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डा. गरिमा तिवारी का व्यंग्य ‘‘ योगहार्ट, घोड़ा चौक और अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी ’'

डॉ. गरिमा तिवारी 

                                                           
आदरणीय महानुभावों,

भूमंडलीकरण की इस संगोष्ठी में भाग लेने के लिए आज सुबह जब मैं घर से निकलने लगा तो मेरी अर्धांगिनी ने मुझसे कहा कि गर्मी के दिन हैं इसलिए मैं थोड़ा सा योगहार्ट लेकर ही घर से निकलूँ। बंधुवर, आप चाहें तो इसे प्रेमवश समझें या भयवश, मैं अपनी पत्नी के आदेशों-निर्देशों का उल्लंघन कर नहीं पाता। इसलिए मैं बहुराष्ट्रीय कम्पनी कैडबरी का बना योगहार्ट का सेवन करके ही घर से निकला। आप सोच रहे होंगें कि  यह योगहार्ट शायद कोई औषधि होगी लेकिन मैं यहाँ स्पष्ट कर देना चाहता हॅू कि योगहार्ट हमारी प्रिय दही का भूमंडलीकृत नामकरण है। सज्जनों, यह प्रसंग मैंने इसलिए छेड़ा क्योंकि मैं आपको बताना चाहता था कि आज भूमंडलीकरण के इस दौर में हमारी दही जैसी खाद्य सामाग्री भी बच नही सकी है और इस पर तमाम बहुराष्टीय कम्पनियों ने कब्जा कर लिया है!’’ 

बुद्धिजीवियों का खालिश कार्यक्रम था इसलिए श्रोता भी विद्वजन ही थे। अचानक ही भिन-भिन करके भुनभुनाहट शुरु हो गयी। कोई श्रोता अधैर्य का परिचय देते हुए जरा जोर से भुनभुनाया कि दही के लिए योगट का नाम तो सुना है लेकिन यह योगहार्ट क्या होता है और जाने किस भाषा का शब्द है। इस पर एक अन्य श्रोता ने कहा कि ‘बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम’ का मतलब ही यही होता है। वक्ता असाधारण क्षमता से लैस थे। वे किसी भी विषय पर और कितने भी समय तक बोल सकते थे और प्रायः ही अपने वरिष्ठ होने का दुरुपयोग कर लिया करते थे। सितम यह भी कि उनका गला भी उनके ही जितना जोरदार था और वह बहुत बार उनके लिए रक्षात्मक हो जाता था। इस बार भी जब उनके बोलने के दौरान भुनभुनाहट ज्यादा होने लगी तो वे समझ गये कि फजीहत का समय नजदीक आ गया है और इससे बचने के लिए गले का प्रयोग पूरी क्षमता के साथ करना जरुरी है सो उन्होंने माइक पर गले का पूरा जोर लगा दिया। भुनभुनाने वाले दहशत के मारे दुबक गये। फिर तो उन्होंने काफी विस्तार से बताया कि योगहार्ट को कैडबरीज और नैस्ले के अलावा अलां, फलां और सलाँ टाइप की तमाम बहुराष्ट्रीय कम्पनिया बनाने लगी हैं और उन्होंने स्पष्ट किया कि देश में तमाम चीजों का जो वैश्वीकरण हुआ है उसे योगहार्ट के उदाहरण से आसानी से समझा जा सकता है। आगे चलकर उन्होंने अपनी घोर गर्जना से यह साबित करने का पूरा प्रयास किया कि सारी समस्या की जड़ वह प्रक्रिया है जिसमें देशी दही योगहार्ट हो जाता है।

ये वक्ता संभवतः स्थानीय थे। एक अन्य वक्ता को बोलने के लिए आमंत्रित किया गया। वे शायद बाहरी थे और काफी बिलम्ब से संगोष्ठी में पहुंचे थे। छूटते ही उन्होंने कहा कि वे तो राजधानी से सटे इस समृद्ध इलाके में हो रही गोष्ठी में यह सोचकर आ गये थे कि यहाँ  बेशक काफी पढ़े-लिखे लोग रहते होंगें लेकिन मित्रों, मुझे यह जानकर बहुत अफसोस हुआ कि यहाँ  जैसे अनपढ़ों का ही बोलबाला है। निमंत्रण पत्र में इस स्थान पर आने के पते में राणा प्रताप चौक का नाम लिखा था और दोस्तों, राणा प्रताप चौक  का नाम खोजने में मुझे और मेरे रिक्शे वाले को आधा शहर ही छानना पड़ गया! वो तो भला हो एक पुराने रिक्शेवाले का जिसने बताया कि जो चौक आप खोज रहे हैं उसका असली नाम तो घोड़ा चौक  है! सज्जनों, राणा प्रताप का ऐसा अपमान! जिस आदमी ने स्वाभिमान की रक्षा के लिए क्या कुछ कष्ट नहीं उठाया, उसके नाम पर बने चौक  का महत्व उससे ज्यादा एक घोड़े के कारण हो गया? मित्रों, मैं यह बताना चाहता हॅू कि जब हम राणा प्रताप जैसे वीर और स्वाभिमानी का नाम भूल गये तो कैसे यह उम्मीद की जाय कि योगहार्ट का नाम दही करने के लिए हम कोई संघर्ष कर सकेंगें। सच तो यह है कि ऐसे स्वाभिमान शून्य स्थान पर यह गोष्ठी ही नहीं की जानी चाहिए थी। ऐसे में कुछ स्थानीय लोगों ने थोड़ा हल्ला-वल्ला मचाकर अपने स्वाभिमान का परिचय देना चाहा।

मामला बिगड़ता देख चतुर संचालक ने एक ऐसे सज्जन का आवाज दी जो गंभीर विषय के बीच में भी अपने फूहड़ हास्य को घुसेड़ देने का हौसला रखते थे। उन्होंने आते ही कहा कि नाम परिवर्तन का मामला देखने के लिए बहुराष्ट्रीय कम्पनियों तक जाने की क्या आवाश्यकता है। अपने ही देश में दक्षिण के राज्यो में चले जाइए तो वहाँ  मुंह  को नाक और नाक को मुंह कहा जाता है। इस पर एक बेचैन श्रोता ने कटाक्ष किया कि वहाँ रहते हुए आपने किस रास्ते से खाना खाया था? वक्ता नाराज होकर कुछ कहते कि संचालक ने उस सत्र की समाप्ति और अगले सत्र यानी काव्य-गोष्ठी की घोषणा करते हुए एक सुंदर कवयित्री को काव्य-पाठ के लिए बुला लिया। श्रोता सौन्दर्य रस में डूबने-उतराने लगे। माहौल शांत हो गया। वो तो बाद में संचालक ने निष्कर्ष निकाला कि न तो योगहार्ट और न ही घोड़ा चैक, भूमंडलीकरण के पैमाने पर अगर कोई सच है तो वह सौन्दर्य ही है।

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