'विरासत' में
कमलेश्वर की कहानी 'आत्मा की आवाज़'
मैं अपना काम खत्म करके वापस घर आ गया था। घर में कोई परदा करने वाला
तो नहीं था, पर बड़ी झिझक लग रही थी।
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देस-परदेस में ‘अंतोन चेखव’ की लघुकथा ‘कमजोर’
आज मैं अपने बच्चों की अध्यापिका यूल्या वसिल्येव्ना का हिसाब चुकता
करना चाहता था। "बैठ जाओ यूल्या वसिल्येव्ना।" मैंने उससे कहा.....।
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‘जयश्री रॉय’ की कहानी ‘अपना पता’
रात के निपट सन्नाटे में अपने घर के सामने खड़ा हूं, मगर अंदर
जाने से पहले न जाने क्यों ठिठक गया हूँ। एक संक्षिप्त-से क्षण में जी चाहता है, उल्टे
पैर लौट जाऊँ।
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'देवी
नागरानी' का संस्मरण 'घर में
साँप'
यादें दिल के तहखाने में बसी रहती है, और जब
ज़हन में करवटें लेती है तो दिल के मुरझाए ज़ख्म फिर से हरे हो जाते हैं।
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भाषा सेतु में 'बुल्ले शाह'
किससे अब तू छिपता है, मंसूर भी तुझ पर आया है,
सूली पर उसे चढ़ाया है, क्या साईं से नहीं डरता है?
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‘कविता’ की
कहानी ‘मध्यवर्ती प्रदेश’
जाते-जाते उसे लगा कि उसकी यह कोशिश भी जाया गई। कोशिशें यूं भी
बेकार जाने के लिये ही होती हैं. बेकार होते-होते कहीं कोई साकार हुई तो हुई...।
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'डॉ. वेद व्यथित' का व्यंग्य
'सामने देखो'
पहले समय में कुछ काम ऐसे होते थे जिन को सिखने के लिए बाकायदा कोई
कोर्स करने की जरूरत नही पडती थी जैसे आप बचपन में ही.....।
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'संजीव निगम’ की लघुकथा ‘अपराजिता’
आज की इस रात में जब घर के सब लोग बाहर चौक में नवरात्रि के डांडिया
रास में मस्त होकर सब कुछ भूले हुए हैं, मैं घर
पर बैठी तुम्हारे पत्र का जवाब लिख रही हूँ।
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मैने पढी किताब में ‘सत्यदेव
त्रिपाठी' नें पढी 'रति का
कंगन’
जब सारी मर्यादाएं टूट रही हों, सारे मूल्य नष्ट होने की कग़ार पर
हों... बच रहे हों सिर्फ़ मनमाने सुख के खुले खेल, तो किन्हीं मूल्यों को लेकर रचना.......।
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पद्मा मिश्रा की कवितायें
तुम कोई गीत लिखो, और मै गाऊं,
गीत माटी के, गीत फसलों के...।
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इस अंक की ई-पुस्तक – “कालजयी कहानियाँ; भाग-1”
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