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मैंने पढी किताब में ‘प्रवासी आवाज़’


इस बात में कोई शक नहीं कि यूरोप या अमेरिका या इंगलैंड का जीवन हर मायने में हमारे देश के जीवन से अलग है। इन देशों में बसे भारतीयों को हर बात के लिए  एक तरह से दोहरी मशक्कशत करनी पड़ती है। जीवन जीने की तकलीफें तो अपनी जगह हैं ही, उस पर पहचान का संकट, अपने देश की सर-जमीं से दूर रहते हुए भी अपने वतन, अपनी मिट्टी, अपनी भाषा-बोली और संस्कृहति से जुड़ाव बनाये रखने की दस तरह की कोशिशें। वे इसमें कितने सफल हो पाते हैं, ये अलग विवाद का विषय है।

इस समय मेरे सामने कथाकार, ग़ज़लकार, कवयित्री, शिक्षाविद् और संपादक डॉक्टकर अंजना संधीर द्वारा संपादित कहानी संकलन प्रवासी आवाज़ है। इस किताब में उन्होंतने अमेरिका में रह रही लगभग सभी भारतीय पीढि़यों के 44 कहानीकारों को एक साथ एक जिल्द  में प्रस्तुयत करने की बेजोड़ कोशिश की है।

अपनी भूमिका में अंजना ने एक बहुत ही रोचक बात कही है - भारत से अमेरिका गये व्यक्ति को सबसे पहले जो आघात लगता है, वह है कल्चरल शॉक। यहां सब कुछ उलटा है। ताले की चाबी उलटी लगती है, बत्तियों के स्विच उलटे जलते हैं, गाड़ी बायीं तरफ से चलायी जाती है यानी वो सब जो पूर्व में सीधा-सादा होता है, यहां उलटा रूप देख कर उलझन होती है। 

अंजना ने कल्च रल शॉक की जो चीजें गिनायी हैं, ये वे हैं जो नज़र आती हैं। नज़र न आने वाले झटकों की फेहरिस्तआ बहुत लम्बीव है और मुझे ये बताते हुए बेहद सुकून मिल रहा है कि इस संग्रह की ये 44 कहानियां नज़र न आने वाले लेकिन जीवन को बहुत बारीकी से प्रभावित करने वाले उन झटकों की ही कहानियां हैं। 

अंजना ने अमेरिका के अपने लगभग 12 बरस के प्रवास में वहां पर हिंदी का माहौल बनाने, हिंदी सीखने के टूल्सन विकसित करने, वहां पर बसे लेकिन अलग-थगल पड़े हिंदी रचनाकारों को आपस में जोड़ने की दिशा में बहुत काम किये हैं। उनसे पहले भी इस दिशा में छुटपुट प्रयास होते रहे हैं लेकिन इतने बड़े पैमाने पर जो काम अंजना ने किया है, वह काबिले-तारीफ है।‍ फिलहाल बात इस किताब पर। संग्रह में कुल 44 रचनाकारों की कहानियां हैं और सुखद आश्चरर्य की बात है कि इन 44 रचनाकारों में 29 लेखिकाएं हैं। ये सब लोग अलग-अलग वक्तर पर अलग अलग कारणों से अमेरिका जा बसे हैं और एक-दूसरे से बिल्कुरल अलग कार्य कर रहे हैं। इनमें वैज्ञानिक भी हैं, भाषा शास्त्री  हैं तो कम्प्यूटर के क्षेत्र के विशेषज्ञ भी हैं। इन सबको हिंदी रचनाकार होने की बात ही आपस में जोड़े हुए है। इस संग्रह में कई नाम ऐसे हैं जिनसे हम बहु़त अच्छीस तरह से परिचित हैं और उनकी रचनाएं पढ़ते हुए बड़े हुए हैं तो कुछ रचनाकार कम अपरिचित या युवा भी हैं जिन्हें अभी काफी लम्बी राह तय करनी है और अच्छीं बात ये है कि उनकी कहानियां हमें आश्वतस्त  करती हैं कि वे अपने मुकाम तक ज़रूर पहुंचेंगे। एक बात ये भी लगती है कि अगर वे इस समय भारत में रहते हुए लिख रहे होते तो मुख्य  धारा के लेखकों में उनका नाम होता। हमें इस किताब में उषा प्रियंवदा, सोमा वीरा, सुषम बेदी, सुधा ओम ढींगरा, उमेश अग्निहोत्री, भूदेव शर्मा, इला प्रसाद, सुदर्शन प्रियदर्शिनी, कमला दत्तस, अशोक सिन्हास, अकरेन्द्री कुमार, उषा देवी विजय कोल्हा टकर, सौमित्र सक्से्ना, शालिग्राम शुक्ली आदि चिर-परिचित रचनाकारों को एक साथ पढ़ते हुए असीम सुख मिलता है। डाक्टर कमल किशोर गोयनका ने इस किताब की तारीफ करते हुए लिखा है‍ कि अमेरिका के 44 प्रवासी हिंदी कहानीकारों की कहानियों का ऐसा संकलन पहली बार  प्रकाशित हो रहा है जो निश्चसय ही हिंदी में नयी संवेदना, नया परिवेश, नयी जीवन दृष्टि तथा नये सरोकारों का द्वार खोलेगा और भारत के हिंदी पाठक एक नये जीवंत संसार से अनगत होंगे।

बधाई हो अंजना इस नयी दुनिया से परिचित कराने के लिए। हम विश्वाइस करते हैं कि ये शुरुआत है और छूने के लिए आस्मांइ अभी और भी हैं। 

प्रवासी आवाज़ 
संपादक अंजना संधीर 
पार्श्व पब्लिकेशन, अहमदबाद। 
मूल्य 500 रुपये    

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