HeaderLarge

नवीनतम रचनाएं

6/recent/ticker-posts

भाषा सेतु में लाला जगदलपुरी' की भतरी बोली में रचना – ना जानी होय' एवं अनुवाद।


ना जानी ह ओय
---------

कार बन्धु आय कोन? ना जानी होय
कार मने मयाँ सोन? ना जानी होय
इति-हँती ढाकला मसान-बादरी
काय बेर? काय जोन? ना जानी होय
इती मनुख, हँती मनुख, सबू मनुख जीव
कार लहू, कार लोन? ना जानी होय

मालूम नहीं हो पाता
----------

कौन किसका बंधु है? नहीं जान पड़ता।
किस के मन में ममत्व का सोना है? नहीं मालूम पड़ता।
यहाँ वहाँ मरघटी बादल छा गये हैं।
क्या सूरज क्या चाँद? नहीं मालूम पडता।
यहाँ मनुष्य, वहाँ मनुष्य।
सभी मानव प्राणी हैं।
किसका लहू? किसका नमक है? जान नहीं पड़ता।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

आइये कारवां बनायें...

~~~ साहित्य शिल्पी का पुस्तकालय निरंतर समृद्ध हो रहा है। इन्हें आप हमारी साईट से सीधे डाउनलोड कर के पढ सकते हैं ~~~~~~~

डाउनलोड करने के लिए चित्र पर क्लिक करें...