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भाषा सेतु में ‘सुब्रमण्यम भारती’ की कविता ‘वंदेमातरम’



आओ गाएँ 'वन्देमातरम'।
भारत माँ की वन्दना करें हम ।

ऊँच-नीच का भेद कोई हम नहीं मानते,
जाति-धर्म को भी हम नहीं जानते ।
ब्राह्मण हो या कोई और, पर मनुष्य महान है
इस धरती के पुत्र को हम पहचानते ।

आओ गाएँ 'वन्देमातरम'।
भारत माँ की वन्दना करें हम ।

वे छोटी जाति वाले क्यों हैं क्यों तुम उन्हें कहते अछूत
इसी देश के वासी हैं वे, यही वतन, यहीं उनका वज़ूद
चीनियों की तरह वे, क्या लगते हैं तुम्हें विदेशी ?
क्या हैं वे पराए हमसे, नहीं हमारे भाई स्वदेशी ?

आओ गाएँ 'वन्देमातरम'।
भारत माँ की वन्दना करें हम ।

भारत में है जात-पाँत और हज़ारों जातियाँ
पर विदेशी हमलावरों के विरुद्ध, हम करते हैं क्रांतियाँ
हम सब भाई-भाई हैं, हो कितनी भी खींचतान
रक्त हमारा एक है, हम एक माँ की हैं संतान

आओ गाएँ 'वन्देमातरम'।
भारत माँ की वन्दना करें हम ।

हम से है ताक़त हमारी, विभिन्नता में एकता
शत्रु भय खाता है हमसे, एकजुटता हमारी देखता
सच यही है, जान लो, यही है वह अनमोल ज्ञान
दुनिया में बनाएगा जो, हमें महान में भी महान

आओ गाएँ 'वन्देमातरम'।
भारत माँ की वन्दना करें हम ।

हम रहेंगे साथ-साथ, तीस कोटि साथ-साथ
डाल हाथों में हाथ, तीस कोटि हाथ साथ
हम गिरेंगे साथ-साथ, हम मरेंगे साथ-साथ
हम उठेंगे साथ-साथ, जीवित रहेंगे साथ-साथ

आओ गाएँ 'वन्देमातरम'।
भारत माँ की वन्दना करें हम ।

मूल तमिल से अनुवाद (कृष्णा की सहायता से): अनिल जनविजय

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