विरासत में ‘रामधारी सिंह दिनकर’ की कविता ‘हिमालय’
तू मौन त्याग, कर
सिंहनाद; रे तपी आज तप का न काल
नवयुग-शंखध्वनि जगा रही; तू
जाग,
जाग, मेरे विशाल।
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देस-परदेस में ‘कार्ल मार्क्स’ की कविता ‘जेनी के लिये’
सबोधित करता हूँ गीत क्यों
जेनी को
जबकि तुम्हारी ही ख़ातिर
होती मेरी धड़कन तेज़।
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रूपसिंह चन्देल का यात्रा संस्मरण 'वाह
अंबरसर! वाह-वाह वाघा!!'
1977 के
अक्टूबर माह की बात है। एक मित्र से यशपाल का‘झूठा सच’ प्राप्त
हुआ। विभाजन की त्रासदी ने मेरे अंदर हलचल मचा दी।
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शशि पुरवार की लघुकथाएं
भोपाल जाने के लिए बस जल्दी पकड़ी और आगे की सीट पर सामान रखा था कि किसी
के जोर जोर से रोने की आवाज आई।
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गणेश चतुर्थी पर डॉ. सरस्वती माथुर
के ‘हाईकु’
पूज्य गणेश
करते हैं
कल्याण/ देव महान।
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सुबोध
श्रीवास्तव की दो कवितायें
तुमने कहा/ कि तुम/ सूरज के पास रहते हुए भी
नहीं भूले/ झोपड़ी का अंधेरा
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आलोक पुराणिक का व्यंग्य 'हिन्दी के
ग्लोबल योद्धा'
कल हिंदी दिवस पर कई हिंदी सेवियों से मुलाकात हुई। 2012 में
हिंदी सेवी होना आसान काम नहीं है।
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मजाज़ लखनवी की कुछ नज़्में
अब गुल से नज़र मिलती ही
नहीं अब दिल की कली खिलती ही नहीं
ऐ फ़स्ले
बहाराँ रुख़्सत हो, हम
लुत्फ़-ए-बहाराँ भूल गए।
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‘आओ धूप’ में पियुष द्विवेदी
‘भारत’ की कहानी ‘नियम’
आज दो दिन हो गए थे उसको गाँव आए! करीब दस साल बाद वो गाँव आया था! इन
दस सालों में उसके मम्मी-पापा तो कई बार गाँव आए.....।
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