दामन वफ़ाओं का कभी दागदार न होता
अगर हमें उस पर इतना ऐतबार न होता
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जज़्बातों को मेरे यूँ हवा ना दे तू
गर ये उड़ जायेंगे तो नींद चली जाएगी तेरी
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जब भी कुछ कहने चला हूँ उससे
एक ख़ामोशी सी ओढ़ ली मैंने
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गुमनामियों के घने अंधेरों से बाहर आऊं कैसे
रौशनी की किरण नश्तर सी चुभी हैं दिल में
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रास्ते तमाम निकलते चले गए
पर हर मोड़ जाकर तेरे घर को जा मिला
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इस तरह बहा के तुझे साथ ले जाऊँगा अपने
कि हर कतरा समंदर का हंसेगा मुझ पर
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जब भी कुछ कहने चला हूँ उससे
एक ख़ामोशी सी ओढ़ ली मैंने
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तू आजमाता जा हमें शामों - सहर
हम खरे उतरेंगे वफ़ा पर आठों पहर
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एतबार करते ही रहे तुझ पर हर बार हम
दिल जलाने में भी एक अलग मज़ा है
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यूँ तो तकलीफे बयाँ होती नहीं मुझसे
और समझता नहीं वो आँखों से मेरी
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किस ख़ूबसूरती से बिना कहे चला गया वो
इक उम्र बीत गई उसी जगह खड़े हुए
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मेरी पलकों में आँसूं की तरह रख लूं तुझको
तेरे ख्याल से ही तू हथेली में दिख जाए
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क्यों नहीं किसी मोड़ पर आकर मिल गया मुझसे
मेरा साया ही तो था पहचान लेता मैं उसे
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तेरी झूठी उम्मीद से, बंधा हूँ मैं खुशी से
ना तू पास बुलाती हैं, ना मैं दूर जाता हूँ
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रातों में खुश्बू की तरह बिखर जाऊँगा
उजालों में तेरी पलकों में सिमट जाऊँगा
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सपनों में ही रहा खोया, मैं इक उम्र तक
सुना था, सपने भी हकीकत में बदलते है
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रातों में खुश्बू की तरह बिखर जाऊँगा
उजालों में तेरी पलकों में सिमट जाऊँगा
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दुखों से मेरा दामन भर दे, ऐ खुदा
कुछ पल तो उसकी बेवफाई भुला सकू....
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ठुकराते हुए जाता है, जब भी वो मुझको
फिर से आने का, पैगाम दे जाता है
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मोहब्बते अगर नाकाम ना होती
तो वफाओं का ज़िक्र कहाँ होता
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खुदा का घर हैं ये, मंदिर या मस्जिद नहीं
पाकीज़गी नज़रों की ज़रूरी हैं मगर
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अधूरी बात छोड़कर चला गया वो
पूरी बात सुनता तो शायद मेरा होता
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अश्क आँखों में झिलमिला गए मेरे
ख्वाबों में भी गर वो नज़र आ गया
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जानते हुए भी वो मेरा नहीं गैर है,
तमाम उम्र उसकी चाह में काट दी मैंने
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मेरे ख्वाबों के बाग़ का हर पत्ता बिखर गया
बहते अश्कों से मेरे,तेरा चेहरा निखर गया
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बिखरने की आवाज़ कभी तो आई होती
गर उसने मोहब्बत मेरी ठुकराई होती
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मेरे आँसुओं का हिसाब न माँग मुझसे
तेरी यादों का कोई मोल नहीं हैं
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बहते अश्क कभी बेकार नहीं जाते
मेरी रूह पर हैं ये आयते सजाते
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इतनी शिद्दत से चाहा हैं मैंने तुझको
मेरा खुदा भी तुझसे रश्क करता हैं
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जब भी आया वो सताने के लिए आया
हाले दिल खुद का बताने के लिए आया
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फूल भी बगिया में रोज मुरझा रहे थे
पर वो किसके लिए आँसूं बहा रहे थे
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धोखा खाना ही क्या हमारा नसीब हैं
जिसे माना अपना वो ही रकीब है
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वो सामने मुस्कुराता रहा अनजान बनकर
मेरे दिल में जो धड़कता है मेहमान बनकर
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उसके गुनाहों के सबूत मैं मिटाता रहा
वो फिर भी मुझे ही मुजरिम बनाता रहा
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शमा के संग, सहर का इंतज़ार करता रहा
वो पतंगा हूँ मैं, युगों से रोज़ जो जलता रहा
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तेरी यादों की कश्तियों का गर सहारा ना होता
रोज डूबता तेरी आरज़ू में पर किनारा ना होता
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कैसे तस्वीर बना दू मैं मेरे महबूब की
जो रूह में हो वो कागज़ पे कैसे आएगा
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तेरी याद से ,घर का कोई कोना अनजाना ना रहा
हैरान हूँ मैं, हर शै से कैसे तू बेगाना ना रहा
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बहुत मजबूर रहा होगा मेरा हमदम
वरना ख्वाबों में आना न बंद करता
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ज़िंदगी की हकीक़त को बस इतना जाना हैं
रोना हैं अकेले ही और हँसने में ज़माना है
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दिन तेरी यादों के साए में गुज़र जाता है
रात आती हैं फिर मुझे रुलाने के लिए.....
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ख्वाबों के पंख हसरतों में लगा बैठा
लौटकर सदा तेरे पहलू में आ बैठा
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चहकती चिड़िया की कहानी, पुरानी कहाँ गई
बगीचे की मेरे, वो सुबह सुहानी कहाँ गई
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ना जफ़ा मिली और ना ही बेवफ़ाई
ज़िन्दगी खाली जाम थी, पीता चला गया
8 टिप्पणियाँ
Waah ji!!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंbahut hi khusurat sher ....utna hi achha sanklan hamari hardik shubhkaamanye .....
