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वर्ष पाँच, अंक – 17, स्वतंत्रता दिवस विशेषांक

विरासत में ‘भगतसिंह की शहादत पर स्वतंत्रता-पूर्व लिखी गयी रचनायें’
हमने लगाई आग है जो इंकलाब की
इस आग को किसी से बुझाया न जायेगा॥
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देस-परदेस में फैज़ अहमद फैज़ की ग़ज़लें
कब ठहरेगा दर्द-ए-दिल, कब रात बसर होगी
सुनते थे वो आयेंगे, सुनते थे सहर होगी।
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'आकांक्षा यादव' का आलेख 'आजादी के आन्दोलन में भी अग्रणी रही नारी'
स्वतंत्रता और स्वाधीनता प्राणिमात्र का जन्मसिद्ध अधिकार है। इसी से आत्मसम्मान और आत्मउत्कर्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।    
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विश्वदीपक तनहा की ‘त्रिवेणियाँ’
इस बार मैं जो आऊँ तो मकसद न पूछना,
बस घर को घूर लेना, मैं लौट जाऊँ जब../ दो-चार गर्द होंगे कम, दो-चार रंग जियादा।
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डा॰ महेंद्र भटनागर का आलेख - 'मुक्ति-पर्व : 15 अगस्त'
प्रत्येक प्राणी स्वतंत्रता चाहता है। दासता की शृंखलाओं से उसे घृणा है। सब प्राणियों में मनुष्य सबसे उन्नत और विवेकशील प्राणी है।   
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आज़ादीऔर देवमणि पाण्डेय के ‘तीन गीत’
रोज़ सुबह उगता है सूरज शाम ढले छुप जाता है
हर इक घर में चूल्हा लेकिन रोज़ कहाँ जल पाता है।  
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‘सूरजप्रकाश’ का आलेख ‘बायें हाथ से काम करने वालों का दिन
13 अगस्‍त। यह दिन दुनिया भर में लैफ्ट हैंडर्स डे के रूप में मनाया जाता है। जब भी इस तरह के किसी डे की बात पढ़ता हूं तो यही अफसोस होता है‍ कि.........।
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'रूपसिंह चन्देल' का संस्मरण 'एक परंपरा का अन्त था डॉ० शिवप्रसाद सिंह का जाना'
डर...एक ऎसा डर जो किसी भी बड़े व्यक्तित्व से सम्पर्क करने, मिलने से पूर्व होता है सच कहूं तो मैं उनके साहित्यकार.......।
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मैंने पढी किताब में सरिता शर्माका इत्ता लंबा सफ़र ' पर विमर्श  
मारियो वर्गास ल्योसा ने लिखा है कि उपन्यासकार अपने उपन्यास में एक कल्पित समाज की रचना करता है जो वास्तविक समाज के समतुल्य होता है.....।   
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‘शंभु चौधरी’ का व्यंग्य ‘लालकिले से प्रधानमंत्री जी का भाषण’
मेरे देशवसियों....सोनिया जी! आप सभी जैसा कि जानते हैं कि इस आजादी को हमने बड़ी मुश्किल से प्राप्त की है कितनी मुश्किलों से हमारे देश में चुनाव होते हैं।   
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इस अंक की ई-पुस्तक – “गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर की अमर कहानियाँ”
ई-पुस्तक गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर की अमर कहानियाँ को डाउनलोड करने के लिये कृपया नीचे दिये गये लिंक पर जायें।  
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