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राजीव रंजन प्रसाद की लघुकथा 'नाम में क्या रखा है?'


कागभुशुण्डि जी, कोलिला शर्मा से बतिया रहे थे।

‘बताईये कलकता को कोलकाता कर दिया, मद्रास को चेन्नई कर दिया, बम्बई को मुम्बई कर दिया, बेंगलोर को बेंगलुरु कर दिया लेकिन कभी डलहौजी या बख्तियारपुर के नाशम भी बदलेंगे?’ काक नें कहा। 

‘ये नाम क्यों बदलने चाहिये?’ मृदुभाषिणी कोकोला नें पूछा।

‘जिस कारण और सभी नाम बदले और उन्हे पुराना नाम मिला। जिन शहरों की मैं बात कर रहा हूँ उनके नाम तो अपने समय के सबसे बडे दैत्यों पर आज भी पडे हुए हैं, बदलना चाहिये’ काक नें पूरी करकशता के साथ कहा।

‘नेतागिरि करना चाहते हैं क्या?” कोकिला बोली।

“नहीं तो”

“तो भारत की संस्कृति का काहे चूना उखाड रहे हैं? आजकल केवल वही बदलता है जिसके बदलने या न बदलने से किसी का कुछ नहीं बदलता है।“

‘बात तो ठीक है वो कहते है न कि नाम में क्या रखा है?’

‘नाम में काहे नहीं रखा? कागभुशुण्डि से आपको सब कौवा बुलाने लगें तब...?” कोकिला मुस्कुराई।

“आप भी ना.......” काक खिसिया गये थे। 
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8 टिप्पणियाँ

  1. EK ACHCHHEE LAGHU KATHA HAI ` NAAM MEIN KYA RAKHA
    HAI ` . RAAJEEV JI KO BADHAAEE .

    जवाब देंहटाएं
  2. EK ACHCHHEE LAGHU KATHA HAI ` NAAM MEIN KYA RAKHA
    HAI ` . RAAJEEV JI KO BADHAAEE .

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  3. बात तो सही है राजीव जी. नाम में बहुत कुछ रखा है. एक अच्छी लघुकथा.

    चन्देल

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  4. naam se anaam / gumnaam honetak to thee badnaam hone tak kaun jana chahegaa?

    naam vahee badlen jate hain jinse rajnaitik hit sadhta hai anyatha india ko bharat n kar diya hota? cyloe to shreelanka ho gaya india bharat naheen ban paya.

    जवाब देंहटाएं
  5. naam to ab aam ho gye aur aam aaj ka naam ho liya fir kya naam kya aam

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