अद्भुत संसार को उसके सामने रच रहा था| इमू को इस तरह उनकी बात सुनना उचित नहीं लगा और उसने चादर से चलने को कहा। चादर की थकावट अभी दूर नहीं हुई थी इसलिए उसने मना कर दिया| इमू अपने कान बंद करके फिर से चादर पर लेट गया और स्वप्नलोक में पहुँच गया| वहाँ की दुनिया में वो सब कुछ उसके पास था जो यहाँ जादूगरों और आकाओं के पास भी नहीं था| उसके पास एक ही समय में हजारों किस्से उसके आस-पास से उड़ते थे ये किस्से चिडियों की तरह उसके कन्धों पर बैठते उसके कानों पर चोंच से खुरचते और बालों को सहलाते| इतना सब कुछ शब्द, भाषा और दृश्य से परे का मामला था|

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