विरासत में ‘यशपाल’ की कहानी ‘अखबार में नाम’
जून का महीना था, दोपहर का
समय और धूप कड़ी थी। ड्रिल-मास्टर साहब ड्रिल करा रहे थे। मास्टर साहब ने लड़कों
को एक लाइन में खड़े होकर डबलमार्च....।
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देस-परदेस में ‘स्टेफान स्पैंडर’ की कविता ‘जो सच में महान थे’
कब ठहरेगा दर्द-ए-दिल, कब रात
बसर होगी
सुनते थे वो आयेंगे, सुनते थे
सहर होगी।
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विजय सिंह
की कवितायें
सूखे पत्तों की खड़खड़ाहट
में
रच रही
हैं चींटियाँ अपना समय।
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'विनीता' की कहानी 'जीने की वो
कशमकश'
मुकुन्दन नायर कम्प्यूटर पर
अपने प्रोजेक्ट की रूपरेखा बना रहा था कि विशम्भरन सर जोर जोर से उसका नाम पुकारते
हुए वहाँ आ गये। नायर चौंक उठा।
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भाषा सेतु में 'सीताकांत
महापात्रा' की 'रेल यात्रा'
सारा दिन भागती रहती है, पागलों सी
जैसे कोई दौड़ा रहा हो उसे।
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प्रेम
गुप्ता ‘मानी’ का व्यंग्य
‘सुरक्षित यात्रा का सुख’
याद नहीं कि किसने कहा पर
जिसने भी कहा, सौ
फ़ीसदी सच कहा है कि चलते रहने का नाम ज़िन्दगी है और रुकने का मौत...।
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लीला पाण्डेय की कुछ प्रकाशित-अप्रकाशित कवितायेँ
बड़ी उदास शाम है
की दीप
भी जले नहीं।
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'असगर वज़ाहत’ की लघुकथा ‘योद्धा’
किसी देश में एक बहुत वीर योद्धा रहता था। वह कभी किसी से न हारा था।
उसे घमंड हो गया था। वह किसी को कुछ न समझता था।
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मैने पढी किताब में 'राजीव रंजन
प्रसाद' नें पढी 'दण्डकारण्य
समाचार की जिज्ञासा'
दण्डकारण्य समाचार का
प्रकाशन 1959 से आरंभ हुआ और तब से ही यह अखबार इस अंचल की खबरों का प्रामाणिक
जरिया बना हुआ है।
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आओ धूप में ‘सपना मांगलिक’ की
कवितायें
आईना भी मुझे पहचानने से
इनकार कर रहा
ये किस
बहरूपिये सा वेष धर लिया मैंने।
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इस अंक की ई-पुस्तक – “कालजयी कहानियाँ; भाग-1”
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1 टिप्पणियाँ
KISEE UCHCHSTARIY SAHITYIK PATRIKA SE KAM NAHIN
जवाब देंहटाएंHAI SAHITYA SHILPI AB .
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.