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वर्ष छ:, अंक – 24



विरासत में 'काशीनाथ सिंह' की कहानी 'तीन काल कथा'    
यह वाकया दुद्धी तहसील के एक परिवार का है। पिछले रोज चार दिनों से गायब मर्द पिनपिनाया हुआ घर आता है और दरवाजे से आवाज देता है।  
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भाषा सेतु में 'वरवर राव' की कविता 'मूल्य
हमारी आकांक्षाएँ ही नहीं
कभी-कभार हमारे भय भी वक़्त होते हैं।
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प्रताप सहगल का यात्रावृतांत 'आबू कहें या अर्बुद या बोलें माउंट आबू'
राजधानी एक्सप्रैस आबूरोड पर रुकी। हम अपने सामान समेत गाड़ी से उतरने के लिए तैयार खड़े थे। डिब्बे का दरवाज़ा खुलते ही आबू पर्वत की हवाएँ दस्तक देने लगीं।  
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प्रेमचन्द गाँधी की प्रेम कवितायें  
उस कमरे में मेरी याद बैठी है
जहां शाम के वक्‍त खिड़की से। 
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रतीनाथ योगेश्वर की तीन गजलें
बातों - बातों में जो सिहरती  है
हाँ वो लड़की  किसी पे मरती है।
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डॉ. प्रेम जन्मेजय का व्यंग्य 'एक अनार के कई बीमार'
विदेशी चैनलों के युग में जैसे भारतीय संस्कृति गायब है, वैसे ही पिछले कई दिनों से राधेलाल गायब है। भारतीय जनता बुद्धू बक्से की नशेड़ी है, मैं राधेलाल का....।
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लघुकथा – ‘अहंकार’
राजगृह के कोषाध्यक्ष की पुत्री भद्रा बचपन से ही प्रतिभाशाली थी। उसने माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध प्रेम विवाह कर लिया। विवाह के बाद उसे पता चला कि युवक दुर्व्यसनी...। 
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मैने पढी किताब में सरिता शर्मा’ नें पढी ‘द स्ट्रीट’  
प्यासा निर्झरमें श्री॰ नरेन्द्र शर्मा-विरचित एक-सौ-चौंतीस कविताएँ संगृहीत हैं। संग्रह की भूमिका 3 मार्च 1964 को लिखी गई है.....   
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 राजीव रंजन प्रसाद की लघुकथा 'नाम में क्या रखा है?'
तो भारत की संस्कृति का काहे चूना उखाड रहे हैं? आजकल केवल वही बदलता है जिसके बदलने या न बदलने से किसी का कुछ नहीं बदलता है। 
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मंजरी शुक्ला के कुछ 'शेर'
एतबार करते ही रहे तुझ पर हर बार हम
दिल जलाने में भी एक अलग मज़ा है।
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1 टिप्पणियाँ



  1. तमसो माँ ज्योतिर्गमय
    भारतीय संस्कृति की उद्घोषणा तम से प्रकाश की और बढ़ें ,के साथ
    आओ मिल कर प्रकाश पर्व मनाएं
    इस शुभ अवसर पर
    आप को सपरिवार हार्दिक शुभकामनायें प्रदान
    करता हूँ
    कृपया स्वीकार करें

    मन दीप सजाया है
    दीवाली आई है
    खुशियों का उजाला है ।

    दीपों का उत्सव है
    तुम्हें खुशियाँ खूब मिलें
    मेरा ऐसा मन है ।

    मन दीपक हो जाये
    अंधियारे दूर रहें
    उजियारा हो जाये ।

    मन दीपक हो जाये
    खुशियों से भरे झोली
    सब खुशियाँ मिल जाएँ ।
    निवेदक
    डॉ वेद व्यथित
    अनुकम्पा - 1577 सेक्टर 3
    फरीदाबाद
    09868842688

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