रीति-नीति है पीछे छूटी सब कुछ यहां नया बन आया,
प्राच्यता को पुराना समझा, संदेशा नया संगणक लाया।
वेश और भेष दोनों हैं बदला गिट-पिट की शौकत छाई,
रिश्ते अंकल-आण्टी में जकड़े मम्मी मम, पापा-डेड भाई ।।
विदेशी बोलते अपनी भाषायें हम विदेशी में जीते हैं।
स्वभाषा-गौरव की न रक्षा प्याला गरल का पीते हैं।
निज भाषा उन्नति ही अपनी एकता का सूत्र है होती,
उसके स्वाभिमान की रक्षा बिन स्वप्न सभी रीते हैं।।
जहां चाहें जैसे खर्च करते यह दाम हैं।
योजनाओं में इनके कागजी ही काम है।
समाज में व्याप्त यही रक्त लोभी जोंके,
भारतीय होकर भी अंग्रेजी की गुलाम हैं।।
राष्ट्रभाषा हिन्दी का नित डटकर करो प्रसार,
जन-जन की भाषा बने अपनाये संसार।
महके कण-कण इसकी विश्व में प्रतिष्ठा से
कई दशकों से वन्चिता को दिलवाइये अधिकार।।
तुलसी मीरा और जिसमें रसखान मिलते हैं,
प्रसाद, पन्त,निराला और महादेवी के गान मिलते हैं।
भारतीय एकता की मूल मंत्र रही हिन्दी को
आजादी के दशकों बाद भी क्यों न अधिकार मिलते हैं।।
विदेशियों से मुक्त हुए कई दशक बीते हैं
मत जो व्याप्त था लोग उसी में आज भी जीते हैं।
भाषा-संस्कृति के आक्रमण हम पर होत-
स्वभाषा-संस्कृति की रक्षा में हम रहे क्यों पीछे हैं।।
विदेशी बोलते अपनी भाषायें पर हम विदेशी में जीते हैं,
स्वभाषा-गौरव की न रक्षा प्याला गरल का ही पीते हैं।
निजभाषा उन्नति ही अपनी एकता का सूत्र है होती-
उसके स्वाभिमान की रक्षा बिन स्वप्न सभी रीते हैं।।
भारत का सम्मान बिन्दु हिन्दी देश के मस्तक की यह बिन्दी,
देश में ममता का नाम हिन्दी, सूर,मीरा,तुलसी का गान हिन्दी।
प्रसाद,पंत,निराला का मान हिन्दी,रसखान के रसों की खान हिन्दी।
कबीर,जायसी,रहीम-भूषण की हन्दिी, एकता का वरदान हिन्दी।।
2 टिप्पणियाँ
अच्छा लिखा लेकिन कहीं कहीं शब्द अटके भी
जवाब देंहटाएंhindi hamari apni bhasa hai,samman den,
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.