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार
जवाब देंहटाएंयूँ किसी को दिल से भुलाना आसान नहीँ,
जवाब देंहटाएंसदियोँ बाद भी खण्डहरोँ के निशां मिल जाते है॥
http://yuvaam.blogspot.com/p/blog-page_9024.html?m=0
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंलयात्मकता का निखार अशआर को और बुलंद करेंगे
शुभकामनाएं
78tutr6u8lu9jughuigh
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंरातों में खुश्बू की तरह बिखर जाऊँगा
उजालों में तेरी पलकों में सिमट जाऊँगा
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सपनों में ही रहा खोया, मैं इक उम्र तक
सुना था, सपने भी हकीकत में बदलते है
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रातों में खुश्बू की तरह बिखर जाऊँगा
उजालों में तेरी पलकों में सिमट जाऊँगा
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दुखों से मेरा दामन भर दे, ऐ खुदा
कुछ पल तो उसकी बेवफाई भुला सकू....
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ठुकराते हुए जाता है, जब भी वो मुझको
फिर से आने का, पैगाम दे जाता है
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मोहब्बते अगर नाकाम ना होती
तो वफाओं का ज़िक्र कहाँ होता
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खुदा का घर हैं ये, मंदिर या मस्जिद नहीं
पाकीज़गी नज़रों की ज़रूरी हैं मगर
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अधूरी बात छोड़कर चला गया वो
पूरी बात सुनता तो शायद मेरा होता
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अश्क आँखों में झिलमिला गए मेरे
ख्वाबों में भी गर वो नज़र आ गया
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जानते हुए भी वो मेरा नहीं गैर है,
तमाम उम्र उसकी चाह में काट दी मैंने
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मेरे ख्वाबों के बाग़ का हर पत्ता बिखर गया
बहते अश्कों से मेरे,तेरा चेहरा निखर गया
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बिखरने की आवाज़ कभी तो आई होती
गर उसने मोहब्बत मेरी ठुकराई होती
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मेरे आँसुओं का हिसाब न माँग मुझसे
तेरी यादों का कोई मोल नहीं हैं
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बहते अश्क कभी बेकार नहीं जाते
मेरी रूह पर हैं ये आयते सजाते
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इतनी शिद्दत से चाहा हैं मैंने तुझको
मेरा खुदा भी तुझसे रश्क करता हैं
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जब भी आया वो सताने के लिए आया
हाले दिल खुद का बताने के लिए आया
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फूल भी बगिया में रोज मुरझा रहे थे
पर वो किसके लिए आँसूं बहा रहे थे
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धोखा खाना ही क्या हमारा नसीब हैं
जिसे माना अपना वो ही रकीब है
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वो सामने मुस्कुराता रहा अनजान बनकर
मेरे दिल में जो धड़कता है मेहमान बनकर
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उसके गुनाहों के सबूत मैं मिटाता रहा
वो फिर भी मुझे ही मुजरिम बनाता रहा
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शमा के संग, सहर का इंतज़ार करता रहा
वो पतंगा हूँ मैं, युगों से रोज़ जो जलता रहा
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तेरी यादों की कश्तियों का गर सहारा ना होता
रोज डूबता तेरी आरज़ू में पर किनारा ना होता
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कैसे तस्वीर बना दू मैं मेरे महबूब की
जो रूह में हो वो कागज़ पे कैसे आएगा
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तेरी याद से ,घर का कोई कोना अनजाना ना रहा
हैरान हूँ मैं, हर शै से कैसे तू बेगाना ना रहा
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बहुत मजबूर रहा होगा मेरा हमदम
वरना ख्वाबों में आना न बंद करता
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ज़िंदगी की हकीक़त को बस इतना जाना हैं
रोना हैं अकेले ही और हँसने में ज़माना है
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दिन तेरी यादों के साए में गुज़र जाता है
रात आती हैं फिर मुझे रुलाने के लिए.....
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ख्वाबों के पंख हसरतों में लगा बैठा
लौटकर सदा तेरे पहलू में आ बैठा
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चहकती चिड़िया की कहानी, पुरानी कहाँ गई
बगीचे की मेरे, वो सुबह सुहानी कहाँ गई
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ना जफ़ा मिली और ना ही बेवफ़ाई
ज़िन्दगी खाली जाम थी, पीता चला गया
6 टिप्पणियाँ:
manohar chamoli manu says
9 अक्तूबर 2012 9:02 am
Waah ji!!!!!!!!!!!
ranjeet bhonsle says
9 अक्तूबर 2012 10:46 am
bahut hi khusurat sher ....utna hi achha sanklan hamari hardik shubhkaamanye .....
बेनामी says
8 जनवरी 2013 12:30 pm
बहुत शानदार
Gurpreet Singh says
14 फरवरी 2013 8:30 am
यूँ किसी को दिल से भुलाना आसान नहीँ,
सदियोँ बाद भी खण्डहरोँ के निशां मिल जाते है॥
http://yuvaam.blogspot.com/p/blog-page_9024.html?m=0
वीनस केसरी says
18 मार्च 2013 11:41 pm
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
लयात्मकता का निखार अशआर को और बुलंद करेंगे
शुभकामनाएं
chankya says
21 मार्च 2013 2:13 am
78tutr6u8lu9jughuigh
एक टिप्पणी भेजें
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.
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ख्वाबों के पंख हसरतों में लगा बैठा
जवाब देंहटाएंलौटकर सदा तेरे पहलू में आ बैठा
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आपके शेर अलग होकर भी एक लय के साथ बहते चले गए
आभार
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.