भगत सिंह नें फाँसी के फंदे को चूमा और इस बूढे देश की नसें उबल पडीं। क्रांति दावानल हो गयी और अंग्रेज सूरज अस्त होने लगा।...। प्रस्तुत कविताओं के अंश उस दौर से हैं जब भगत सिंह को फाँसी लगायी जाने वाली थी, तथा कुछ रचनायें उन्हे फाँसी लगाये जाने के बाद उपजे जनाक्रोश की अभिव्यक्ति हैं। महत्वपूर्ण इन रचनांशों का कविता-तत्व नहीं है अपितु इन्हे प्रस्तुत करने का उद्देश्य आज भी उनकी प्रासंगिकता से परिचित कराना है।
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है अफसोस कि लाशों को उठाने भी न पाए,
हम फूल शहीदों पे चढाने भी न पाए॥
हम अश्क चिताओं पे गिराने भी न पाये
हम आतशे-सोजां को बुझाने भी न पाये॥
-अज्ञात
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सुखदेव, भगत सिंह, राजगुरु, थे शमअ-वतन के परवाने
जो सोज दिलों में उनके था, उस सोज को कोई क्या जाने॥
- मौलाना इनामौला खाँ हसनपुरी
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हम अपने कौमी शहीदों की, क्यों याद दिलों से दूर करें
क्या और किसी नें भुलाये हैं, क्या और किसी नें बिसारे हैं॥
सुखदेव, भगत सिंह, राजगुरु, ये तीनों देश दुलारे हैं
फाँसी पे लटक कर जान जो दी, जी-जान से हमको प्यारे हैं॥
-अज्ञात
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कहती है माता कर रुदन, कहाँ है हमारा मूलधन,
गोदी से मेरी छीन कर, किसने उसे हटा दिया॥
-अज्ञात
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यह छींटे खून की उस दमन-ए-कातिल की कहानी है,
शहीदान-ए-वतन की कुछ निशानी, देखते जाओ॥
अभी लाखों ही बैठे हैं बुझाने प्यास अपनी
खतम हो जायेगा खंजर का पानी, देखते जाओ॥
-अज्ञात
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सुखदेव, भगतसिंह, राजगुरु, आजादी के दीवाने थे।
हंस हंस के झूले फाँसी पर भारत माँ के मस्ताने थे॥
वह मरे नहीं हैं जिंदा हैं, वह अमर शहीद कहायेंगे
वह प्यारे वतन पे निसार हुए, वह वीरों में मरदाने थे॥
-कमल
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तूने भारत चमन को सींचा है लहू से।
कहाँ जा बसा हो के न्यारा भगत सिंह॥
बुरा हाल है देश भारत का ए लाल
होवे जन्म तेरा दोबारा भगत सिंह॥
-प्रभु नारायण मिश्र
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आजादी का दीवाना था सरदार भगत सिंह।
फाँसी पर गया झूल वो सरदार भगत सिंह॥
आलम की एक शान था सरदार भगत सिंह।
हर बागी का अरमान था सरदार भगत सिंह॥
- एन.एल.ए बमलट
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हुआ देश का तू दुलारा भगत सिंह
झुके सर तेरे आगे, हमारा भगत सिंह॥
-अभय
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भगत सिंह को देख कर चर्ख बोला
दिखाये जिमीं नें जवां कैसे कैसे॥
वतन के दुलारे तडप कर पुकारे,
वतन के भी हैं पासबां कैसे कैसे॥
-हसरत
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अमर हो गये भगत सिंह, अमर हुआ इतिहास।
जिनकी स्मृति मात्र से उपजे नव विश्वास॥
साहस, धीरज, वीरता का अनुपम उपमान।
धन्य भगतसिंह धन्य हो, महाबीर बलवान॥
-केदारनाथ मिश्र
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तुम हो शहीद दे गये सीख, भारत के वीर जवानों को
दे गये प्रेरणा बलिदानी, आजादी के दीवानों की॥
तेरे चरणों पर परमवीर, नित श्रद्धा सुमन चढाता हूँ
स्वीकार करो हे त्याग मूर्ति, चरणों में शीष नवाता हूँ..
-अवध किशोर यादव
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वतन पे जां है गंवाने, रहे रहे न रहे।
और ये जिस्म है फानी, रहे रहे न रहे॥
खुदा के वास्ते कर दो इसे वतन पे निसार
जवानों, फिर ये जवानी, रहे रहे न रहे॥
जला के वह मेरी मैयत बहाएं सतलुज में
फिर उनकी तेग में पानी रहे रहे न रहे॥
-मुश्ताक
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फाँसी की रस्सियों से हम जा रहे खुदा घर
भारत स्वतंत्र करके तुम भी वहीं पर आना॥
-माता प्रसाद शुक्ल “शुक्ला”
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हम ज़िन्दगी से रूठ के बैठे हैं जेल में
अब जिंदगी से हमको मनाया न जाएगा॥
हमने लगाई आग है जो इंकलाब की
इस आग को किसी से बुझाया न जायेगा॥
-अज्ञात
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- नेशनल बुक ट्रस्ट की पुस्तक फाँसी लाहौर की से साभार
1 टिप्पणियाँ
AAJ BHEE YE ASHAAR PRASANGIK HAIN . UNHEN PADHWANE
जवाब देंहटाएंKE LIYE SAMPAADAK MANDAL KO BADHAAEE .
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.